Vicco: घर-घर जाकर टूथपाउडर… बेचने से लेकर करोड़ों की कंपनी खड़ी…करने की कहानी…पढिए विस्तार से

Vicco: घर-घर जाकर टूथपाउडर… बेचने से लेकर करोड़ों की कंपनी खड़ी…करने की कहानी…पढिए विस्तार से



“विको टर्मेरिक, नहीं कॉस्मेटिक, विको टर्मेरिक आयुर्वेदिक क्रीम, कील मुंहासों…,” एक जमाने में विको कंपनी का यह एड जिंगल गानों की तरह ही लोगों की जुबान पर हुआ करता था। जिन लोगों ने विको के विज्ञापन को दिन-रात टीवी पर देखा है, वे अगर आज बाजार में कहीं भी विको के उत्पाद देख लें, तो यकीनन उनके मन में अपने आप ये जिंगल बजने लगते होंगे।

टीवी पर इन दिलचस्प जिंगल्स के कारण ही, विको घर-घर की शान बन गया था। विको का टूथपेस्ट हो या क्रीम, हर उम्र के लोग खरीदते थे।

और आज एक बार खुद को रीब्रांड करने के लिए कंपनी एड जिंगल का ही सहारा ले रही है। यह सच है कि कंपनी के पास एक बड़ी संख्या में ऐसे नियमित ग्राहक हैं, जो उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाते हैं। लेकिन आगे बढ़ते जमाने में ज़रूरी है कि वे, युवा पीढ़ी से कनेक्ट करें। इसके लिए कंपनी ने 2019 में अभिनेत्री आलिया भट्ट को अपना ब्रांड एम्बेस्डर बनाया। विको के जिंगल और विज्ञापन में चेहरा बेशक नया है, लेकिन विको के बारे में एक चीज आज भी नहीं बदली और वह है इसका रसायन मुक्त, प्राकृतिक और आयुर्वेदिक होना।

शायद कंपनी की इसी यूएसपी और उत्पादों की गुणवत्ता की वजह से विको आज भी बाजार में बना हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि विको सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि कई बार ‘बेस्ट एक्सपोर्ट’ के लिए अवॉर्ड जीतनेवाली यह कंपनी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही है। लेकिन क्या आपको पता है कि 500 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर रखनेवाली इस कंपनी की शुरुआत बहुत ही छोटी थी।

मात्र एक टूथ पाउडर से शुरू हुई इस कंपनी के पास, आज कई उपयोगी उत्पाद हैं। जैसे विको वज्रदंती पेस्ट, विको टर्मेरिक क्रीम, विको शुगर फ्री पेस्ट, विको फोम बेस, विको टर्मेरिक फेस वॉश आदि।

साल 1952 में हुई शुरुआत

विष्णु इंडस्ट्रियल केमिकल कंपनी (विको) की शुरुआत 1952 में संजीव के दादाजी, केशव पेंढरकर ने की थी। उन्होंने बताया कि केशव की पहले नागपुर में एक राशन की दुकान हुआ करती थी। लेकिन परिवार का पेट पालने के लिए यह पर्याप्त नहीं था।

साथ ही, केशव कुछ अलग करना चाहते थे और इसलिए वह अपने परिवार के साथ मुंबई आ गए। सपनों के शहर में आकर, उन्होंने अपने सपनों पर काम करना शुरू किया।

“दादाजी ने एक छोटे-से गोदाम से काम करना शुरू किया और दांतों के लिए एक ‘टूथ क्लीनिंग पाउडर’ बनाने लगे। यह केमिकल फ्री था और बड़ों से लेकर छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी सुरक्षित था। साथ ही, यह एक ऐसी चीज थी, जिसे लोग अपने दैनिक जीवन में इस्तेमाल करते हैं। इसलिए इसके चलने की गारंटी ज्यादा थी,” उन्होंने बताया।

इस टूथ पाउडर को केशव और उनके बेटों ने घर-घर जाकर मार्किट किया। क्योंकि उस समय उनके पास मार्केटिंग का और कोई विकल्प नहीं था। लगभग 18 तरह की जड़ी-बूटियों से बना उनका यह टूथ पाउडर धीरे-धीरे लोगों के बीच मशहूर होने लगा और जल्द ही पेंढरकर परिवार ने अपनी कंपनी रजिस्टर कर ली। साल 1952 में शुरू हुई यह कंपनी पहले सिर्फ टूथ पाउडर बना रही थी।

संजीव बताते हैं, “दादाजी हमेशा से ही दूरदर्शी सोच रखते थे। उन्होंने देखा कि धीरे-धीरे टूथ पाउडर की जगह लोग टूथ पेस्ट अपना रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपने बेटे, गजानन पेंढरकर से जड़ी-बूटियों का उपयोग करके टूथ पेस्ट बनाने के लिए कहा। क्योंकि गजानन ने फार्मेसी की डिग्री की थी।

लगभग सात सालों की मेहनत के बाद, उन्होंने विको वज्रदंती टूथपेस्ट बनाया। संजीव बताते हैं कि प्राकृतिक तत्वों से रसायन मुक्त टूथपेस्ट तैयार करने का एक कारण यह भी था कि उस समय ज्यादातर टूथपेस्ट में फ्लोराइड का इस्तेमाल होता था। अगर ब्रश करते समय कोई गलती से इसे निगल ले, तो उनके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता था।

खासकर कि छोटे बच्चे, जो टूथपेस्ट के मीठे स्वाद की वजह से इसे निगलते हैं। जिस कारण कम उम्र से ही बच्चों को बीमारी होने का खतरा रहता है। लेकिन विको ने अपने टूथपेस्ट में किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं किया। उन्होंने सही मायनों में आयुर्वेद के गुणों को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की।

साल 1971 में, केशव के देहांत के बाद, विको कंपनी को उनके बेटे गजानन पेंढरकर ने संभाला। बताया जाता है कि उस समय कंपनी का टर्नओवर मात्र एक लाख रुपए था। और यह गजानन ही थे, जिन्होंने विको को एक सामान्य कंपनी से ब्रांड बनाया।

टूथपेस्ट के बाद, कंपनी का दूसरा उत्पाद ‘विको टर्मेरिक’ क्रीम लॉन्च की गयी। तरह-तरह के क्रीम्स का पहले ही बाजार में बोलबाला था। लेकिन उन्होंने यह रिस्क लिया और उन्होंने एक बार फिर बिना कोई रसायन का इस्तेमाल किए, सिर्फ हल्दी के गुणों के साथ प्राकृतिक तत्वों का इस्तेमाल करके अपनी क्रीम बनाई।

संजीव बताते हैं कि जब पीले रंग की क्रीम बाजार में आई, तो लोग आसानी से इस पर भरोसा नहीं कर पा रहे थे। लोगों के मन में एक ही सवाल था कि कहीं हल्दी की तरह ये क्रीम भी उनके चेहरे पर पीला रंग न छोड़ दे। इसलिए कंपनी ने अलग तरह से मार्केटिंग की। कंपनी के सेल्समैन अपने साथ हमेशा एक आइना रखते थे। वे हाथों-हाथ रिटेलर्स और ग्राहकों को क्रीम लगाकर दिखाते थे।

इस तरह धीरे-धीरे ही सही, लेकिन उनकी क्रीम भी मार्किट में अपनी जगह बनाने लगी।
टीवी से लेकर फिल्म की वीडियो कैसेट के जरिए विज्ञापन उन्होंने आगे बताया कि 80 के दशक में कंपनी ने तय किया कि टीवी के जरिए लोगों तक पहुंचा जाए। बहुत से लोगों के लिए यह आईडिया बहुत नया था। उस समय सिर्फ दूरदर्शन हुआ करता था और गजानन पेंढरकर ने एक बहुत ही अलग तरीके से खुद को पेश किया। संजीव कहते हैं कि गजानन पेंढरकर के मार्गदर्शन में कंपनी एक टीवी सीरियल, ‘ये जो है ज़िन्दगी’ के प्रोडक्शन से जुडी और इस सीरियल के टेलीकास्ट के दौरान विको के कमर्शियल चलाये जाते थे।

देखते ही देखते विको के जिंगल लोगों की जुबान पर चढ़ने लगे। इसके अलावा, उन्होंने फिल्मों की वीडियो कैसेट का भी भरपूर प्रयोग किया। “उस जमाने में फिल्मों में वीडियो कैसेट ही ज्यादातर लोग खरीदा करते थे। उन कैसेट में भी विको के जिंगल अलग-अलग भाषाओं में लोगों तक पहुंचने लगे। फिल्मों की वीडियो कैसेट विदेशों में रहनेवाले भारतीय लोग भी खरीदते थे।

इसलिए उन तक भी विको कंपनी का नाम पहुंचने लगा,” संजीव ने बताया। कंपनी की यह रणनीति रंग लाने लगी और देखते ही देखते उत्पादों की मांग बढ़ने लगी। इसलिए कंपनी ने अपना प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए, मुंबई के डोम्बिवली के बाद नागपुर और फिर गोवा में अपनी यूनिट्स लगाई।

साल 1986 में, फार्मेसी में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, संजीव पेंढरकर कंपनी से जुड़ गए। लेकिन कुछ समय में ही, उन्हें समझ में आने लगा कि कंपनी के विकास के लिए सिर्फ फार्मेसी डिग्री काफी नहीं है। नागपुर और गोवा की यूनिट्स को संभालते हुए संजीव ने मैनेजमेंट और लॉ की पढ़ाई भी की। वह कहते हैं, “समय के साथ, मैंने सीखा कि अनुभव का कोई विकल्प नहीं है। आज हम जहां खड़े हैं, उसका श्रेय उन चुनौतियों को जाता है, जो हमारी राह में थी। मुझे ख़ुशी है कि उन परेशानियों ने मुझे और मजबूत बनाया।”

मिले हैं कई सम्मान भी

बात अगर कंपनी को मिलनेवाले सम्मानों की करें, तो इसकी एक लम्बी फेहरिस्त है। जैसे 1980 में कंपनी को ‘इंटरनेशनल ट्रेड ट्रॉफी’ मिली थी और 1990, 1992-1993, 2001-2002 में उन्हें सेकंड बेस्ट ‘एक्सपोर्ट अवॉर्ड’ मिला। 1991-1992 और 1997-1998 में उन्हें ‘मेरिट ऑफ़ सर्टिफिकेट’ मिला।

साथ ही, 2005 में PETA की तरफ से भी उन्हें अपने टूथपेस्ट के लिए सम्मान मिला। इसके अलावा, कंपनी को ABP ‘ब्रांड एक्सीलेंस अवॉर्ड’, ‘इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द ईयर-2016’, ‘नैशनल ग्लोरी ऑफ़ इंडिया अवॉर्ड’ (2017), महाराष्ट्र लोकप्रिय अवॉर्ड-2018 और 2019 में ‘मुंबई हीरोज अवॉर्ड’ भी मिला। इनके अलावा भी उन्हें और कई सम्मान मिले है।

आज विको कंपनी की तीन बड़ी फैक्ट्री और तीन जगह ब्रांच ऑफिस हैं। इसके अलावा, नागपुर के पास काफी ज्यादा मात्रा में उनकी अपनी जमीन है, जहां पर जड़ी-बूटियां उगाई जाती हैं। कंपनी आज अपने लगभग 40 उत्पाद 30 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट कर रही है। सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर विको ब्रांड उपलब्ध है।

आज के डिजिटल जमाने के हिसाब से ब्रांडिंग में बदलाव किए जा रहे हैं। मार्किट में बढ़ते कम्पटीशन के बावजूद, कंपनी आज भी अपने उसूलों पर टीकी हुई है। संजीव का कहना है कि उनकी यूएसपी और सोच आज भी वही है, जो सालों पहले थी। आज भी उनके लिए रेवेन्यू से पहले ग्राहकों की संतुष्टि और उनके उत्पादों की गुणवत्ता है।

 

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