Asian Games 2023 : मनरेगा मज़दूर ने जीता देश के लिए एशियन गेम्स में मेडल, जानें रामबाबू की कहानी है संघर्ष भरी

यूपी के सोनभद्र से चीन का हांगझाऊ भले ही दूर हो, लेकिन ये दूरी भी एक रेसर के हौसलों को नहीं तोड़ पाई. यहां चल रहे एशियन गेम्स 2023 में बहुत से एथलीट्स ने मेडल जीते हैं, इन्हीं में से एक हैं रेस वॉक में कांसा जीतने वाले रामबाबू



ram baboo Asian Games 2023
रामबाबू और उनकी साथी मंजू रानी ने 35 KM मिक्स्ड रेस वॉक स्पर्धा में ब्रॉन्ज़ मेडल हासिल किया है. वैसे तो दोनों ही खिलाड़ियों ने इस मेडल के लिए ख़ूब पसीना बहाया है, लेकिन रामबाबू की कहानी बहुत ही अलग है. सोनभद्र से हांगझाऊ में मेडल जीतने तक की रामबाबू की स्टोरी बड़ी ही संघर्ष भरी और प्रेरणादायक है.

कच्चे घर में रहते हैं रामबाबू

रामबाबू यूपी के सोनभद्र ज़िले के एक गांव में खपरैल के बने कच्चे घर में रहते हैं. उन्हें बचपन से ही खेल में रूची थी, इसलिए स्कूल की फ़ूटबॉल टीम जॉइन कर ली. मगर उनका स्टैमिना देख कोच ने रामबाबू को रेसिंग के लिए तैयार होने की बात कही. फ़िल्म ‘बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन’ को देख रामबाबू को लॉन्ग डिस्टेंस रनिंग में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली थी.

किया है वेटर का काम

मगर रेस के दौरान वो काफ़ी थक जाते थे और ग़रीबी के चलते उन्हें अच्छी डाइट नहीं मिल रही थी इसलिए जल्दी रिकवर भी नहीं हो पाते. तब कोच ने उन्हें रेस वाक ट्राई करने को कहा. रेस वॉक की ट्रेनिंग लेने के लिए ये बनारस आ गए. यहां इन्होंने काफ़ी संघर्ष किया. ये वेटर के काम के साथ ही ट्रेनिंग करते थे. सुबह 4-8 बजे तक ट्रेनिंग करते और दिन में काम. ये बहुत ही थकाऊ काम था पर रामबाबू ने हार नहीं मानी.

पिता हैं मज़दूर

रामबाबू ने एक इंटरव्यू में बताया कि कमाई कम थी और काम ज़्यादा, लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्हें वो काम करना था. उनका कहना है कि उनकी मां ने कुछ करने के लिए उन्हें प्रेरित किया. रामबाबू के पिता एक दिहाड़ी मज़दूर हैं. उनके घर में बिजली भी कुछ समय पहले आई है. मां अभी भी पीने के पानी के लिए कई मील तक पैदल जाती हैं

मां से मिली प्रेरणा

उन्होंने ही बेटे को कहा कि जब तक इस जीवन में कुछ कर नहीं लोगे या हासिल नहीं कर लोगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा. मां की यही बात उन्हें हर पीड़ा को सहने की हिम्मत देती थी. मगर ट्रेनिंग के दौरान कई बार इंजरी ने परेशान किया. तब वो Sports Authority of India (SAI) के भोपाल वाले सेंटर में आ गए. यहां ओलंपियन बसंत सिंह राणा की छत्रछाया में उन्हें अच्छी ट्रेनिंग मिली.

मनरेगा में किया काम

During the COVID-19 lockdown 24-year old Ram Baboo dug ditches under MNREGA. Previously he’d worked as a waiter. But he never lost sight of his goal – to be an athlete. Today he won Asian Games🥉 in the 35km race walk mixed team that allowed 🇮🇳 to equal it’s best ever Asiad tally pic.twitter.com/FCkWbOLzdj

— jonathan selvaraj (@jon_selvaraj)

उन्होंने ही रामबाबू की डाइट से लेकर किट तक के कई बार रुपये दिए थे. उनके स्पोर्ट से ही टाइमिंग भी अच्छी निकलने लगी. मगर इसी बीच कोरोना आ गया और पूरे देश में लॉकडाउन लग गया. तब उन्हें ट्रेनिंग छोड़ घर लौटना पड़ा. यहां फिर से आर्थिक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हो गईं. तब उन्होंने घर को सपोर्ट करने के लिए मनरेगा में काम करना शुरू कर दिया.

लॉकडाउन में की जारी रखी ट्रेनिंग

वो दिहाड़ी मज़दूर की तरह तालाब और सड़क बनाने का काम करते. इससे उन्हें 200-300 रुपये मज़दूरी मिलती थी. मगर ये मुश्किल घड़ी भी रामबाबू के इरादों को तोड़ न सकी. लॉकडाउन के दौरान ही वो कोच के भेजे गए ट्रेनिंग वीडियो को देख गांव की सड़कों पर ही ट्रेनिंग करते थे. इसके बाद Race Walking Championships Ranchi 2021 में उन्होंने 50 KM की स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता.

जीते कई मेडल्स

अलगे साल हुए नेशनल ओपन्स में 35KM की स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड जीता. Race Walking Championships 2022 में सिल्वर मेडल जीता. इस तरह उन्होंने पेरिस ओलंपिक और एशियन गेम्स का टिकट हासिल किया. एशियन गेम्स में तो मेडल मिल गया अब उनका सपना पेरिस में परचम लहराना है.

अब भी नहीं सुधरे हालात

अगर आप सोच रहे हैं कि रामबाबू का संघर्ष यहीं ख़त्म हो गया है तो आप ग़लत हैं. वो अभी भी आर्थिक समस्या से जूझ रहे हैं. राज्य सरकार ने उनको 6 लाख रुपये देने की बात कही थी मगर अभी तक नहीं मिले. इसलिए वो आर्मी में भर्ती होने की कोशिश कर रहे हैं.

हमारे देश में रामबाबू जैसे बहुत से स्पोर्ट्स स्टार है जो मुफलिसी में जीते हुए मेडल तो जीत लाते हैं, लेकिन उनकी सुध कोई नहीं लेता. उम्मीद है कि आने वाले समय में रामबाबू को वो सब मिलेगा जिसके वो हक़दार हैं.

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