राजकुमार साहू
जल ही जीवन है, जल है तो कल है… ये स्लोगन चर्चित है और जब भी जल की बात आती है, ये लाइन की चर्चा जरूर होती है. केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन भी लगातार सुर्खियों में है. वजह, योजना की बदहाली और योजना में भ्रष्टाचार. केंद्र सरकार ने जिस अच्छी मंशा के साथ योजना की शुरुआत की थी, उस मंशा पर पलीता लग गया है और अधिकतर जगहों पर जल जीवन मिशन योजना ने दम तोड़ दिया है, इसलिए जल जीवन मिशन को ‘जेब भरो मिशन’ कहा जाने लगा है.
2023 विधानसभा चुनाव के पहले छग में जल जीवन मिशन योजना का मुद्दा खूब गरमाया था और विपक्ष में रहते बीजेपी ने सरकार बनने के बाद गड़बड़ी पर कार्रवाई की बात कही थी. जल जीवन मिशन योजना में भ्रष्टाचार का मुद्दा शुरू से सुर्खियों में रहा है. योजना में भ्रष्टाचार का मुद्दा आज भी गरमाया हुआ है. प्रदेश में सरकार बदल गई और विपक्षी बीजेपी, सत्ताधारी बन गई है, लेकिन जल जीवन मिशन की गड़बड़ियों पर कुछ नहीं हुआ. नतीजा, केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी और लोगों का जीवन बदलने वाली योजना का दावा खोखला साबित हुआ है. गांवों में जल की समस्या खत्म करने की मंशा थी, लेकिन यह योजना भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंस गई है.
जांजगीर-चाम्पा जिले में भी जल जीवन मिशन की बदहाली छिपी नहीं है. गांव-गांव में करोड़ों खर्च कर टंकी बनाई गई है, लेकिन घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा है. ज्यादातर जगहों में पानी का सोर्स नहीं है. ऐसे में करोड़ों की पानी टंकी, सफेद हाथी साबित हो रही है. योजना में गड़बड़ी का आलम यह है कि कई गांवों में 100 फीसदी ‘हर घर जल’ का सर्टिफिकेट दे दिया गया है, किंतु घरों तक पाइप लाइन तक नहीं पहुंची है और वहां के रहवासियों को एक बूंद पानी का इंतजार है. जल जीवन मिशन योजना के क्रियान्वयन में बड़ी लापरवाही बरती गई है. जल के सोर्स की व्यवस्था के बिना, कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार के लिए योजना के तहत कार्य कराया गया है और करोड़ों खर्च के बाद भी लोगों को जल उपलब्ध नहीं है.
योजना शुरू करने केंद्र सरकार की मंशा बेहद ही अच्छी रही है और ग्रामीणों के जीवन में बदलाव के लिए जल जीवन मिशन योजना की शुरुआत की थी, लेकिन बंदरबाट करने की मंशा रखने वालों के आगे ‘योजना’ ने दम तोड़ दिया है. हर घर तक जल पहुंचाने की सोच को भ्रष्टाचार के दीमक ने खत्म कर दिया है. यह बात तय है कि जल जीवन मिशन योजना के क्रियान्वयन और मॉनिटरिंग में सरकार सजग नहीं रही. स्थिति यह रही है कि एक तरफ करोड़ों खर्च होते रहे और दूसरी ओर बंदरबाट होती रही. इस वजह से योजना का वैसा लाभ ग्रामीणों को नहीं मिला, जिस उम्मीद के साथ सरकार ने योजना की शुरुआत की थी. अब देखने वाली बात होगी कि सरकार, आगे क्या कदम उठाती है ? करोड़ों की पानी टंकी, सफेद हाथी बनी रहेगी या फिर लोगों के घरों तक पानी पहुंचाने के लिए सरकार सार्थक पहल करेगी ?