जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की आज हत्या कर दी गई. उन्हें तब गोली मार दी गई, जब वो देश के पश्चिमी हिस्से नारा में एक जनसभा कर रहे थे. जनसभा के दौरान ही हमलावर ने उन्हें आवाज दी और दो गोलियां दाग दीं. वैसे जापान में हाईप्रोफाइल और राजनीतिक हत्याओं का पुराना इतिहास रहा है.
यहां तक की कई प्रधानमंत्री भी हत्या के शिकार बन चुके हैं. एक बार तो यहां टीबी डिबेट में सार्वजनिक तौर पर नृशंस हत्या हो चुकी है, जिसे सारे देश ने लाइव देखा.
आमतौर पर जापान में प्रधानमंत्री हों या बडे़ अफसर, सभी आम लोगों की तरह ही ट्रेन और मेट्रो से यात्राएं करते रहे हैं. ये सिलसिला पुराना है. लिहाजा उन्हें निशाना बनाना भी आसान रहा है. जापान में आमतौर पर हत्याएं या राजनीतिक कम होती हैं लेकिन जितनी हुई हैं वो बहुत सनसनीखेज और साजिश से भरी रही हैं. उनके निशाने से जापान के सम्राट भी नहीं बच सके हैं.
तब मेट्रो स्टेशन पर प्रधानमंत्री को चाकू मारा गया
ये बात 04 नवंबर 1921 की है. तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री तोक्यो में मेट्रो से यात्रा करने के लिए गेट से घुसे ही थे कि एक स्विचमैन ने उनपर चाकू से घातक हमला किया.
ये प्रधानमंत्री थे ताकेशी हारा और स्विचमैन कोनिशी नाकोएदा उनसे इसलिए नाराज था, क्योंकि उसको लग रहा था कि प्रधानमंत्री एक साधारण परिवार से आए हैं और उस वजह से वो देश को चला नहीं सकते. उनके राज में ना केवल भ्रष्टाचार बढ़ेगा बल्कि वह अक्षम भी साबित होंगे.
हालांकि उसकी मुख्य नाराजगी सरकार और सेना के बीच तनातनी से थी. उस स्विचमैन को लगता था कि वो राष्ट्रवादी है और पीएम की हत्या करके उसने एकदम सही काम किया. उसे उम्रकैद की सजा हुई लेकिन बाद में 13 साल की कैद के बाद वह रिहा हो गया
लॉयन प्रधानमंत्री को गोली मार दी
14 नवंबर 1930 के दिन जापान के लॉयन प्रधानमंत्री कहे जाने वाले ओशाची हमागुची तोक्यो स्टेशन के गेट से अंदर घुसे. वह ट्रेन पर चढ़ने वाले ही थे कि उन पर गोली चला दी गई. गोली मारने वाला शख्स एक पैट्रियाटिक सोसायटी का सदस्य अकियोकुशा था. इस सोसायटी को तामेगोसागोया के नाम से जाना जाता था.
जिस शख्स ने हमला किया वो अपने दक्षिणपंथी विचारों के लिए जाना जाता था. उसकी संस्था भी उन्हीं विचारों को पोषित करती थी. माना जाता है कि इस संस्था ने ही उसे पीएम की हत्या के लिए कहा था.
हमागुची को जापान का ताकतवर प्रधानमंत्री माना जाता था. वो साहसी थे. बगैर डरे बड़े से बडे़ जोखिम वाले फैसले ले रहे थे लिहाजा लोग उन्हें तारीफ में लॉयन कहने लगे थे. हमलावर इसलिए नाखुश था कि प्रधानमंत्री ने निशस्त्रीकरण की संधि पर क्यों हस्ताक्षर कर दिए. उसे ये भी लगता था कि उनके रहते देश और सेना कमजोर होगी.
इस हमले में प्रधानमंत्री बच जरूर गए लेकिन चोटों से नहीं उबर पाए. आठ महीने बाद उनकी मृत्यु हो गई. हमलावर को फांसी की सजा
सम्राट हिरोहितो पर तीन बार कातिलाना साजिश
1920 और 1930 के दशक में जापान में लंबे समय तक सम्राट रहे हिरोहितो पर तीन बार कातिलाना हमले हुए या साजिश रची गई. हर बार वह बच गए. जब वह प्रिंस सार्जेंट थे तब 27 दिसंबर 1923 के दिन अपने सैन्य वाहन से जा रहे थे. तभी घात लगाकर उनके वाहन पर गोली चलाई गई.
सौभाग्य से वह खिड़की से हट गए थे और उनका सहयोगी इस हमले का शिकार हो गया. ये हमला दाइसुके नेंबे नाम के एक कम्युनिस्ट ने किया था. वह जापान और कोरियाई लोगों की सियासी हत्याओं से नाराज था. बाद में उसे फांसी की सजा हो गई.
इसके बाद 1926 में जब सम्राट हिरोहितो युवराज थे और उनकी शादी प्रिंसेस नागाको से होने वाली थी. उसी दिन उनके पिता और उनकी हत्या की पूरी साजिश थी. विस्फोट करके शादी के समारोह में हत्या की जाने वाली थी. इसकी भनक लग गई.
साजिश का भंडोफोड़ हो गया. साजिश करने वाले दो लोगों लोवर्स पाक यो और फुमियो कानेको को मृत्युदंड की सजा मिली लेकिन बाद में राजसी आज्ञा के बाद उनकी सजा को कम करके आजीवन कारावास में बदल दिया गया.
हालांकि इसके छह महीने बाद ही फुमियो ने खुदकुशी कर ली तो पाक को रिहा होने के 05 साल बाद उत्तर कोरिया की सेना ने गिरफ्तार कर लिया.
सम्राट पर हत्या का तीसरा प्रयास 1932 में फिर हुआ. तब कोरियाई स्वतंत्रता सेनानी ली बांग चांग ने उनकी घोड़ागाड़ी पर हैंडग्रेनड फेंकने की कोशिश की लेकिन निशाना चूक गया. उसे पकड़कर फांसी पर लटका दिया गया.
प्रधानमंत्री को 12 नौसैनिक अफसरों ने घेरकर भून दिया
ये 15 मई 1932 का दिन था. जापान के प्रधानमंत्री इनुकाई सुयोसी को नौसेना के 12 अफसरों ने घेर कर गोलियों से भून दिया. ये सब इतना नृशंस था कि पूरा जापान दहल गया. ये काम उन्होंने देश में तख्तापलट या अस्थिरता लाने के लिहाज से किया था.
दरअसल जिस जगह प्रधानमंत्री पर गोलियां चलाई गईं, उस समारोह में जापान की यात्रा पर आए चार्ली चैप्लिन को भी पीएम के साथ जाना था. सैन्य अफसरों को लगा था चैप्लिन अमेरिकी हैं.
अगर उनकी हत्या हो जाएगी तो अमेरिका और जापान के बीच युद्ध छिड़ जाएगा. लेकिन चैप्लिन ने सौभाग्य से अपना प्रोग्राम बदल दिया था. वह प्रधानमंत्री के बेटे के साथ सूमो कुश्ती देखने चले गए इसलिए बच गए. अन्यथा उस दिन उनकी भी हत्या हो जाती.
04 साल बाद फिर विद्रोह की कोशिश
1936 में जापान में सेना ने विद्रोह करके सत्ता हथियाने की जबरदस्त और खूनी साजिश रची. इसमें उन्होंने कई शीर्ष जापानी अफसरों और तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों की हत्या कर दी. उस समय जापान के प्रधानमंत्री केइशुके ओकादा थे.
विद्रोहियों ने उन्हें नहीं पहचाना और उनकी जगह उनके साले की हत्या कर दी गई. उसी विद्रोह में भविष्य के प्रधानमंत्री कंतारू सुजुकी बाल बाल बचे. उन पर गोली चलाई गई, जो ताजिंदगी उनके शरीर में ही रही.
टीवी डिबेट के दौरान हत्या
ये मामला तो इतना भयंकर था कि पूरी दुनिया तक इसकी गूंज गई. जापान में एक टीवी डिबेट चल रही थी. ये सार्वजनिक तौर पर हो रही थी. इसे रिकार्ड किया जा रहा था. दर्शकदीर्घा में बहुत से लोग थे. डिबेट के मुख्य वक्ता जापान सोशलिस्ट पार्टी के नेता इंजीरो आसानुमा की हत्या कर दी.
हत्यारे ने खुद को राष्ट्रवादी बताया. वो इसलिए नाराज था कि आसानुमा चीन जाकर क्यों माओ से मिलकर आए थे. वो ना जाने कहां से स्टेज पर लंबा सा चाकू लेकर पहुंचा और सबके सामने उन पर चाकु से जमकर वार किया. हर कोई बस सन्न होकर देखता रह गया. मौके पर ही सोशलिस्ट नेता की हत्या हो गई. इस मौके की तस्वीरें आज भी दुनियाभर में वायरल होती हैं.
भ्रष्टाचार उजागर करने वाले नेता की हत्या
जापान में डेमोक्रेटिक पार्टी के बड़े नेता और लेखक कोशी इशी ने देश में शीर्ष राजनीतिक स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करने का अभियान चलाया हुआ था. उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थीं लेकिन वो अपने काम में लगे थे. एक दिन उन्होंने कहा कि उनके हाथ कुछ ऐसा लग गया है जिससे प्रधानमंत्री कोइजुमी की सत्ता हिल जाएगी.
उनकी बेटी उनकी हत्या से एक दिन पहले 24 अक्टूबर 2002 को उनके साथ थी. उसका कहना था कि अचानक उसके पिता की हालत इतनी बिगड़ी कि उनकी आवाज आनी तक बंद हो गई. वह कमजोर लगने लगे. स्थिति गंभीर लगने लगी.
अगले दिन जब वह उनको घर पर छोड़कर निकली तो झाड़ियों से एक शख्स लंबी तलवार लेकर निकला. उसने घर में घुसकर कोशी की हत्या कर दी. बाद में उसने अपना जुर्म भी कबूल कर लिया लेकिन ये हत्या आज भी उजागर नहीं हो पाई कि असल इसके पीछे कौन था.