राजकुमार साहू
‘आ बैल मुझे मार’ कहावत तो आपने सुनी ही होगी. लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का मीडिया और पत्रकारों को लेकर जो बयान आया है, उसे इसी कहावत से जोड़कर देखा जा सकता है. खुले मंच से राहुल गांधी, पत्रकारों को चमचा कह रहे थे और मीडिया, पत्रकारों की भूमिका को लेकर सीधे सवाल उठा रहे थे. क्या इन बयानों से राहुल गांधी को चुनाव में कोई लाभ हुआ है ? चुनाव में मुद्दों को प्राथमिकता देने की जरूरत होती है, लेकिन ऐसे वक्त में जब शीर्ष नेता, मीडिया-पत्रकारों को खुले मंच से टारगेट करे तो फिर जनता में कैसा संदेश गया होगा, बड़ा सवाल है ?
ये बात सच है, बदलते वक्त के साथ जैसे दूसरे फील्ड के मूल्यों में गिरावट आई है, वैसे ही मीडिया क्षेत्र में भी गिरावट आई है, लेकिन राहुल गांधी द्वारा खुले मंच पर पत्रकारों पर जिस तरह की टिप्पणी की गई है, वह कतई सही नहीं है. यह कहना गलत नहीं है कि आजादी के पहले और उसके बाद के कुछ दशकों तक जैसी मिशन की पत्रकारिता होती थी, वैसी आज नहीं होती. निश्चित ही पत्रकारिता के मूल्यों में गिरावट आई है, लेकिन ऐसा नहीं है कि पूरा मीडिया तंत्र ही खराब हो गया है. आज भी जुनून, जज्बे और बिना कोई आर्थिक महत्वाकांक्षा के काम करने वाले पत्रकारों की कमी नहीं है और पूरी ईमानदारी से अपने पत्रकारिता कर्तव्य को निभाते आ रहे हैं.
बड़ी बात है कि राहुल गांधी, बार-बार मीडिया, पत्रकारों की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं, जबकि यही मीडिया है, जिन्होंने उनकी भारत जोड़ो यात्रा को बेहतर कव्हरेज दिया है. उस पदयात्रा में पत्रकारों ने भी लंबी दूरी तक पैदल चलकर कव्हरेज किया है. राहुल गांधी की बातों और बयानों को मीडिया में भी प्राथमिकता से जगह मिलती है, फिर राहुल गांधी को किस बात की दिक्कत है ? हो सकता है, पीएम नरेंद्र मोदी को मीडिया में खुद से ज्यादा स्पेश मिलने को लेकर राहुल गांधी चिंतित हों तो इस मसले पर यही कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी, देश के प्रधानमंत्री हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें मीडिया कव्हरेज ज्यादा मिलना स्वाभाविक है. इस लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने मीडिया को कोई इंटरव्यू नहीं दिया, जबकि पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी तरह के मीडिया को इंटरव्यू दिया है. इस तरह यही कहा जा सकता है कि जब राहुल गांधी, खुद ही मीडिया, पत्रकारों से दूरी रखना चाहते हैं तो उन्हें मीडिया, पत्रकारों को लेकर कुछ भी बोलने से बचना चाहिए.
राहुल गांधी के द्वारा बार-बार मीडिया और पत्रकारों का खुले मंच पर मखौल उड़ाया जा रहा है तो ऐसे में क्या उनकी मीडिया, पत्रकारों से और दूरी नहीं बढ़ेगी ? राजनीति में अपनी बात पहुंचाने का मीडिया बड़ा माध्यम है, लेकिन राहुल गांधी, उसी माध्यम को लेकर हायतौबा मचा रखे हैं ? ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि राहुल गांधी, किस तरह की राजनीति करने के इच्छुक हैं ? हमारा मानना है कि राहुल गांधी को सीधे मंच से ऐसी बातें कहने से बचना चाहिए, जो उन्हीं के लिए सही साबित ना हो. मीडिया में राहुल गांधी के बयानों, उनके भाषणों को जगह दी जाती है, लेकिन उन्हें पीएम को मिलने वाली कुछ ज्यादा जगह को लेकर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. हमारा यह भी मानना है कि अपनी लाइन बढ़ाने में ऊर्जा लगानी चाहिए, ना कि दूसरे की बढ़ती लाइन को लेकर चिंता करनी चाहिए. हमारा यह भी कहना है कि राहुल गांधी को इसी बात की खीझ है कि पीएम नरेंद्र मोदी को मीडिया में ज्यादा जगह क्यों मिलती है, इसमें यही कहा जा सकता है, देश के प्रधानमंत्री हैं तो मीडिया, अन्य नेताओं से पीएम को स्वाभाविक तौर पर ज्यादा स्पेश तो देगा ही.
देश में अभी गोदी मीडिया की भी चर्चा होती है. मीडिया में जिस तरह व्यवसायिकता हावी हुई है, उसके बाद मीडिया के मूल्यों में कुछ कमी आई है, लेकिन आज सोशल मीडिया है, जो देश के मीडिया से भी मजबूत है. आज हर कोई सोशल मीडिया में सक्रिय है और देश की आवाम तक बहुत आसानी से अपनी बातों को पहुंचाई जा सकती है. अंत में यही कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने मीडिया-पत्रकारों को लेकर खुले मंच से गैर जरूरी बयान देकर मीडिया-पत्रकारों से खुद की दूरी बढ़ा दी है. क्या आपको लगता है, राहुल गांधी को मीडिया और पत्रकारों को ऐसा बयान देना चाहिए ? क्या आपको लगता है, राहुल गांधी को मीडिया कव्हरेज नहीं देता ? आप क्या मानते हैं, सभी मीडिया और पत्रकारों के मूल्यों में गिरावट आ गई है ?
राहुल गांधी के पत्रकारों और मीडिया को लेकर दिए गए बयानों को लेकर सियासत भी तेज रही. राजनिति में स्वाभाविक है, एक-दूसरे के गलत बयानों को लपकने की आदत होती है. लिहाजा, विरोधी पार्टियों ने राहुल गांधी के मीडिया-पत्रकारों को लेकर दिए बयानों पर अपनी भी राजनीतिक रोटी सेंक ली. इतना तो है, जब कोई शीर्ष पद पर हों तो उन्हें ऐसे बयान देने से बचना चाहिए, जो उनके लिए ही वही बयान घातक साबित हो जाए. अब देखने वाली बात होगी कि राहुल गांधी, अपने बयानों से सबक लेते हैं या फिर बदस्तूर ऐसे बयान देकर वे मीडिया-पत्रकारों से खुद की दूरी को और बढ़ाते जाएंगे ?
( लेखक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार हैं )