कैसे मुलायम की बहू बनीं अपर्णा यादव, CM योगी से भाई-बहन का रिश्ता, जानें उनके बारे में सबकुछ

यूपी के चुनावी समर में भाजपा आज अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी अखिलेश यादव के घर में सर्जिकल स्‍ट्राइक करने जा रही है। मुलायम सिंह की छोटी बहू अर्पणा यादव आज समाजवादी कुनबा छोड़ भाजपा में शामिल हो रही हैं। अर्पणा 2017 का विधानसभा चुनाव लखनऊ कैंट सीट से सपा के टिकट पर लड़ चुकी हैं। मुलायम सिंह परिवार का अहम हिस्‍सा होने के बावजूद वह यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को अपना बड़ा भाई मानती हैं। तमाम मुद्दों पर पीएम मोदी की तारीफ करती हैं। पिछले कुछ समय से उनके बीजेपी में जाने की चर्चा थी जो आज हकीकत में बदल रही है। आइए जानते हैं कि आखिर यूपी में विपक्ष के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की बहू अर्पणा की क्‍या है कहानी।



मुलायम की दूसरी पत्‍नी साधना यादव के बेटे प्रतीक यादव की पत्‍नी अर्पणा का जन्‍म एक जनवरी 1990 को हुआ था। उनके पिता अरविंद सिंह बिष्‍ट एक मीडिया कंपनी में थे। सपा की सरकार में वह सूचना आयुक्‍त भी रहे। अर्पणा की मां अंबी बिस्‍ट लखनऊ नगर निगम में अधिकारी हैं। अपर्णा की स्‍कूली पढ़ाई लखनऊ के लोरेटो कॉन्‍वेंट से हुई है। बताया जाता है कि प्रतीक यादव को वह स्कूल के दिनों से ही जानती थीं। साल-2010 में अर्पणा और प्रतीक की सगाई हुई और दिसम्‍बर 2011 में दोनों विवाह बंधन में बंध गए। विवाह समारोह का पूरा आयोजन मुलायम सिंह के पैतृक गांव सैफई में किया गया था। अर्पणा और प्रतीक की एक बेटी है जिसका नाम प्रथमा है।

राजनीति में ली है मास्‍टर डिग्री
यूपी के बड़े राजनीतिक परिवार की बहू अर्पणा ने राजनीति को विषय के तौर पर भी गहनता से पढ़ा है। उन्‍होंने ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल रिलेशन एंड पॉलिटिक्स में मास्टर डिग्री ली है।

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रीता बहुगुणा से मिली थी पराजय
अर्पणा यादव ने 2017 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लखनऊ कैंट सीट से लड़ा था। उस चुनाव में उन्‍हें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी ने हरा दिया था। गौरतलब है कि इस बार रीता बहुगुणा जोशी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से अपने बेटे के लिए भाजपा का टिकट मांग रही हैं। उन्‍होंने कल ही पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा को एक चिट्ठी लिखकर बेटे को टिकट दिलाने के लिए खुद इस्‍तीफा देने का प्रस्‍ताव रखा। रीता बहुगुणा का कहना है कि पार्टी ने एक परिवार से एक व्‍यक्ति को टिकट देने का नियम बनाया है। इस नियम के सम्‍मान में उन्‍होंने बेटे को टिकट दिलाने के लिए अपने इस्‍तीफे की पेशकश की है।

सीएम योगी को भाई मानती हैं अर्पणा यादव
अर्पणा यादव सीएम योगी को अपना बड़ा भाई मानती हैं। दोनों उत्‍तराखंड के रहने वाले हैं। यूपी के मुख्‍यमंत्री बनने से पहले भी योगी आदित्‍यनाथ की तारीफ अर्पणा यादव करती रही हैं। 2017 से पहले वह गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में दर्शन के लिए भी आई थीं। इस दौरान उनकी योगी आदित्‍यनाथ से भी मुलाकात हुई थी। योगी आदित्‍यनाथ के सीएम बनने के बाद अर्पणा यादव और प्रतीक यादव ने वीवीआईपी गेस्‍ट में उनसे मिलकर बधाई दी थी। सीएम बनने के कुछ समय बाद ही योगी आदित्‍यनाथ अर्पणा यादव और प्रतीक यादव के साथ लखनऊ में कान्‍हा उपवन देखने गए थे जहां दोनों के बीच गो-सेवा पर लम्‍बी बातचीत हुई थी। अर्पणा यादव के भाजपा में जाने की अटकलें तब भी लगी थीं लेकिन पत्रकारों से बातचीत में इस सम्‍भावना को खारिज करते हुए अपर्णा यादव ने तब कहा था कि मैं कहीं नहीं जा रही हूं। सीएम योगी एक पशु प्रेमी हैं। बस इसी वजह से हमने उन्हें यह जीवाश्रम देखने का न्यौता दिया था। कान्हा उपवन में लावारिस पशु के साथ गाय, भैंस और कुत्तों को रखा जाता है। वहां इनकी देख-रेख होती है। अर्पणा यादव की भाजपा की ओर आकर्षण तब भी देखने को मिला था जब एक पारिवारिक समारोह में पीएम मोदी के आने पर उन्होंने उनके साथ फोटो ली थी। 2017 के चुनाव से पहले भी वह आए दिन पीएम मोदी की तारीफ करती दिखती थीं।

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एनआरसी और धारा-370 पर किया था भाजपा का समर्थन
अर्पणा यादव ने समाजवादी पार्टी के स्‍टैंड से अलग हटकर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल (एनआरसी) और जम्‍मू कश्‍मीर से धारा-370 हटाए जाने का समर्थन किया था। इन दोनों मुद्दों के अलावा समय-समय पर वह अलग-अलग विषयों पर खुलकर अपने विचार व्‍यक्‍त करती रही हैं। उनकी राय कई सपा और अखिलेश यादव परिवार से अलग रही है।

राजनीति के साथ संगीत में भी है रुचि
अर्पणा यादव की रुचि राजनीति और सामाजिक कार्यों के साथ संगीत में भी रही है। बताया जाता है कि उन्‍होंने कई वर्षों तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली है। अर्पणा अपना एक संगठन चलाती हैं जो महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के लिए काम करता है।

परिवारिक मामलों में बोलने से बचती रही हैं अर्पणा
2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी मुखिया के परिवार में मचे घमासान में अर्पणा यादव शांत ही रहीं। हालांकि माना जाता है कि परिवार के अंदरूनी समीकरणों में अर्पणा और प्रतीक को अखिलेश यादव-डिंपल यादव के मुकाबले शिवपाल यादव के ज्‍यादा करीब माना जाता है लेकिन अपने साक्षात्‍कारों में अर्पणा इसे पारिवारिक मसला बताकर टालती रही हैं। कई साक्षात्‍कारों में उन्‍होंने दावा किया कि उनके परिवार में सब कुछ सामान्‍य है और राजनीतिक मतभेदों का पारिवारिक रिश्‍तों पर कोई खास असर नहीं पड़ता। हालांकि हाल में अर्पणा यादव के बीजेपी में जाने की अटकलें तेज हुई तो शिवपाल सिंह यादव ने उन्‍हें सलाह दी कि वह सपा में ही रहें और काम करें। अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है। उन्होंने कहा था राजनीति में एकदम से कुछ नहीं मिलता है। पार्टी में पहले उन्हें काम करना चाहिए और फिर फल मिलता है। गौरतलब है कि शिवपाल की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी इस चुनाव में सपा गठबंधन का हिस्‍सा है।

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