Shivaji Maharaj Death Anniversary 2022: आज जन जन की प्रेरणा हैं छत्रपति शिवाजी महाराज…विस्तार से पढ़िए

छत्रपति शिवाजी महाराज (Chatrapati Shivaji Maharaj) का पूरा जीवन संघर्ष में बीता लेकिन उन्होंने देश प्रेम और राष्ट्रसम्मान की ऐसा जज्बा पैदा किया था जो उनके मरने के बाद भी मराठाओं (Marathas) और देशवसियों को प्रेरित करता है. उनकी ही नीतियों का नतीजा था कि ताकतवर होने के बाद भी मुगल (Mughals) कभी दक्षिण पर काबिज नहीं हो सके थे और मराठा साम्राज्य का शासन इतना लंबा चला.



शिवाजी महाराज (Chatrapati Shivaji Maharaj) को आधुनिक भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) कहा जाता है. राष्ट्रवादी सोच की प्रवर्तक शिवाजी को अपने समय में बहुत संघर्ष कर मुगलों के साथ अपने आसपास, खुद मराठाओं (Marathas) तक से संघर्ष करना पड़ा अपने जीते किले मुगलों को देने पड़े, उनसे फिर वापस भी लिए और 1674 में छत्रपति की उपाधि भी हासिल की. वे युगों युगों से देशभक्ति की एक प्रेरणा रहे हैं. वे एक साहसी योद्धा ही नहीं बल्कि एक अतिकुशल रणनीतिकार भी रहे. उनके राज्याभिषेक को रोकने के लिए कई साजिशें भी हुई लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति वाले शिवाजी महाराज ने सभी बाधाएं पार कर हिंदू राज्य की स्थापना की.

छत्रपति की उपाधि हासिल करने के बाद भी शिवाजी महाराज के अभियान नहीं रुके इसी साल उन्होंने खानदेश, बीजापुरी पोंडा, करवर, कोल्हापुर अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद उन्होंने दक्षिण (South India) की ओर रुख किया. उन्होंने दक्षिण के राजाओं को विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ एक होने की अपील की. 1677 में वे हैदराबाद में एक महीने के लिए रहे, बीजापुर से संधि करने से इनकार किया और इसी साल कर्नाटक (Karnataka) पर धावा बोलते हए वैलूर और जिंगी किले हासिल किए. वे अपने सौतेले भाई वेंकोजी से सुलह करना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बनी और उन्हें लड़ाई करनी पड़ी और मैसूर का बहुत सारा इलाका अपने कब्जे में कर लिया.

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शिवाजी महाराज के जीवन के अंतिम वर्ष यानि 1677 के बाद का ही समय चिंता में बीता उनके बड़े बेटे संभाजी (Sambhaji) अज्ञानतावश मुगलों से जा मिले थे जिससे शिवाजी बहुत दुखी हुए . वहीं दूसरी तरफ उनकी दूसरी पत्नी सोयराबाई अपने पुत्र राजाराम (Rajaram) को उत्तराधिकारी बनाने पर जोर देती रहीं थी. बताया जाता है कि खुद शिवाजी महाराज को सोयराबाई पर पूरा विश्वास नहीं था और वे संभाजी को ही उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे जिसके लिए वे हर तरह से योग्य भी थे.

शिवाजी महाराज की मृत्य 3 अप्रैल 1680 को 50 साल की उम्र में हनुमान जयंती के अवसर पर रायगढ़ के किले में हुई थी. उनकी मौत का कारण पर इतिहासकारों में मतभेद हैं.

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कुछ का कहना है कि उनकी स्वाभाविक मृत्यु हुई थी, जबकि कई किताबों में लिखा गया है कि उन्हें साजिश के तहत जहर दिया गया था जिससके बाद उनकी हालत बिगड़ गई. उन्हें खून की पेचिस शुरू हुई और फिर उन्हें बचाया नहीं जा सका. कहीं यह भी कहा गया है कि वे तीन साल से बीमार चल रहे थे.

शिवाजी महाराज के निधन बाद मुगल थोड़े समय के लिए हावी होते जरूर दिखे लेकिन औरंगजेब मराठाओं  के कारण ही दक्षिण में चैन से कभी नहीं रह सका और 1707 तक अपने जीवन में काल में दक्षिण भारत को पूरी तरह मुगल शासन का हिस्सा नहीं बना सका. यह सब शिवाजी की नीतियों का ही फल था, उन्होंने मराठा साम्राज्य और उनके लोगों में इतना देशप्रेम और आत्मसम्मान भर दिया जो आज भी देश के लिए प्रेरणा के रूप में बना हुआ है.

शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद संभाजी ही मराठा साम्राज्य के उत्तराधिकारी बने. सोयराबाई ने अपने 10 साल के पुत्र राजा राम को को राजा बनवा भी दिया था. लेकिन संभाजी ने रायगढ़ के किले और फिर रायगढ़ पर कब्जा कर राजाराम और सोयराबाई को बंदी बना लिया और उसी साल सोयराबाई को साजिश रचने के आरोप में मरवा भी दिया था.

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शिवाजी महाराज ने विरासत में एक बड़ा मराठा साम्राज्य जरूर छोड़ा लेकिन इसके साथ उनके दुशमन भी बहुत थे जो उनकी मौत का इंतजार कर रहे थे जिसमें मुगल भी शामिल थे. शिवाजी के पुत्र संभाजी ने 9 साल के शासन में 210 युद्ध किए जिसमें उन्हें एक में भी हार का सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन 1 फरवरी 1689 को अंतिम युद्ध में उन्हें बंदी बना लिया और 11 मार्च 1689 उनका शरीर क्षतविक्षत कर क्रूरता से उनकी हत्या कर दी गई.

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