पर्यावरण प्रेमी दीपक तिवारी ने पौधारोपण कर समाज को दिया संदेश, पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को लगातार करते आ रहे हैं जागरूक

जांजगीर-चाम्पा. ग्राम तिलई निवासी पर्यावरण प्रेमी, युवा दीपक तिवारी, लंबे समय से जनकल्याण और प्रकृति पर्यावरण के लिए कार्य कर समाज को जागरूक करने का कार्य करते आ रहे हैं. इसी कड़ी में रविवार को अपने घर के पास पुरैना तालाब किनारे पीपल का पौधा लगाया और लोगों पेड़ पौधा लगाने प्रेरित किया.
गौरतलब है कि युवा लेखक दीपक तिवारी की समाजहित में लंबे समय से विशेष भूमिका है. इससे पहले वे पिछले दस वर्षों से स्वयं के खर्च पर पक्षी पर्यावरण अभियान चला रहे हैं और गर्मी में पंछियों को बचाने और उन्हें सुरक्षित रखने निःशुल्क मिटटी के सकोरे, दाने के पैकेट, पाम्पलेट व लकड़ी का घोसला बाटते हैं.
हाल ही में उन्होंने समाज को जागरूक करने लॉक डउन के समय को लोकहित में लगाते हुए बेटी शिक्षा, सुरक्षा, सम्मान, समानता व कन्या भ्रूण हत्या पर पुस्तक लिखा था. इसका विमोचन छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किया था और दीपक के कार्यों की अपने रायपुर स्थित निवास में प्रशंसा भी की थी.
पौधरोपण के दौरान दीपक ने लोगों को निवेदन करते हुए कहा कि –
मनुष्य के बिना पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं, वायुमंडल का जीवन संभव है, परंतु मनुष्य का जीवन इनके बिना असंभव है। क्यों, क्योंकि सामान्यतः तीन मिनट तक वायु न मिले, तो मनुष्य मर जाता है.
वायुमंडल, जल मंडल ( समुद्र, नदी, नाले, तालाब, झीलें ), पहाड़-घाटियाँ, बर्फीले और रेतीले मैदान, लंबे-चौड़े सपाट मैदान, घने जंगल, हजारों तरह के अरबों-खरबों पेड़-पौधे और जीव-जंतु थे।
धरती माता हमें एक बीज के बदले लाखों अन्न के दाने या फल देती है और हम है के अन्नपूर्णा मां के पेट में
केमिकल रासायनिक दवाई कूड़ा-करकट, नष्ट न होने वाला कचरा, पॉलिथीन व प्लास्टिक के पाउच ठूँसकर हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। हमे सभी को इस पर निश्चित ही जागरूक होने की आवश्यकता है.
वृक्ष ने मनुष्य को प्राणवायु, जल, छाया, रोटी-कपड़ा, मकान, फर्नीचर, दवा, कागज, स्याही, रंग, कॉस्मेटिक्स, शराब, औजार, सुगंधित पदार्थ आदि सैकड़ों तरह के वरदान तो दिए ही हैं। वृक्ष स्वंय शोर और वायु प्रदूषण के जहर को स्वयं पी जातें हैं। वृक्ष बरसात के जल को अपनी जड़ों के माध्यम से धरती के भीतर तक पहुँचाते हैं, ताकि गर्मी में मनुष्य को जल की कमी ना हो.
निःसंदेह सभी कथनों से यह स्पष्ट है कि वृक्ष हमारे भीतर चुपचाप सहिष्णुता, उदारता, उद्दात्तता, करुणा, दया, ममता, अहिंसा, समन्वय क्षमता, मानवता, समरसता, पारिवारिकता, सहनशीलता और विश्व बंधुत्व का भाव भरते रहते हैं। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि भारत में पारिवारिक विखंडन, वर्ग भेद, हिंसा, परस्पर शत्रुता, एकता का अभाव और उनके कारण निरंकुश आतंकवाद का कारण वृक्षों और जंगलों की निर्ममतापूर्वक कटाई ही है, इसलिए सभी मिलकर प्रकृति की रक्षा करें और पर्यावरण को सुरक्षित बनाए.



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