गणेशोत्सव : जांजगीर. अष्टधातु से बनी है गणेश मंदिर की प्रतिमा, दर्शन के लिए जिले, प्रदेश और दीगर राज्यों से पहुंचते हैं श्रद्धालु, 1 क्विंटल वजन की 5 फीट की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र

जांजगीर-चाम्पा. चाम्पा क्षेत्र के सोंठी गांव में स्थित कुष्ठ आश्रम के परिसर में अष्टधातु की गणेश प्रतिमा विराजित है. जिले में यह पहला गणेश मंदिर है, जहां अष्ठधातु की प्रतिमा है, जिनके दर्शन के लिए छग के साथ ही दूसरे प्रदेशों के लोग भी पहुंचते हैं. सन 2000 में पद्मश्री स्व. दामोदर गणेश बापट की अगुवाई में इस गणेश मंदिर का निर्माण किया गया था और अष्टधातु की गणेश प्रतिमा विराजित की गई है, जिनकी ऊंचाई 5 फ़ीट है और वजन 1 क्विंटल है.

कुष्ठ आश्रम के गणेश मंदिर परिसर में गणेशोत्सव के अवसर पर मिट्टी से निर्मित प्रतिमा भी विराजित की गई, जिनकी 10 दिन पूजा-अर्चना की जाएगी और फिर विसर्जन किया जाएगा. हर साल यहां गणेशोत्सव धूमधाम से मनाई जाती है.
इस दौरान गणेश मंदिर और परिसर को सजाया गया है, जहां की भव्यता देखते ही बन रही है. अष्टधातु की गणेश प्रतिमा के दर्शन करने और गणेशोत्सव में शामिल होने दूर-दूर श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. हर दिन सुबह-शाम यहां भगवान गणेश जी की आरती हो रही है. यहां महिलाएं सुबह-शाम कीर्तन करती हैं. साथ ही, आरती के बाद प्रसाद वितरण भी किया जाता है.

कुष्ठ आश्रम के व्यवस्थापक सुधीर जी ने बताया कि पद्मश्री बापट जी ने इस सिद्धि विनायक मंदिर की स्थापना इसलिए की थी, लोग दर्शन के लिए आएं और कुष्ठ रोगियों के बारे में जानें, ताकि जो भ्रांति थी, वह दूर हो. यहां विराजित अष्टधातु की गणेश प्रतिमा की बड़ी मान्यता है और इस मंदिर की स्थापना के बाद कुष्ठ रोगियों को लेकर जन-जागरण में बड़ी मदद मिली है. गणेशोत्सव के दौरान यहां अलग-अलग आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी भागीदारी निभाते हैं और दर्शन के लिए लोग पहुंचते हैं.



आपको बता दें कि सन 1946 में सोंठी गांव में कुष्ठ से पीड़ित सदाशिव राव कात्रे ने कुष्ठ आश्रम की स्थापना की थी और अपने जीवन को कुष्ठ रोगियों के उत्थान में समर्पण कर दिया. यहां 1972 में महाराष्ट्र से पद्मश्री स्व. दामोदर गणेश बापट पहुंचे थे और उन्होंने अपना सारा जीवन कुष्ठ आश्रम को दे दिया. आज यह कुष्ठ आश्रम स्वालम्बन की बड़ी मिसाल है, क्योंकि जब तक यहां के कुष्ठ रोगी स्व मन से कुछ काम नहीं कर लेते, तब तक वे भोजन ग्रहण नहीं करते. साथ ही, आज कुष्ठ रोग को लेकर लोगों में जागरूकता आई है, जिससे कुष्ठरोगियों में जीवन जीने के आत्मबल बढ़ा है.

अभी गणेशोत्सव के दौरान गणेश मंदिर में अलग-अलग आयोजन हो रहे हैं, जिसमें कुष्ठ से पीड़ित लोग और बाहर से दर्शन करने आने वाले लोग, सामूहिक भागीदारी के साथ शामिल होते हैं, इस तरह इस आयोजन के बड़े मायने हैं और समाज के सभी लोगों को एकसूत्र में जोड़ने की बड़ी कोशिश हो रही है.

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