हरेली पर्व पर विशेष : धान की खेती में ब्यासी पद्धति को भूल गये हैं आज के किसान, ब्यासी नागर की जुताई का एक दिन की बारह सौ उपये, मगर फायदा बारह हजार रूपये का होगा

जांजगीर-चाम्पा. परम्परागत क़ृषि पद्धति को छोड़कर आज किसान यंत्रिकीकरण की पद्धति को अपनाने लगे हैं. इससे खेती में किसानों को सुविधा तो हुई, मगर क़ृषि में लागत अधिक होने के साथ मिट्टी, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसका दुष्परिणाम देखने को मिला है। जिले में कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो आज भी परमरागत तरीके से खेती कर अधिक लाभ ले रहे हैं.



इस सम्बन्ध में बलौदा ब्लॉक अंतर्गत सिवनी के किसान रामाधार देवांगन, बहेराडीह के दीनदयाल यादव व बिरगहनी च के किसान श्यामलाल राठौर ने बताया कि धान की ब्यासी पद्धति से खेती करने पर फ़सल अधिक होने के साथ साथ मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता बढ़ जाती है और फ़सल की अधिक पैदावार होती हैं, वहीं फसल कटाई के पहले ही उतेरा पद्धति में दलहन, तिलहन व अन्य फ़सल की पैदावार अधिक होती है.

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बहेराडीह के किसान लक्ष्मण यादव ने बताया कि ब्यासी नागर में खेत में लगे धान की पौधे की ब्यासी के लिए एक दिन का वे बारह सौ सौ रूपये लेते है और एक एकड़ जमीन की बियासी का काम करते है, मगर इतने ही पैसे में यदि ट्रेक्टर से जुताई कर खेती किया जाय तो खेती में इसका दुष्परिणाम देख सकते हैं, जबकि नागर अर्थात हल से खेती करने पर खेती योग्य उपजाऊ मिट्टी ऊपर में रह जाती है, किन्तु ट्रेक्टर में मिट्टी की गहरी जुताई होने के कारण उपजाऊ मिट्टी नीचे चली जाती है, जिससे खेती में अधिक खाद की जरूत पड़ रही हैं. इससे मिट्टी में विद्यमान सुक्ष्म जीव नस्ट हो जाती है.

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