जांजगीर चांपा. भोजन में मुनगा सब्जी का स्वाद बहुत अच्छा होता है। मगर आपने कभी मुनगा का स्वाद कडुआ होते शायद कभी नहीं सुना होगा। तो,जी हाँ। ऐसा भी होता है कि मुनगा का स्वाद बहुत ही कडुआ होता है। जिसे आप भोजन में सब्जी के रूप में कभी खा ही नहीं सकते। ऐसी सच्ची घटना देश के पहले वरिष्ठ पत्रकार कुंजबिहारी साहू किसान स्कूल बहेराडीह के परिसर में लगे आठ मुनगा में से एक मुनगा में देखने को मिला है। जिसे किसान स्कूल के संचालक युवा कृषक दीनदयाल यादव ने मुनगा आखिर क्यों हुआ कडुआ विषय को लेकर रिसर्च करने में लगे हुए हैं।
इस सम्बन्ध में वरिष्ठ पत्रकार कुंजबिहारी साहू किसान स्कूल बहेराडीह के संचालक दीनदयाल यादव ने बताया कि उनके घर के पीछे करीब 15 डिसमिल क्षेत्रफल में साग भाजी की बाड़ी है। बाड़ी में आठ प्रकार की मुनगा का पौधा लगाई गई है। जिसमें उद्यान विभाग और वन विभाग द्वारा किसानों को वितरण किये गए मुनगा का पौधा भी लगाया गया। किन्तु वन विभाग से मिले मुनगा का पत्ती अर्थात भाजी और फल दोनों का स्वाद बहुत ज्यादा कडुआ है। आखिर ऐसा क्यों हुआ इस मामले पर बारीकी से किसान अपने स्तर पर रिसर्च कर रहे हैं।
कुंदरू, लौकी, तरोई, खीरा, ककड़ी आखिर क्यों होती है स्वाद में कडुवा
किसान ज़ब सब्जी बाड़ी की खेती करते हैं। तो कुंदरू, लौकी, तरोई, डोड़का, खीरा, ककड़ी जैसे सब्जी की कुछ पौधे के फलो की स्वाद आखिर भारी ज्यादा कडुआ क्यों होती है। तो लोगों का इस सवाल का अक्सर जवाब मिलता है कि किसी पौधे के जड़ पर खपरैल का टुकड़ा संपर्क में आ जाने से ऐसा हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है। इस तरह के पौधों के फलो को अलग करके उनके बीज से पुनः पौधे तैयार किये जायेंगे। उसके बाद जो परिणाम सामने आयेगी। उसके आधार पर रिसर्च आगे बढ़ाने का निर्णय लिए जायेंगे। इसी तरह बीज के बजाय डंठल से तैयार किये गए मुनगा की पेड़ से फल और पत्तियाँ बहुत अधिक मात्रा में उत्पादन देखी गई है। और फलो की आकार में तेजी से बढ़ोतरी तथा पत्तियों में अधिक हरियाली को कोमल बनाने में जीवामृत कल्चर का प्रयोग से अच्छा परिणाम सामने आई हैं।