उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा नाम मायावती हैं। एक ऐसी महिला जिसका यूपी की राजनीति में दमखम कांग्रेस और भाजपा जैसी पुरानी और बड़ी पार्टियों जैसा ही है। बड़े दलों में कई दिग्गज नेता होते हैं लेकिन बहुजन समाज पार्टी का नाम आते ही सबसे पहले एक नाम जेहन में आता है और वह मायावती। वह पार्टी की प्रमुख भी हैं, खुद में एक ब्रांड भी। भारतीय राजनीति में किसी महिला के लिए यह ओहदा पाना आसान बात नहीं होती। लंबे समय से राजनीति में रहने के बाद मायावती ने ‘बहन जी’ से पहचान बना ली है। वह बसपा सुप्रीमो हैं, साथ ही उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। यूपी की राजनीति या जाति राजनीति का जिक्र जब भी होगा मायावती का नाम आता लाजमी है। लेकिन क्या आपको पता है कि राजनीति में आने से पहले मायावती एक स्कूल में पढ़ाती थीं। एक शिक्षिका, कैसे राजनीति में आ गईं ? कैसे मायावती के कंधों पर कांशीराम की राजनीतिक विरासत और पार्टी की जिम्मेदारी आ गई और कैसे टीचर दीदी, बहन जी बन गईं ? मायावती के जन्मदिन के मौके पर जानिए उनके राजनीतिक जीवन और शिक्षा-दीक्षा के बारे में…
मायावती का बचपन और परिवार
मायावती के परिवार का जिक्र कम ही होता है। दरअसल, मायावती के राजनीति में आने के बाद उनके पिता ने मायावती से रिश्ता तोड़ दिया था। मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 को दिल्ली के श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्पताल में हुआ था। वह एक साधारण हिंदू जाटव परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वैसे तो मायावती का परिवार यूपी के गौतमबुद्ध नगर का रहने वाला था, लेकिन मायावती के पिता प्रभु दास दिल्ली में दूरसंचार विभाग में क्लर्क के तौर पर सरकारी नौकरी में थे, वहीं उनकी मां रामरती गृहणी थीं। मायावती के छह भाई और दो बहनें थीं।
मायावती की शिक्षा और करियर
मायावती का बचपन दिल्ली में ही गुजरा। मायावती ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से 1975 में कला में स्नातक किया। उनके बाद 1976 मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक से बीएड किया। इतना ही नहीं, 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की भी पढ़ाई पूरी की। मायावती ने बचपन से आईएएस बनने का सपना देखा था। ऐसे में पढ़ाई के बाद मायावती प्रशासनिक सेवा के लिए परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। साथ ही, दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ाती भी थीं।
मायावती का राजनीतिक जीवन
मायावती बाबा साहब डॉ भीम राव आंबेडकर से काफी प्रभावित थीं। वह बचपन में अपने पिता से पूछा करती थीं कि क्या अगर वह बाबा साहब जैसे काम करेंगी तो उनकी भी पुण्यतिथि मनाई जाएगी। उनकी दलित समाज की आवाज बनने और बाबा साहब के पदचिन्हों पर चलने की दिशा तब तय हो गई. जब वह कांशीराम के सम्पर्क में आईं, 1977 में मायावती के घर दलित नेता कांशीराम आए। जिनसे मुलाकात के बाद मायावती ने राजनीति में प्रवेश किया। 1984 में कांशीराम ने दलितों के उत्थान के लिए बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। मायावती के पिता के न चाहने के बाद भी माया ने कांशीराम की पार्टी ज्वाइन कर ली और बसपा की कोर टीम में शामिल हो गईं।
मायावती की उपलब्धियां –
परिवार का साथ छोड़ राजनीति में दलितों की आवाज बनी मायावती को जनता का साथ मिला। वह एक या दो नहीं, बल्कि चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। मायावती सबसे पहले 1995 में यूपी की सीएम बनी। उसके बाद 1997 में एक बार फिर मायावती के हाथ में यूपी की सत्ता आई। साल 2002 में प्रदेश की मुखिया बनी मायावती ने लखनऊ को बदल डाला, जिसके बाद साल 2007 में जनता ने एक बार फिर मायावती को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना।
मायावती ने ही अपनी सरकार में अंबेडकर नगर का गठन किया। मायावती ने बाद में पांच अन्य जिलों का गठन किया, जिसमें गौतम बुद्ध नजर से गाजियाबाद को अलग किया। इलाहाबाद से कौशांबी और ज्योतिबा फूले नगर को मुरादाबाद से अलग कर दिया।