Booker Prize-2022 : देश की पहली हिंदी लेखिका, जिनका नाम हुआ… बुकर पुरस्कार-2022 की दावेदारी लिस्ट में शामिल…जानिए इस लेखिका के बारे में….कौन है?

दिल्ली में रहनेवाली लेखिका गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree) के उपन्यास ‘रेत समाधि’ को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार (Booker Prize) के लॉन्गलिस्ट में शामिल किया गया है। यह पहली हिंदी कृति है, जिसने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के दावेदार किताबों की सूची में जगह बनाई। यह किताब अंग्रेजी में ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ नाम से उपलब्ध है, जिसे डेज़ी रॉकवेल ने हिन्दी से अंग्रेजी में ट्रांसलेट किया है और यह अब भारत में भी खरीदी जा सकती है।



गीतांजली (Geetanjali Shree) के काम को बेहद सराहा गया है और जजों का मानना है कि यह किताब जाति, धर्म, देश और लिंग की सिमाओं के खिलाफ एक जबरदस्त प्रोटेस्ट है। अगर गीतांजलि के किताब ने यह खिताब (Booker Prize) हासिल किया, तो उन्हें GBP 50,000 से सम्मानित किया जाएगा, जो लेखक और अनुवादक के बीच समान रूप से बांटा जाएगा।

उत्तर भारत की झलक दिखाते हुए, बुकर पुरस्कार (Booker Prize) के लॉन्गलिस्ट में शामिल ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ में एक 80 वर्षीया महिला के जीवन की कहानी लिखी गई है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद गहरे डिप्रेशन में चली जाती है और फिर इसके बाद का जीवन जीने के लिए फिर से खुद को तैयार करती है।

एक मायने में यह कहानी जीवन के दूसरी पारी की है। गीतांजली (Geetanjali Shree) के लेखन को अक्सर गहन आत्मनिरीक्षण के रूप में वर्णित किया जाता रहा है और इस किताब में यह बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है।

अपनी भावनाओं को कागज़ पर उतारना देता है सुखद एहसास

गीतांजली की ‘रेत समाधि’ साल 2018 में प्रकाशित हुई थी। इससे पहले वह चार उपन्यास लिख चुकी हैं, जिनमें माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित और खाली जगह, शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में जन्मी गीतांजली ने कई लघु कथाएँ भी लिखी हैं। उनके लेखन का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, सर्बियाई और कोरियाई में अनुवाद किया गया है।

इस विशेष इंटरव्यू में, उन्होंने अपनी लेखन यात्रा और शुरुआती प्रभावों के बारे में बात की और साथ ही बुकर (Booker Prize) की लॉन्गलिस्ट में शामिल होने के अपने उत्साह को भी साझा किया है।

बचपन से ही साहित्य के बीच पली-बढ़ी गितांजली ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “ऐसा कोई एक खास क्षण या कोई एक खास घटना नहीं थी, जिसने मुझे लेखक बनने के लिए प्रेरित किया। बस मैं खुद को व्यक्त करना चाहती थी और इसी चाह ने मेरे हाथों में कागज-कलम पकड़ाया। कागज़ पर शब्दों को उतारने से बेहतर तरीका, अपनी भावनाओं को जाहिर करने का कुछ नहीं हो सकता।”

‘मैं ऐसे समय में पली-बढ़ी, जब किताबें पढ़ने का कल्चर बहुत ऊपर था

वह बताती हैं, “मेरे पिता एक ब्युरोक्रेट थे। वह एक लेखक भी थे और मेरे घर का माहौल ऐसा ही हुआ करता था। मैं ऐसे समय में पली-बढ़ी हूं, जब ‘नया भारत’ एक आदर्शवाद था। मैं इलाहाबाद में पली-बढ़ी हूं और मुझे, उस समय के कई जाने-माने लेखकों से बातचीत करने का मौका मिला।

सुमित्रानंदन पंत, फिराक गोरखपुरी, महादेवी वर्मा और कई अन्य हिंदी और उर्दू लेखकों से मेरी बातचीत हुआ करती थी।”

घर के माहौल के कारण गीतांजलि (Geetanjali Shree) हमेशा किताबों, साहित्य और साहित्य जगत की जानकारियों से घिरी रहती थीं। वह बताती हैं, “जब मैं बड़ी हो रही थी, तब मनोरंजन के कुछ और विकल्प भी थे, लेकिन मेरी लिस्ट में पढ़ना हमेशा ऊपर था।

आस-पास सभी प्रकार के साहित्य उपलब्ध थे – गंभीर, हल्के और यहां तक ​​कि मनोरंजक भी।” अब तो लोगों के पास मनोरंजन के कई तरीके हैं और साहित्य कई तरीकों में से एक तरीका बन गया है। वह कहती हैं, “आज के समय में ठहराव की कमी है। ठहराव एक ऐसी चीज है, जो किसी को भी अपने विचारों के साथ रहने की अनुमति देता है।”

कुछ चीजों को याद करते हुए, बुकर पुरस्कार (Booker Prize) के लॉन्गलिस्ट में शामिल गीतांजलि कहती हैं, “मैं अपने घर से सूर्योदय या सूर्यास्त होते हुए नहीं देख पाती हूं – मैं चारों तरफ से बड़ी ऊंची इमारतों से घिरी हुई हूं। हालांकि, मैं शुक्रगुजार हूं कि मेरे पास घर है, लेकिन मुझे ये चीजें बहुत याद आती हैं, क्योंकि मैं ये सब देखते हुए ही बड़ी हुई हूं।”

लिखना अपने आप में एक पुरस्कार है

विस्तार से बात करते हुए वह कहती हैं, “जब मैंने लिखना शुरू किया, तो मैं बहुत मेहनती थी। मैं अपना काम सुबह 9.30 बजे शुरू कर देती और लगभग शाम 5.00 बजे तक लिखने की कोशिश करती। इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हर दिन लिख रही थी, लेकिन मैं उस जगह पर थी। मैं अपनी गति से सोच पाती थी और लिख पाती थी।”

लिखने के साथ, गीतांजली अन्य लेखकों की किताबें पढ़ती थीं और उनमें पूरी तरह डूब जाती थीं।जबकि वह लंबे समय तक इस दिनचर्या से जुड़ी रहीं, लेकिन उनका कहना है कि एक बार उनका काम प्रकाशित हो जाने के बाद यह मुश्किल होने लगा। वह बताती हैं, “मेरा इवेंट और मीटिंग की दुनिया से परिचय कराया गया। ऐसे साहित्यिक उत्सव थे जिनमें मैं भाग ले रही थी। हालांकि यह सब बहुत अच्छा था, लेकिन इसने मेरी दिनचर्या को थोड़ा बदल दिया। मैंने कई और ब्रेक लेना शुरू कर दिया।”

लिखने के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं, “इसकी अप्रत्याशितता दिलचस्प है। ऐसा नहीं है कि जब मैं पहला शब्द लिखती हूं, तो मुझे सब पता होता है कि क्या लिखना है। जब मैं वह पहला वाक्य लिखती हूं, तो मैं एक यात्रा शुरू करती हूं। यह हमेशा अज्ञात यात्रा की तरह होता है। मैं एक बीज छवि/संवाद/विचार से शुरू करती हूं और वहां से मेरी रचनाएं जन्म लेती हैं।”

वह सहजता के साथ लिखती है”

इस काम की अनुवादक, डेज़ी के साथ काम करने पर, गीतांजली कहती हैं, “हमें ई-मेल के जरिए एक-दूसरे से मिलवाया गया था, मैं डेज़ी से आमने-सामने कभी नहीं मिली, फिर भी उनके साथ काम करना बहुत आसान और मज़ेदार रहा।

मैंने पाया कि वह मेरी स्वभाव, मेरी सोच को बहुत अच्छी तरह से समझती हैं और ताल-मेल बिठाती हैं। हमारे बीच कई चर्चाएं हुईं, जिनमें कुछ पर सहमति बनी और कुछ पर असहमति भी हुई और ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ के रूप में परिणाम आपके सामने है।”

गीतांजली अपने नाम के साथ, परिवार के उपनाम की जगह अपनी मां, श्री कुमारी पांडे, का पहला नाम लगाती हैं। 95 वर्षीया उनकी मां एक खुशमिजाज महिला हैं। वह कहती हैं, ”गीतांजली का लेखन आपको सहज महसूस कराएगा। उसकी बातों में एक तरह का ठहराव है। वह सहजता के साथ लिखती है और अपने लेखन में सांसारिक और नियमित रोजमर्रा की जिंदगी को बहुत खूबसूरती से सामने लाती है।”

यह पूछे जाने पर कि बेटी को बुकर (Booker Prize) के लिए नामांकित किए जाने पर वह कैसा महसूस कर रही हैं? वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, “वह मेरी बेटी है, निश्चित रूप से, मुझे खुशी और गर्व होगा। मेरे लिए, वह पहले से ही एक विजेता है।”

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