बालोद। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के एक छोटे से गांव कोसागोंदी में निवासरत एक परिवार का गौमाता के प्रति लगाव व उनके लालन पालन को लेकर एक अनोखी सेवा देखने को मिली। इनका मवेशियों के प्रति इतना प्रेम कि उन्हें जिस घर में रहते हैं, वहीं उन्हे भी अपने परिवार की तरह रखते है। यहां मवेशियों के लिये बकायदा बिस्तर भी लगाते है। परिवार के सभी सदस्य इन मवेशियो के बीच रहते हुये उनके पूरे दिन उनकी देखभाल व सेवा करते है..इनके पास कुल 24 मवेशी है। सबके नाम भी रखे गए है। अपना नाम सुनते ही ये दौड़े चले आते है।
यूं तो ग्रामीण इलाको मे ज्यादातर ग्रामीण मवेशी पालते है और यह परम्परा पुराने समय से चली आ रही है। गाय का अपना एक अलग ही महत्व माना जाता है। आज भी ग्रामीण इलाकों में गाय-बैल पाले जाते है। उनकी देख-रेख तके साथ उन्हे पूजा भी जाता है, लेकिन अब समय के साथ-साथ मवेशी पालन में कमी आ रही है। ऐसे समय में आज भी बालोद जिले के एक छोटे से गांव कोसागोंदी का एक परिवार गौमाता की अनोखी सेवा को लेकर चर्चा में है। गुरुर ब्लॉक मुख्यालय से करीबन 12 किमी दूर स्थित ग्राम कोसागोंदी के रहने वाले किसान पन्नुराम साहू ओर उनकी पत्नी ललिता साहू गौमाता के भक्त हैं।
पन्नुराम साहू और उनकी पत्नी ललिता साहू ने अपने घर में एक अलग कमरा बनवा रखा है। यहां पर सुबह से लेकर शाम तक गौ माता की सेवा बच्चों की तरह की जा रही है। कमरे में गौ माता के लिए बिस्तर और कपड़े की भी व्यवस्था की गई है। उनके घर में 7 गाय और 17 बछड़े है यानी कुल 24। वह सभी गायों और बछड़ों का परिवार की तरह पालन पोषण करते । इन्होंने सबके अलग अलग नाम भी रखे है और इन गायों को नाम से पुकारा जाता हैं और वे समझ भी जाते हैं।
बताया गया कि पन्नू साहू अपने ससुराल से एक गाय लाए थे और तब से पति-पत्नी इस गौमाता की सेवा में जुट गए। समय के साथ-साथ अब इनके घर में मवेशियों की संख्या बढ़कर 24 हो गई है। पन्नू साहू का बेटा एवंत कुमार साहू और बहू ओमेश्वरी साहू भी गौमाता की देखभाल करते हैं यानी कि पूरा परिवार गौमाता की सेवा करता है। इस परिवार के पास 80 डिसमिल जमीन है, जिसमें वे धान की खेती करते है। इसके साथ ही घर में ट्रेक्टर है, जिसमें अन्य जगहों पर काम करने जाते है। बहरहाल आज के इस दौर मे मवेशियो के प्रति ऐसा प्रेम व उनका लालन पोषण इस तरह करना बहुत कम देखने को मिलता है।