दुनिया का सबसे अमीर शख्स, जिसकी रियासत के एक हिस्से जितना था ब्रिटेन, कंजूसी में भी रहा अव्वल…

सामान्य वर्ग का लगभग हर शख्स पैसे जमा करने के लिए बचत करता है. बचत करने के क्रम में थोड़ी बहुत कंजूसी होना तो आम बात है. इंसान जब दोनों हाथों से खर्च करेगा तो भला भविष्य के लिए 2 पैसे कैसे जोड़ पाएगा. हां लेकिन अगर किसी के पास बहुत ज्यादा धन हो तो क्या वह तब भी कंजूसी करेगा? और कहीं वो शख्स दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति हो तो ?
तब तो शायद वह आंख मूंद कर पैसा खर्च करेगा, क्योंकि उसे पता होगा कि वो चाहे जितना भी खर्च कर ले, उसका पैसा कभी कम होने वाला नहीं.



निजाम उस्मान की संपत्ति का मोटा मोटा अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनकी हैदराबाद रियासत का कुल क्षेत्र 80,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक था, जो कि इंग्लैंड और स्कॉटलैंड जैसे देशों के कुल इलाक़े से भी ज़्यादा था. इतना ही नहीं, अभी और सुनिए, आप सभी ने स्टडी टेबल पर पड़े पेपर वेट को देखा होगा. बहुतों के पास तो होगा भी. अक्सर कई लोग अपने खाली समय में उस पेपरवेट को लेकर ये ख्वाब देखते हैं कि काश ये पेपरवेट हीरे का होता. दुनिया भर के लिए जो बात सपना है वो निजाम उस्मान के लिए सच थी. उनके पास 282 कैरेट हीरा था. छोटे नीबू के बराबर ये जैकब हीरा दुनिया का सबसे बड़ा हीरा हुआ करता था. निजाम इस हीरे का इस्तेमाल पेपरवेट की तरह किया करते थे. ऐसा वो शौक से नहीं करते थे, बल्कि दुनिया की बुरी नजरों से बचाने के लिए करते थे. कई बार तो वो इस हीरे को साबुनदानी में भी छुपा देते थे.

जितने अमीर उससे कहीं ज़्यादा कंजूस थे अंतिम निजाम

आपने हैदराबाद के अंतिम निजाम की अमीरी के बारे में तो थोड़ा बहुत जान लिया, अब जरा उनकी कंजूसी के बारे में भी जान लीजिए. उनकी कंजूसी की शुरुआत हम ‘फ़्रीडम एट मिडनाइट’ नामक किताब में छपे एक किस्से से करते हैं. डॉमिनिक लापियरे और लैरी कॉलिंस ने अपनी इस किताब एक किस्सा बयान करते हुए लिखा है कि एक रस्म के अनुसार हैदराबाद रियासत के संपन्न लोग साल में एकबार यहां के निजाम को एक सोने का सिक्का भेंट करते थे. ये निजाम के प्रति उनकी वफादारी दर्शाता था. बदले में निजाम ये सिक्का रखते नहीं थे बल्कि इसे छू कर वापस लौटा देते थे. सोने का सिक्का वापस लौटाने की ये प्रथा अंतिम निजाम उस्मान के आने के बाद खत्म हो गई. वो इन सिक्कों को लौटाने की बजाए अपने सिंहासन के पास रखे एक थैले में जमा करते थे. एक बार हद तो तब हो गई जब उनके हाथ से एक सिक्का छूट कर नीचे लुढ़क गया. निजाम बिना कुछ सोचे हाथों और पैरों के बल ज़मीन पर बैठते हुए उस लुढ़कते सिक्के के पीछे भागने लगे. वो तब तक सिक्के के पीछे भागते रहे जब तक सिक्का उनके हाथ नहीं आ गया.

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लेकिन दुनिया में एक शख्स ऐसा भी हुआ है जिस पर ये बात लागू नहीं होती. उसके पास दौलत तो इतनी ज़्यादा थी कि एक समय उसे दुनिया का सबसे अमीर शख्स कहा जाता था लेकिन जितनी उसके पास दौलत थी, उतना ही वो शख्स कंजूस था. उसकी कंजूसी के किस्से आज भी बेहद मशहूर हैं. वो शख्स थे हैदराबाद के अंतिम निजाम आसफ जाह मुज़फ़्फ़ुरुल मुल्क सर मीर उसमान अली खां. तो चलिए जानते हैं दुनिया के इस सबसे धनवान और कंजूस व्यक्ति के बारे में:

1911 में संभाली थी गद्दी

हैदराबाद के अंतिम निजाम जाने जाने वाले मीर उसमान अली खां का जन्म 6 अप्रैल 1886 को महबूब अली खान के दूसरे पुत्र के रूप में हुआ था. भारत की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को वे हैदराबाद राज्य के पहले राजप्रमुख बने. एक समय ऐसा था जब उस्मान को दुनिया का सबसे धनवान व्यक्ति माना गया था. 22 फरवरी, 1937 को प्रकाशित हुए टाइम पत्रिका के फ्रंट पेज पर उस्मान के बारे में शीर्षक लिखा गया था ‘दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति.’

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दो देशों से ज़्यादा जमीन थी निजाम के पास

एक ही टोपी को 35 साल तक पहना

जिस तरह से निजाम दुनिया के सबसे धनी इंसान कहलाये उस हिसाब से उनके पास कपड़ों की तो कोई कमी नहीं होनी चाहिए. लेकिन ऐसा सिर्फ हम लोग सोचते हैं, असल में निजाम अपने पहनावे में भी बहुत कंजूसी करते थे. उनके पास एक फैज टोपी थी. इस टोपी को चूहे कुतरते रहे लेकिन निजाम ने ये टोपी नहीं बदली. आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि उन्होंने 35 वर्षों तक यही टोपी पहनी. टोपी का हाल क्या रहा होगा वो आप इस बात से जान लीजिए कि उसमें रूसी की एक मोटी परत हमेशा जमी रहती थी. निजाम पैरों में जो मोजे पहनते थे वो इतने पुराने हो चुके थे कि उसके किनारे तक ढीले हो चुके थे. उनके कपड़े पहनने का ढंग भी निराला था. उनका पैजामा इतना छोटा हो चुका था कि कई बार उनके पैर दिखने लगते थे. वह कंजूसी नहीं करते थे तो सिर्फ चिल्लाने में. जब उन्हें गुस्सा आता और वो चिल्लाते तो उनकी आवाज पचास गज़ दूर तक सुनाई देती थी.

मेहमान नवाजी भी थे सबसे जुदा

एक गरीब इंसान के यहां भी अगर कोई मेहमान आता है तो वो उनकी अपने हैसियत से ज्यादा खातिरदारी करने का प्रयास करता है लेकिन अगर आप निजाम उस्मान की मेहमान नवाजी के बारे में सुनेंगे तो सिर पकड़ लेंगे. दीवान जर्मनी दास की किताब महाराजा में बताया गया है कि जब निजाम के यहां कोई मेहमान आता था तो उसके सामने चाय के साथ दो बिस्कुट परोसे जाते थे. इसमें से एक मेहमान के लिए होता था और दूसरा बिस्कुट निजाम खुद खाते थे. इस तरह जितने मेहमान होते उतने ही बिस्कुट परोसे जाते. निजाम खुद 1 पैसे वाली सिगरेट पीते थे लेकिन अगर कोई विदेशी मेहमान उन्हें सिगरेट ऑफर करता तो वो बिना किसी शर्म के चार पांच पैकेट अपने पास रख लेते थे.
हैदराबाद के निजाम की 25000 सैनिकों की अपनी एक अलग सेना थी. हैदराबाद के अंतिम निजाम की ये अमीरी भारत की आजादी से पहले थी. 1950 में हैदराबाद का 562वीं रियासत के रूप में भारत में विलय हो गया. हैदराबाद जब भारत का हिस्सा बन गया तब एक समझौते के अनुसार हैदराबाद के अंतिम निजाम को हर साल 42 लाख 85 हज़ार 714 रुपए प्रिवी पर्स देने की घोषणा की गई.
1 नवंबर, 1956 तक हैदराबाद के राजप्रमुख के तौर पर काम करने के बाद 24 फ़रवरी, 1967 को हैदराबाद के अंतिम निजाम ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

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