रूढि़यों के मुंह पर निकहत जरीन की ताबड़तोड़ मुक्‍केबाजी

निकहत जरीन की जीत के साथ भारत को बॉक्सिंग की पांचवीं वर्ल्‍ड चैंपियन मिल गई है. 24 साल की निकहत ने इस्‍तांबुल में हो रही विमेंस बॉक्सिंग वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में नया रिकॉर्ड बनाया है. वो 52 किलोग्राम वर्ग में थाइलैंड की जिटपोंग जुटामास को 5-0 से हराकर नई वर्ल्‍ड चैंपियन बन गई हैं.



इसके पहले मणिपुर की एम. सी मैरी कॉम वर्ष 2002 से लेकर 2008 तक और फिर 2010 और 2018 में छह बार वर्ल्‍ड चैंपियन रह चुकी हैं. वर्ष 2006 में ये खिताब मणिपुर की ही सरिता देवी ने जीता था.

2006 में ही मिजोरम की जेनी आर.एल. और केरल की लेखा के. सी. विमेंस वर्ल्‍ड एमेच्‍योर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्‍ड मेडल जीतकर वर्ल्‍ड चैंपियन बनी थीं. भारत को यह गौरव दिलाने वाली निकहत जरीन पांचवी महिला हैं.

गुरुवार को इस चैंपियनशिप का फाइनल था. रिंग में उनके सामने थीं थाइलैंड की जिटपोंग जुटामास. जिटपोंग कजाकिस्‍तान की जाइना शेकेर्बेकोवा को हराकर फाइनल्‍स में पहुंचीं थीं. जाइना, जो इसके पहले तीन बार वर्ल्‍ड चैंपियन रह चुकी हैं.

निकहत के लिए ये मैच आसान नहीं था. मुकाबला कड़ा था. लेकिन डिफेंस में खेलने और बच-बचकर शुरुआत करने की बजाय निकहत शुरू से ही अटैक की मुद्रा में आ गईं. शुरुआती तीन मिनट के भीतर ही उन्‍होंने जुटामास पर दनादन मुक्‍कों की बरसात कर दी. जाइना के साथ आक्रामक ढंग से खेलकर जीती जुटामासा के पास अब अपने डिफेंस के अलावा और कोई रास्‍ता नहीं था.

निकहत उन्‍हें उस एक माइक्रो सेंकेंड की भी मोहलत नहीं दे रही थीं कि वो सांस ले सकें, अपना दांव बदल सकें और बाजी पलट जाए.
निकहत और जुटामास के बीच का यह मुकाबला शुरू से लेकर अंत तक एकतरफा ही रहा. निकहत वार करती रहीं और जुटामास बचाव. अंत में 5-0 की जीत के साथ विश्‍व चैंपियन का ताज निकहत के माथे पर सज गया.

यह पूरे देश के लिए कितने गौरव और खुशी की बात है, इसकी एक बानगी सोशल मीडिया पर दिख जाएगी, जो निकहत के लिए मुबारक संदेशों से पटा पड़ा है. दुनिया आज उस मुकाम को देख रही है, जो उन्‍होंने हासिल किया है. कोई उस यात्रा को नहीं जानता, जिससे गुजरकर वो यहां तक पहुंची हैं.

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आखिर कौन हैं जरीन निकहत

जरीन का जन्‍म 14 जून, 1996 को तेलंगाना के निजामाबाद में एक मध्‍यवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ. पिता मुहम्‍मद जमील अहमद एक सेल्‍स पर्सन थे और मां परवीन सुल्‍ताना हाउस वाइफ. घर में स्‍पोर्ट्स का कोई माहौल तो नहीं था, लेकिन ये माहौल जरूर था कि लड़की जीवन में कुछ बड़ा करे.

उसे रोकना नहीं है, उसका जो दिल करे, करने देना है. उसका हाथ थामना है और हौसला अफजाई करनी है. बचपन में तो निकहत को खुद भी नहीं पता था कि उन्‍हें बड़े होकर क्‍या करना है, लेकिन फिर एक दिन उन्‍होंने अपने चाचा शम्‍सुद्दीन को बॉक्सिंग रिंग में देख लिया. हाथों से ग्‍लव्‍स पहने और विरोधी पर तड़ातड़ मुक्‍कों की बरसात कर रहे चाचा की वो तस्‍वीर कहीं निकहत के जेहन में अटक गई. छोटी बच्‍ची को लगा कि ये तो बड़ा मजे का काम है. मुझे भी चाचा की तरह बॉक्‍सर ही बनना है.

शुरू में सबको थोड़ा अजीब लगा, रिश्‍तेदारों के माथे पर बल भी पड़े, मां ने भी कुछ ना-नुकुर की, लेकिन पिता की एक हां सबकी ना पर भारी पड़ गई.
निकहत की बॉक्सिंग की शुरुआती ट्रेनिंग पिता ने ही दी. उसके बाद आगे की ट्रेनिंग के लिए उन्‍हें विशाखापट्टनम भेज दिया गया.

वहां स्‍पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में आई.वी. राव के नेतृत्‍व में उनकी प्रोफेशनल ट्रेनिंग शुरू हुई. आईवी राव द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्‍मानित देश के नामी बॉक्सिंग कोच थे और बहुत टफ भी. उनसे किसी नर्मी और रियायत की उम्‍मीद नहीं की जा सकती थी. उनकी उम्‍मीदों पर खरा उतरना आसान भी नहीं था.

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लेकिन निकहत की भुजाओं में जितना बल था, उससे कहीं ज्‍यादा उसमें लगन और दृढ़ इच्‍छाशक्ति थी. महज एक साल की ट्रेनिंग के बाद 2010 में इरोड नेशनल्‍स में निकहत को गोल्‍डन बेस्‍ट बॉक्‍सर का खिताब मिला. अब तो रास्‍ता सिर्फ आगे ही जा रहा था. पीछे मुड़ने की कोई जगह नहीं थी.
जरा निकहत की ट्रेनिंग की टाइम लाइन को देखिए.

2008 में 12 साल की लड़की पिता से बॉक्सिंग सीखना शुरू करती है. एक साल बाद प्रॉपर कोच के अंडर में ट्रेनिंग शुरू होती है. ट्रेनिंग के एक साल के भीतर गोल्‍डन बॉक्‍सर का खिताब मिलता है और उसके अगले ही साल 2011 में साढ़े 14 साल की उम्र में वो तुर्की जाती है यूथ वर्ल्‍ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हिस्‍सा लेने के लिए और वहां से गोल्‍ड मेडल जीतकर वापस लौटती है.

उसके बाद तो एक के बाद मेडलों की बरसात ही हो रखी है. दुनिया के किसी भी हिस्‍से में कोई भी चैंपियनशिप हो, अगर निकहत उसमें हिस्‍सा ले रही हैं तो मेडल तय जानिए.

लेकिन इन अवॉर्ड्स और मेडलों से इतर छह फीट और 51 किलो वजन वाली इस लड़की का एक चेहरा और है, जिसकी बानगी कभी-कभी उनके इंस्‍टाग्राम पेज पर दिखाई देती है. जहां वो कभी छह साल की निकहत की फोटो लगाकर कहती हैं, “बचपन से लेकर आज तक इस लड़की की बस एक चीज नहीं बदली. कैमरे के सामने पोज करने की आदत.”

कभी वो एक लंबी-चौड़ी पोस्‍ट लिखकर अपनी नानी को याद करते हुए कहती हैं, “सब कहते हुए तुम जन्‍नत में बहुत खुश हो. मैं नहीं चाहती कि तुम वहां दूर जन्‍नत में खुश रहो. तुम्‍हें यहां मेरे पास, मेरे साथ होना चाहिए.” कभी वो अपनी एक प्‍यारी सी तस्‍वीर लगाती हैा और लिखती हैं, “मैं खुद को फूल, उम्‍मीद और प्‍यार से सजाती हूं” तो कभी कहती हैं, “मैंने खुद को चुना है और मैं खुश हूं.”

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निकहत की टाइमलाइन सिर्फ 25 साल की वर्ल्‍ड चैंपियन लड़की की टाइम लाइन नहीं है, वो एक 25 साल की इस देश की किसी भी सामान्‍य लड़की की टाइमलाइन भी है. जहां कुछ मामूली फिक्रें हैं, कभी-कभी उदासी भी, लेकिन ज्‍यादातर वक्‍त प्‍यार, उम्‍मीद, खुशी और सपने हैं. मेडल का जोश है और कभी नई ड्रेस और हेयर स्‍टाइल की मौज भी.

निकहत की जिंदगी इस देश की हजारों- लाखों मामूली घरों, परिवेश और जिंदगी वाली लड़कियों के लिए एक संदेश है- तुम कुछ भी हो सकती हो, जो एक बार ठान लो तो.

निकहत को अब तक मिले अवॉर्ड

– टर्की, 2011. यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल. 
– बुलगारिया, 2014. यूथ बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्‍वर मेडल. 
– सर्बिया, 2014. नेशंस कप इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में 51 किलोग्राम कैटेगरी में गोल्ड मेडल. 
– जालंधर, 2015. ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी बॉक्सिंग चैंपियनशिप में बेस्ट बॉक्सर का खिताब.
– आसाम, 2015. 16 वीं सीनियर महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल. 
– बैंकॉक, 2019. थाइलैंड ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में सिल्‍वर मेडल. 
– बुलगारिया, 2019. स्‍ट्रैंडजा मेमोरियल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्‍ड मेडल. 
– बुलगारिया, 2022. स्‍ट्रैंडजा मेमोरियल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्‍ड मेडल.

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