जांजगीर-चांपा. औषधीय गुणों से युक्त नकद फसल अदरक और हल्दी की खेती के प्रति जिले के किसानों का रूझान बढ़ रहा है। हल्दी और अदरक की फसल कम लागत मे अधिक आय देने वाली होने के कारण किसान अब इन फसलों कों उगाने की ओर प्रेरित हों रहें है।
कलेक्टर यशवंत कुमार के निर्देश एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत तीर्थराज अग्रवाल के मार्गदर्शन में जिले में हल्दी (मसालें) फसल की खेती को बढावा दिया जा रहा है। जिले के किसान हल्दी (मसाले) फसल खेती के प्रति हो रहे है जागरूक।
उप संचालक कृषि एमआर तिग्गा ने बताया कि हल्दी एवं अदरक मसाले वाली दो ऐसी फसल है जिन्हें जांजगीर-चांपा जिले में उगाने की अचछी सम्भावनाएं है। इनकी खेती के लिए विशेष देखरेख की भी आवश्यकता नही पड़ती है क्योंकि ये हर प्रकार की जमीन में आसानी से उग जाती है। इनको छायादार स्थानों में तथा बडे वृक्षों के नीचे जहां अन्य फसलें नही ली जा सकती, वहां भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन दोनो फसलों को गृहवाटिका में भी उगाया जा सकता है।
जिलें केे विकासखण्ड – सक्ती के कृषक रामकुमार पटेल (0.15 हेक्टेयर), श्री अश्वनी कुमार पटेल (0.125 हेक्टेयर) ,बिहारी लाल कंवर (0.10 हेक्टेयर) एवं अन्य किसानों द्वारा हल्दी फसल की खेती की जा रही है। आगे आने वाले वर्षों मे फसल के क्षेत्रफल मे बढोत्तरी की संभावनाएं है।
इसी प्रकार विकासखण्ड मालखरौदा के कृषक बिहारी लाल चंद्रा (0.80 हेक्टेयर) ,चेतन प्रसाद चंद्रा ( 1.0 हेक्टेयर) , खगेश्वर प्रसाद चंद्रा(0 .50 हेक्टेयर) और बरनलाल चंद्रा(0.40 हेक्टेयर) में अदरक फसल की खेती की जा रही है।
कृषि एवं उद्यान विभाग के द्वारा जिले में मसाले फसलों के क्षेत्रफल मे विस्तार हेतु विभागीय अमलों को यह निर्देश दिया गया है कि खेत के खाली मेड़ों एवं अन्य फसलो के साथ अंतरवर्ती फसल के रूप मे हल्दी और अदरक फसलों की खेती करने किसानों को प्रेरित करें ताकि कृषक मुख्य फसल के अलावा अन्य फसलों से अतिरिक्त आमदानी अर्जित कर सके। किसानों द्वारा मेड़ों एवं अंतरवर्ती फसल की खेती करने से मुख्य फसल को कीटव्याधी, रोग एवं अन्य कारकों से फसल को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
अच्छी किस्मों की अनुपलब्धता तकनीकी जानकारी एवं सिचाई साधन के अभाव के कारण क्षेत्र में इनकी खेती का प्रसार नही हो पाया परन्तु विगत दो वर्षो में जिले में जल ग्रहण प्रबन्धन की सफलता की बदौलत सिंचित क्षेत्र में काफी बढोत्तरी हुई है अतः ऐसे क्षेत्रों में हल्दी एवं अदरक की खेती को बढावा देकर किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार लाया जा सकता है। अन्य फसलों की अपेक्षा मसालों की खेती प्रति इकाई क्षेत्रफल अधिक आमदनी देती है। हल्दी का हमारे दैनिक जीवन में बहुत अधिक उपयोग होता है हल्दी का मसाले में उपयोग के अतिरिक्त इसको प्राकृतिक रंग के रूप में अन्य व्यंजनों एवं मिठाई आदि को रंग देने में प्रयोग किया जाता है। घर में हल्दी को सौभाग्य सूचक सामग्री के रूप में माना जाता है।
आजकल सौंन्दर्य प्रसाधन उद्योग में भी इसकी मांग बढने लगी है। आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका काफी महत्व है। पोषण की दृष्टि से भी हल्दी का सेवन काफी लाभकारी है। बहुपयोगी होने के कारण हल्दी और अदरक मांग को देखते हुये कृषक हल्दी की खेती करके अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। हल्दी का उपयोग कफ विकार, त्वचा रोग, रक्त विकार, यकृत विकार, प्रमेह व विषम ज्वर मे लाभ पहुंचाता है। हल्दी को दूध में उबालकर गुड के साथ पीने से कफ विकार दूर होता है।
खांसी में इसका चूर्ण शहद या घी के साथ चाटने से आराम मिलता है। चोंट, मोंच ऐंठन या घाव पर चूना, प्याज व पिसी हल्दी का गाढा घोल हल्का गर्म करके लेप लगाने से दर्द कम हो जाता है। पिसी हल्दी का उबटन लगाने से त्वचा रोग दूर होते है साथ ही शरीर कान्तिमान हो जाता है।