राष्ट्रपति चुनावों में संसद से लेकर राज्य की विधानसभाओं में सांसद और विधायक जब बैलेट बॉक्स में डालने के लिए अपने गुप्त मताधिकार का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें मतपत्र पर अपने पसंद के उम्मीदवार को क्रम देना होता है और ये लिखने के लिए उन्हें वोटिंग चैंबर में एक खास पेन मिलता है. ये पेन आमतौर पर इलेक्शन कमीशन खास स्याही के साथ बनवाता है. इसमें जो स्याही होती है वो मिटती नहीं.
ये खास पेन सफेद रंग के प्लास्टिक का होता है. इस पर लिखा होता है इलेक्शन मार्कर पेन और साथ इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया भी अंकित होता है. ये पेन और स्याही कर्नाटक की एक कंपनी ही चुनाव आयोग को बनाकर भेजती है, जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति चुनावों में होता है.
अगर आपने कभी अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया हो तो वोट देने के समय आपकी अंगुली पर एक खास स्याही अंकित की जाती है, जिससे पता लगता है कि आपने वोट दे दिया.
इस स्याही की खासियत ये होती है कि ये जल्दी मिटती नहीं. इसको मिटने में एक से दो हफ्ते तो लग ही जाते हैं. राष्ट्रपति के चुनाव में जो मार्कर पेन इस्तेमाल होती है उसमें यही स्याही इस्तेमाल होती है.
कर्नाटक की एक कंपनी बनाती है ये मार्कर और स्याही
सफेद रंग के खोल वाली इस पेन की स्याही बैंगनी रंग की होती है. यह विशेष मार्कर पेन कर्नाटक के मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड द्वारा तैयार किया जाता रहा है.
यही कंपनी मार्कर पेन और उसकी स्याही बनाकर भारतीय चुनाव आयोग को सप्लाई करती है. इसे चुनाव आय़ोग के खास आर्डर पर सीमित संख्या में ही बनाया जाता है.
मैसूर की मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड, जहां ना केवल चुनाव के लिए अमिट स्याही बनाई जाती है बल्कि राष्ट्रपति चुनाव में इस्तेमाल होने वाला मार्कर पेन और उसकी स्याही भी यहीं बनती है.हर चुनावों में इसी कंपनी की स्याही का इस्तेमाल
देश में चाहे विधानसभा का चुनाव हो या फिर लोकसभा का या फिर कोई भी खास चुनाव, उस सभी में इसी स्याही को इस्तेमाल में लाते हैं. ये स्याही देश में 1962 के पहले आम चुनाव से ही इस्तेमाल में आती रही है. केंद्रीय चुनाव आयोग पिछले 54 वर्षों से इसी स्याही का प्रयोग कर रहा है.
वोट डालने पर कितना खर्च
राष्ट्रपति चुनाव में एक सांसद के वोट का खर्च 700 रुपए आता है. विधायकों के वोटों का मूल्य अलग-अलग राज्यों में अलग होता है. राज्य के मामलों में विधायकों के वोट पर 151 रुपये का खर्च आता है.
2017 से पेन का हो रहा उपयोग
इस विशेष पेन का उपयोग 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद से ही किया जा रहा है. एक पेन से कम से कम 1000 बार वोट करना संभव होता है. इससे बस मतपत्रों पर रोमन अक्षरों या संख्याओं में उम्मीदवारों के नाम के आगे प्रिफरेंस नंबर लिखा जाता है.
बैलेट पेपर पर कोई शब्द नहीं लिखा जा सकता है. अगर किसी और मार्कर पेन से वोट करें तो वो रद्द हो जाता है.कर्नाटक में एक जगह है मैसूर.
इस जगह पर पहले वाडियार राजवंश का राज चलता था. आजादी से पहले इसके शासक महाराजा कृष्णराज वाडियार थे. वाडियार राजवंश विश्व के सबसे अमीर राजघरानों में से एक था. इस राजघराने के पास खुद की सोने की खान (गोल्ड माइन) थी.
1937 में कृष्णराज वाडियार ने मैसूर लैक एंड पेंट्स नाम की एक फैक्ट्री लगाई. इस फैक्ट्री में पेंट और वार्निश बनाने का काम होता था.
भारत के आजाद होने के बाद इस फैक्ट्री पर कर्नाटक सरकार का अधिकार हो गया. अभी इस फैक्ट्री में 91 प्रतिशत हिस्सेदारी कर्नाटक सरकार की है. 1989 में इस फैक्ट्री का नाम बदल मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कर दिया गया.
कैसे शुरू हुआ स्याही का चलन
भारत में पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए थे. इन चुनावों में मतदाताओं की अंगुली में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था. चुनाव आयोग को किसी दूसरे की जगह वोट डालने और दो बार वोट डालने की शिकायतें मिलीं.
इन शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने इसे रोकने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया. इनमें सबसे अच्छा तरीका एक अमिट स्याही का इस्तेमाल करने का था.
चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) से ऐसी एक स्याही बनाने के बारे में बात की. एनपीएल ने ऐसी स्याही ईजाद की जो पानी या किसी रसायन से भी मिट नहीं सकती थी.
एनपीएल ने मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को इस स्याही को बनाने का ऑर्डर दिया. 1962 में हुए चुनावों में पहली बार इस स्याही का इस्तेमाल किया गया. और तब से अब तक यह स्याही ही हर चुनाव में इस्तेमाल की जाती है.
स्याही बनाने का फार्मूला है गुप्त
एनपीएल या मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड ने कभी भी इस स्याही को बनाने के तरीके को सार्वजनिक नहीं किया. इसका कारण बताया गया कि अगर इस गुप्त फॉर्मूले को सार्वजनिक किया गया तो लोग इसको मिटाने का तरीका खोज लेंगे और इसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा.
जानकारों के मुताबिक इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट मिला होता है जो इस स्याही को फोटोसेंसिटिव नेचर का बनाता है. इससे धूप के संपर्क में आते ही यह और ज्यादा पक्की हो जाती है.