Women Reservation Bill : PM मोदी को मिली BJP के भीतर से ही चुनौती.. महिला आरक्षण बिल का किया पुरजोर तरीके से विरोध, जानें वजह

नई दिल्ली : संसद का विशेष सत्र जारी है। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार ने आज दो बड़े कदम उठायें है। (What Are Women Reservation Bill) पहला यह कि आज से सभी सदन ने नए पार्लियामेंट भवन में प्रवेश किया तो वही दूसरा कि सरकार ने संसद के पटल पर बहुप्रतीक्षित ‘महिला आरक्षण बिल’ भी पेश किया। उम्मीद है की इसी सत्र में यह बिल पास हो जाएगा। चुनावी साल में विपक्ष इस बिल को लेकर किसी तरह का नकारात्मक रुख अख्तियार करेगा इसकी गुंजाइश भी कम है। ऐसे में पीएम मोदी संसद के स्पेशल सेशन में विपक्ष को भी साधने में सफल रहेंगे।



लेकिन इसी बीच उन्हें पार्टी के भीतर ही इस बिल को लेकर विरोध झेलना पड़ सकता है। दरअसल इस पूरे बिल को लेकर मध्यप्रदेश की पूर्व सीएम और भाजपा की दिग्गज महिला नेत्री उमा भारती ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। उन्होंने सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि वह इस बिल का पुरजोर विरोध करेंगी। उन्होंने 1996 में भी इसका विरोध किया था।

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क्या है विरोध की वजह

उमा भर्ती ने इस बिला विरोध करते हुए यहाँ तक कह दिया कि राष्ट्रवादी नेता अब बीजेपी छोड़ कर नई जगहों पर जा रहे है। उन्होंने पत्र लिखते हुए कहा कि महिला आरक्षण बिल में ओबीसी का 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान जरूरी है। 50 प्रतिशत के बिना ओबीसी महिलाएं पीछे छूट जाएंगी। पिछड़ों के हक की बात हमारा अधिकार है और इस बिल से पिछड़ों का भरोसा टूटेगा। उन्होंने कहा दिल्ली में जो हुआ, उसके लिए आज से अभियान चलेगा। एमपी में भी शिवराज सरकार से मांग करूंगी कि इस बिल के भीतर ओबीसी के लिए भी उप आरक्षण की व्यवस्था हो। यहां विधानसभा में भी महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए।

विपक्ष ने दिया था साथ

पत्र में उमा भारती ने बताया कि सन 1996 में भी यह बिल पेश किया गया था लेकिन उन्होंने तब भी इसका विरोध किया था। उन्होंने देवेगौड़ा सरकार से कहा था कि जब तक एससी, एसटी और ओबीसी की स्थिति स्पष्ट नहीं करते, बिल वापस ले लीजिए। इस विरोध के बाद उनकी ही पार्टी के नेता उनसे नाराज हो गए थे। ऐसे में विपक्ष के नेता नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव ने उनका साथ दिया था।

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क्या है महिला आरक्षण बिल

महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था। लेकिन पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।

बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था। इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं।

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