जांजगीर-चाम्पा. झीरम में कांग्रेस नेताओं के ऊपर हुए हमले की जांच में NIA द्वारा की जा रही लेटलतीफी और हाल ही में गिरफ्तार हुए दंतेवाड़ा के जिला भाजपा उपाध्यक्ष जगत पुजारी द्वारा नक्सलियों को ट्रेक्टर दिलवाकर उनके मदद करने के विषय को लेकर जिला कांग्रेस प्रवक्ता शिशिर द्विवेदी के माध्यम से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ. चौलेश्वर चंद्राकर ने कहा है कि भाजपा नेताओं के हैं माओवादियों से बड़े गाढ़े संबंध है, इतिहास बताता है कि भाजपा के नेता वनवासी कल्याण आश्रम और अन्य माध्यमों से माओवादियों के संपर्क में रहकर राजनीतिक लाभ उठाते रहे है। वर्ष 2013 में दंतेवाड़ा भाजपा के उपाध्यक्ष शिवदयाल सिंह तोमर की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी, रिपोर्ट से पता चला कि तोमर ने नक्सलियों को पैसे देने का वादा किया था, फिर बाद में मुकर गया, इसलिए उसकी हत्या हुई। वर्ष 2013 में ही विधानसभा चुनाव से ठीक पहले माओवादी नेता पोडियाम लिंगा को CRPF ने गिरफ्तार किया था, जिसने अपने बयान में बताया कि वह भाजपा विधायक भीमा मंडावी के गांव तोयलंका का रहने वाला है, और रिश्ते में मंडावी का भतीजा है, और उनकी मदद करता है। उसने यह भी स्वीकारा कि वह शिवदयाल तोमर से मिलता रहा है और चुनाव में भाजपा को मदद भी करता रहा है। वर्ष 2011 के लोकसभा उपचुनाव में दिनेश कश्यप का साथ देने की बात पोडियाम लिंगा ने स्वीकारी थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक 2 दिन पहले ही एक नक्सली हमले में भीमा मंडावी की हत्या हो गई थी। वर्ष 2014 में रायपुर विमानतल से एक भाजपा सांसद के वाहन में सवार एक ठेकेदार धर्मेन्द्र चोपड़ा को गिरफ्तार किया गया था, जिसने सांसद और नक्सलियों के बीच तालमेल बनाने का काम करने की बात स्वीकारी थी।
इसीलिए झीरम षड्यंत्र की जांच से भाजपा नेता बचना चाहते हैं, वर्ष 2008 के समय नक्सलियों के खिलाफ कार्यवाही सलवा जुडूम तेज थी, बावजूद इसके बस्तर के 12 सीट में भाजपा 11 सीट जीते थे। यही गठजोड़ बस्तर टाइगर कहलाने वाले महेंद्र कर्मा की हार का भी जिम्मेदार था। इन सभी घटनाओं और तथ्यों से लगातार मिल रहे सबूतों से यह पता चलता है वर्ष 2013 चुनाव के पहले कांग्रेस के परिवर्तन रैली पर हुए नक्सली हमले को भाजपा द्वारा सामान्य हमले के रूप में प्रस्तुत किया गया था, किन्तु वह एक सामान्य नक्सली हमला नहीं था, बल्कि वह भाजपा नेताओं के द्वारा कराए गए एक सुनियोजित सामूहिक हत्या का षड्यंत्र था, जिसे नक्सलियों ने अंजाम तक पहुंचाया था। NIA के दस्तावेज बताते हैं कि नक्सली नेता गणपति और रमन्ना को पहले अभियुक्त बनाया गया था, बाद में पूरक चार्जशीट दाखिल करते समय उनको अभियुक्तों की सूची से हटा दिया गया था। वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कांग्रेस के दबाव में स्वीकार लिया था कि हमले की CBI जांच कराई जाएगी, पर केंद्र के मोदी सरकार द्वारा इसे अस्वीकार कर दिया गया था। डॉ. रमन सिंह ने 2016 से 2018 तक यह जानकारी छिपाकर रखी थी कि केंद्र सरकार ने CBI जांच को अस्वीकार कर दिया है।
भाजपा नेताओं से मैं पूछना चाहता हूं कि नक्सलियों के साथ आपके संबंध लगातार उजागर क्यों होते रहे हैं? भाजपा के प्रदेश नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष जिला स्तर के नेताओं और विधायकों सांसदों से नक्सली सांठगांठ को क्यों स्वीकृति देते रहे ? चार्जशीट से नक्सली नेता गणपति और रमन्ना के नाम केंद्रीय नेतृत्व या रमन सिंह के कहने पर हटाए गए? केंद्र के मोदी सरकार द्वारा CBI जांच से क्यों इनकार किया गया था और डॉ. रमन की इसमें क्या भूमिका थी ? यदि इसमें रमन सिंह जी की भूमिका नहीं रही तो, उनके द्वारा 2 साल तक यह जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? झीरम के जांच से भाजपा नेता क्यों बचना चाहते हैं ?