ऑटो चलाने से लेकर घर-घर में मशहूर होने तक, आसान नहीं रहा राजू ‘भैया’ की जिंदगी का सफर

नई दिल्ली. राजू श्रीवास्तव ने अपने चुटकुलों से पूरे भारत के घर-घर में अपनी पहचान बनाई और ‘गजोधर भैया’ तो जैसे उनका एक नाम ही बन गया. सदा हंसने और हंसाने वाले राजू श्रीवास्तव की जिंदगी का सफर उतना खुशगवार नहीं था, जितना उनको स्टेज पर मिमिक्री करते देखते हुए बहुतों को लग सकता था. जब राजू श्रीवास्तव कॉमेडियन बनने मुंबई पहुंचे तो जब तक उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिल गया, तब तक कुछ समय के लिए ऑटो भी चलाया. हालांकि तेजाब, मैंने प्यार किया, बाजीगर, आमदानी अठन्नी खर्चा रुपैया जैसी हिंदी फिल्मों में कुछ छोटी भूमिकाएं करने के बावजूद उनका फिल्मी करियर कुछ खास रफ्तार नहीं पकड़ सका.



इसे भी पढ़े -  Sakti News : बड़ेसीपत गांव में रजत जयंती के अवसर पर किसान सम्मेलन कार्यक्रम आयोजित, मालखरौदा जनपद अध्यक्ष कवि वर्मा, उपाध्यक्ष रितेश साहू हुए शामिल, शासन की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाने की अपील

25 दिसंबर 1963 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे राजू को हास्य प्रतिभा जन्मजात मिली थी. कला तो उनके खून में थी. उनके पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे. अपने स्कूली दिनों में राजू ने मिमिक्री शुरू की और अपने इलाके में मशहूर हो गए. इसके बाद राजू श्रीवास्तव 80 के दशक में कॉमेडियन बनने के लिए मुंबई आए. दुनिया ने उनके हुनर को सराहा जरूर मगर बहुत देर से. 20 साल की मशक्कत के बाद 2005 में उनको एक बड़ी सफलता मिली. इस साल राजू श्रीवास्तव को पहला बड़ा स्टैंड-अप कॉमेडी शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ मिला. जिसके बाद राजू ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. जबकि इससे पहले वे बहुत बेहतर काम कर चुके थे और उनका नाम फिल्मी दुनिया में किसी परिचय का मोहताज नहीं था.

इसे भी पढ़े -  Sakti News : गोवर्धन पूजा पर मालखरौदा जनपद पंचायत अध्यक्ष कवि वर्मा ने कलमी गांव में गौ माता की पूजा-अर्चना, गौ माता को कराया भोजन

error: Content is protected !!