अब विदेश नहीं जा रहे इस जिले के संतरे, 50% घट गए दाम, मायूस किसानों ने बताई चौंकाने वाली वजह

मध्य प्रदेश का आगर मालवा जिला अच्छे संतरों के लिए देश के साथ-साथ विदेशों में भी पहचाना जाता है. लेकिन, इन दिनों इसके संतरों पर किसी की नजर लग गई है. संतरों की अच्छी पैदावार होने के बावजूद इन दिनों इसके अच्छे भाव किसान को नहीं मिल रहे. कहा तो जा रहा है कि बार-बार बदलते मौसम की वजह से इसकी मांग में कमी आ गई है. लेकिन, असली वजह अभी भी सामने नहीं आई है.



 

 

 

 

1. बता दें, अकेले आगर मालवा जिले में लगभग पैतीस हजार हेक्टेयर जमीन पर संतरा उत्पादन करता है. इसकी मांग नेपाल, भूटान, पाकिस्‍तान और बंगलादेश में भी खासी है. हैरानी की बात यह है कि संतरों की इस मांग के बावजूद यहां उसे लंबे समय तक सहेजने के लिए फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है. इसका नतीजा ये है कि किसान संतरों की बहार आने के बावजूद फसलें बेच रहे हैं.

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2. संतरे महाराष्ट्र के नागपुर और मप्र के मालवा में ज्यादा होते हैं. नागपुर के संतरे आकार में थोड़े बड़े होते हैं. हालांकि, उनका भाव मालवा के संतरों से कुछ ज्यादा होता है. परंतु मालवा के संतरों की विशेषता होती है कि यहां का संतरा ज्यादा दिन तक खराब नहीं होता. अगर यहां फूड प्रोसेसिंग यूनिट लग जाए तो संतरों को ज्यादा समय तक सहेजकर रखा जा सकता है.

 

 

 

3.अभी तक किसानों को संतरे का 30 से 40 रुपये प्रति किलो भाव मिल रहा था. कम से कम यही भाव होना भी चाहिए. लेकिन, अब यह 10 से 15 रुपये किलो बिक रहा है. मंडी में इसका भाव 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल था. लेकिन, अब 1000 से 1500 रुपये तक ही भाव मिल रहा है. इस तरह एक क्विंटल पर किसान को 1500 से 2500 रुपये तक नुकसान उठाना पड़ रहा है.

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4.जिले के किसान देवीसिंह और जय नारायण यादव को अफसोस है. उनका कहना है कि फरवरी-मार्च में आने वाली फसल को बाहरी व्यापारी नवंबर और दिसंबर के महीने में ही खरीद लेते थे. लेकिन इस बार किसानों को अभी तक सही खरीददार नहीं मिला है. जिले के व्यापारी पवन अग्रवाल का कहना है कि जिले में एक भी बड़ा उद्योग नहीं है. यदि फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट ही डल जाती तो जिले के संतरे को आसानी से लंबे समय तक सहेजा जा सकता था.

 

 

 

5.हर बार चुनाव में जिले में फूड प्रोसेसिंग यूनिट को लेकर मुद्दा भी बनाया जाता है. लेकिन, हर बार आश्वासन ही मिलता है. इस बार भी आगामी लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा फिर से उठेगा. इस बार उम्मीद थी कि ये हरे भरे बगीचे और किसानों के चेहरे मुरझाएंगे नहीं. लेकिन, व्यापारियों की बेरुखी और सरकार की अनदेखी की वजह से किसान मायूस हो गए हैं.

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