भारत की धरती से निकला दुनिया का पहला महाद्वीप, वैज्ञानिकों ने सभी को चौंकाया…

नई दिल्ली. पृथ्वी (Earth) कैसे बनी और इसका विकास कैसे हुआ यह जानना हमेशा से ही रोचक रहा है. वैज्ञानिक इसके बारे में लगातार अध्ययन कर जानकारियां देते रहे हैं. अब वैज्ञानिकों ने बताया है कि पृथ्वी पर सबसे पहला महाद्वीप भारत (India) की धरती से निकला है. इसी के साथ यह फैक्ट भी सामने आया है कि वैज्ञानिकों ने जो सोचा था उससे भी कहीं पहले धरती का पहला महाद्वीप बना था.
वह भी भारत की जमीन से कई वैज्ञानिकों के नए रिसर्च में महाद्वीपों के बनने की कहानी को परिभाषित करने की कोशिश की गई है.’द गार्जियन’ प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक धरती के पहले महाद्वीप यानी कॉन्टीनेंट्स (Continents) को क्रेटॉन्स (Cratons) कहा जाता था. क्रेटॉन्स 250 करोड़ साल पहले समुद्र के अंदर से निकले थे. इस नई स्टडी में कहा जा रहा है पृथ्वी का पहला कॉन्टीनेंट 100 से 110 करोड़ साल पहले बना था. यह प्रक्रिया 340 करोड़ साल पहले से शुरु हुई थी.
यह नई स्टडी हाल ही प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी को करने वाले वैज्ञानिकों ने इस परत का अध्ययन भारत के पूर्वी इलाके में स्थित सिंहभूम क्रेटॉन्स (Singhbhum Cratons) का अध्ययन किया. सिंहभूम क्रेटॉन दुनिया के पहले महाद्वीप का हिस्सा था.वहीं ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित मोनाश यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ अर्थ, एटमॉस्फेयर एंड एनवायरमेंट की रिसर्च टीम के मुताबिक सिंहभूम क्रेटॉन्स (Singhbhum Cratons) के सेडीमेंट्री परत की जांच करने के बाद वैज्ञानिकों को उनकी असली उम्र का पता चला. वैज्ञानिकों ने बताया कि जब उन्होंने सेडिमेंट्री रॉक्स के पॉकेट्स को आपस में जोड़ा तो पता चला कि ये एक साथ बना था. जिसके किनारे कोई नदी या समुद्र तट रहा होगा.
वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि क्रेटॉन्स हवा और पानी की मार एकसाथ बर्दाश्त कर रहे थे. जिसकी वजह से उनकी परत बनती चली गई. इनमें मौजूद छोटे क्रिस्टल्स जिन्हें जिरकॉन्स (Zircons) कहते हैं उनकी स्टडी में पता चला कि इसके अंदर तो रेडियोएक्टिव तत्व यूरेनियम की भरपूर मात्रा होती है. पत्थरों से जिरकॉन निकालना एक बेहद जटिल प्रक्रिया है. वैज्ञानिकों ने जिरकॉन को खोजकर उसकी स्टडी को तो सभी हैरान रह गए.  वैज्ञानिक इस बात से हैरान है कि आखिरकार सिंहभूम क्रेटॉन्स (Singhbhum Cratons) समुद्र के अंदर से बाहर कैसे आया. आखिर वो कौन सी ताकत थी, जिसने इस महाद्वीप को बाहर आने पर मजबूर कर दिया.
यह जानने के लिए वैज्ञानिकों की टीम ने आग्नेय पत्थरों यानी इग्नीयस रॉक्स (Igneous Rocks) का विश्लेषण कियाइस शोध में ये भी कहा गया है कि अभी तक स्वीकार्य थ्योरी से कहीं पहले धरती पर महाद्वीपों का जन्म हुआ था. जबकि इसके पहले कुछ शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि करीब 3.8 अरब साल पहले अंतरिक्ष से हुई एस्टेरॉयड की भारी बमबारी से पृथ्वी पर परत का निर्माण हुआ और बाद में महाद्वीप बने.इससे पहले दक्षिण अफ्रीका की विटवाटरस्रैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक बयान में बताया कि लगातार बमबारी की वजह से अत्यधिक गर्मी पैदा हुई और चट्टानें पिघलीं. उस समय अधिकतर चट्टानें बेसाल्ट की थीं और एस्टेरॉयड की बमबारी ने उन्हें पिछला दिया. नेचर कम्यूनिकेशन्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि पिघलने की वजह से बेसाल्ट के पूल बन गए. यह पूल 10 किलोमीटर तक गहरे और हजारों किलोमीटर के व्यास में फैले हुए थे.
इन्हीं से आगे चलकर महाद्वीपों का निर्माण हुआ.इससे पहले ये भी कहा गया था कि लगातार एस्टेरॉयड के टकराने से बेसाल्ट की चट्टानें पिघलीं और उनमें सिलिका जैसे तत्व मिले जिससे धरती की सरंचना बनी और वह अत्यधिक समृद्ध हुई. अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने कनाडा में पाए जाने वाली करोड़ों वर्ष पहले पिघली चट्टान सडबरी इग्नीस कांप्लेक्स का अध्ययन किया. पहले शोधकर्ताओं ने बताया कि पृथ्वी पर पाई जाने वाली सबसे पुरानी पिछली हुई बेसोल्ट की चट्टान है. जो 18.5 लाख साल पहले एस्टेरॉयड गिरने से बनी थी.
इस ताजा स्टडी में यह तथ्य भी सामने आया है कि सिंहभूम क्रेटॉन्स (Singhbhum Cratons) के साथ ही दक्षिण अफ्रीका का कापवल क्रेटॉन (Kaapval Craton) और ऑस्ट्रेलिया का पिलबरा क्रेटॉन (Pilbara Craton) बना था. ये तीनों क्रेटॉन एकसाथ समुद्र से बाहर आए थे. इनकी उम्र 300 करोड़ साल से भी ज्यादा है. हालांकि यह बात नहीं पता चल पाई कि कौन सी जमीन का टुकड़ा कब निकला, या किस टुकड़े से पहले निकला.



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