विश्व रेडियो दिवस आज : कोरोना काल में बढ़ी लोगों के बीच रेडियो की लोकप्रियता

विश्व रेडियो दिवस आज
लॉक डाउन के दौरान जब लोगों की गतिविधियां अपने घरों तक सीमित हो गई थीं, तो बाहर की दुनिया से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया के अलावा पुराने विकल्पों की ओर भी एक बार रुख किया गया। रेडियो भी ऐसा ही एक विकल्प रहा। इसकी लोकप्रियता में इस दौरान काफी इजाफा देखा गया। आंकड़ों के मुताबिक कोरोना काल में राष्ट्रीय स्तर पर रेडियो के श्रोता 16-20 प्रतिशत बढ़े। रांची रेडियो की आम लोगों के बीच लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी यहां चार रेडियो एफएम हैं। इसके अलावा रांची विश्वविद्यालय का सामुदायिक रेडियो खांची भी पिछले वर्ष लॉकडाउन लागू होने के ठीक पहले 8 मार्च को शुरू हुआ। इसके अलावा जल्द ही केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड (सीयूजे) का भी सामुदायिक रेडियो शुरू होने जा रहा है।
मनोरंजन के बेहतर विकल्प के तौर पर उभरा
रांची में अभी चार एफएम चैनल हैं। सभी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय है। शहर की गतिविधियों पर केंद्रित इसके कार्यक्रम, खास लोगों के साक्षात्कार, मनोरंजक कार्यक्रम, गाने और समाचार काफी पसंद किए जा रहे हैं। लगभग एक दशक तक आरजे रह चुके और वर्तमान में रेडियो प्रोग्रामिंग से जुड़े भूपेश शर्मा कहते हैं कि समाचार पत्रों की तरह रेडियो की विश्वसनीयता ने इसे फिर से लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया। कोरोना संकट के दौरान जब सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर भ्रामक और पूर्वाग्रह से ग्रसित खबरों की भरमार थी, उस दौरान समाचार पत्र और रेडियो ही ऐसे माध्यम रहे, जिनकी सूचनाओं पर लोगों ने भरोसा किया। साथ ही, टीवी और मोबाइल से भी लोग ऊब चुके थे। ऐसे में रेडियो पर सदाबहार फिल्मी गानों के अलावा स्थानीय कलाकारों को भी सुनना एक बेहतर बदलाव साबित हुआ।
स्थानीय कलाकार श्रोताओं से जुड़े :
गजल गायिका मृणालिनी अखौरी कहती हैं कि लॉकडाउन लागू होने के बाद लगभग सभी कलाकार बेरोजगार हो गए थे। उन्हें लोगों तक पहुंचने का कोई मंच नहीं मिल रहा था। ऐसे में रेडियो ने उन्हें श्रोताओं से जुड़ने का अवसर दिया। कलाकार घर से अपने ऑडियो की रिकॉर्डिंग करके भेजते रहे, जिन्हें विभिन्न रेडियो पर ऑन एयर किया गया। कोरोना संकट में दुर्गापूजा, छठी मैया के गीत समेत अन्य त्योहारों पर आधारित कार्यक्रमों ने स्थानीय कलाकारों को श्रोताओं से जोड़ा।
ऑनलाइन कक्षाएं भी चलाई गईं :
रांची विश्वविद्यालय ने लॉकडाउन के दौरान अपने कम्युनिटी रेडियो खांची का इस्तेमाल ऑनलाइन शिक्षण के लिए किया। रेडियो खांची से सभी 22 कोर विषयों के 1000 से अधिक ऑडियो लेक्चर प्रसारित किए। साथ ही, मनोरंजक व दिवस विशेष पर आधारित कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया गया। इसकी उपयोगिता को देखते हुए यूनिसेफ ने भी कोरोना पर आधारित जागरुकता कार्यक्रमों के लिए रेडियो खांची की सेवा ली।
विशेषज्ञों ने कहा :
लगभग एक वर्ष से मंच पर कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हुआ है। इस दौरान हमारे जैसे कलाकार रेडियो के माध्यम से अपने श्रोताओं से जुड़े रहे। सुनकर आनंदित होने का भाव रेडियो ही दे सकता है।
– मृणालिनी अखौरी, गजल गायिका
कोरोना काल में रेडियो के लिए कई गीत गाए। इनमें दुर्गा पूजा और छठ पर्व के गीत भी थे। इन्हें काफी पसंद किया गया। टीवी से ऊब चुके दर्शक रेडियो सुनना पसंद कर रहे हैं। यह अच्छा बदलाव है।
-आशुतोष द्विवेदी, भोजपुरी गायक
महामारी के दौर में रेडियो की विश्वसनीयता इसकी लोकप्रियता का कारण बनी। इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनलों और सोशल मीडिया की खबरों पर लोग भरोसा नहीं करते। हम जानकारी के साथ मनोरंजन भी दे रहे हैं।
– भूपेश शर्मा, आरजे
रेडियो लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ गया है। गाड़ी में आते-जाते लोग रेडियो सुन रहे हैं। इसमें गाने के साथ विशेषज्ञों की सलाह, हर आयुवर्ग के कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं। आजकल टीवी के कार्यक्रमों में एकरसता है, जबकि रेडियो में विविधता है।
– रागिनी, आरजे
आज विश्व रेडियो दिवस
यूनेस्को के सदस्य देशों की ओर वर्ष 2011 में विश्व रेडियो दिवस की घोषणा की गई थी। इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में अपनाया था। तब से 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र का संदेश है कि रेडियो स्टेशन को विविध समुदायों की सेवा और कार्यक्रमों, दृष्टिकोण और सामग्री की एक विस्तृत विविधता की पेशकश करनी चाहिए।



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