राजकुमार साहू
जिन्हें देश की अवाम आशा भरी नजरों से देखती है. यदि वही घिनौनी करतूत करने लगे तो फिर सुचिता की उम्मीद जनता किनसे करे ? विधानसभा और लोकसभा में इन माननीयों को जनता इसलिए चुनकर भेजती है, ताकि ये जनता की उम्मीदों को साकार रूप दें. जनता के दर्द, उनकी समस्या को सदन में उठाएं, लेकिन जब यही माननीय अपने पद को सुशोभित करने के बजाय कलंकित करने लगे तो समझा जा सकता है कि देश का भविष्य किनके हाथों में है ? और वे जनता के सपनों को साकार रूप देने अपनी ऊर्जा को कहां लगा रहे हैं ?
अभी त्रिपुरा विधानसभा में जो कुछ सामने आया है, उसने सदन की छवि को धूमिल करने का काम किया है. जनता बड़ी उम्मीद से माननीय को चुनकर सदन में भेजती है, लेकिन वही माननीय की करतूत शर्मिंदा से भर देने वाली हो तो भी आम जनता किससे और क्या उम्मीद कर सकती है ? इन माननीयों के कंधे पर जनता ने बड़ी जिम्मेदारी दी है, लेकिन माननीयों को ना तो जनता की फिक्र है और खुद की साख की, क्योंकि त्रिपुरा विधानसभा के सदन में जो कुछ सामने आया है, उसने माननीय की छवि को धूमिल तो की है, साथ ही जनता के भरोसे पर भी पानी फेरा है, क्योंकि अपने एक-एक वोट के साथ जनता बड़ा भरोसा जगाकर सदन में माननीय को भेजती है, लेकिन माननीय की करतूत ने जनता के भरोसे को पूरी तरह से तोड़ने का काम किया है.
सबसे बड़ी बात है कि यह पहला वाकया नहीं है. इससे पहले भी ऐसे और कई माननीयों की ऐसी करतूत सामने आ चुकी है. जनता जिन माननीयों से बड़ी सुचिता की उम्मीद करती है. ऐसे माननीय के द्वारा जनता के विश्वास को खोने का काम किया जाता है. जिस सदन में ये माननीय बैठते हैं, उस सदन की बड़ी गरिमा है, जनता के मन में उस सदन के प्रति बड़ा आदर है, तभी अपना प्रतिनिधि बनाकर इन माननीय को जनता भेजती है, लेकिन सदन में गरिमा को तार-तार करने वाली करतूत जब यही माननीय करे तो फिर जनता आखिर किस पर भरोसा करे ?
त्रिपुरा विधानसभा में जिस तरह की घटना सामने आई है, उसके बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या माननीय ने उस शपथ का अपमान नहीं किया है, जब कुर्सी पर बैठने के पहले उन्होंने ली थी ? क्या उस सदन का अपमान माननीय ने नहीं किया है, जहां से जनता की सबसे बड़ी आशाएं टिकी रहती हैं ? देश में पहले भी इस तरह की घटनाएं उजागर हो चुकी हैं, फिर भी माननीय सबक क्यों नहीं लेते ? मर्यादा को बार-बार कलंकित करने वाली करतूत हमारे माननीय क्यों करते हैं ? आखिर, ऐसी घटना की पुनरावृत्ति कब रुकेगी ? सदन में आवाज बुलंद करते माननीयों को जनता देखना चाहती है, यदि वे ही खुद की और जनता की साख को डुबोने में लग जाए तो सवाल उठना लाजिमी है कि जनता और देश का भविष्य आखिरकार, जा कहां रहा है ?
( लेखक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार हैं )