UPSC CSE : IAS की परीक्षा किसे नहीं देनी चाहिए, जानें क्या बोले विजेन्द्र सिंह चौहान. पढ़िए..

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मॉक इंटरव्यू की दुनिया में विजेन्द्र सिंह चौहान काफी जाना पहचाना चेहरा है। सोशल मीडिया पर वायरल यूपीएससी मॉक इंटरव्यू की रील्स व शॉर्ट वीडियो में आप अकसर इन्हें देखते होंगे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन कॉलेज में हिंदी के एसोसिएट प्रोफेसर और दृष्टि आईएएस ( Drishti IAS ) मॉक इंटरव्यू बोर्ड पैनल के सदस्यों में से एक विजेन्द्र सिंह चौहान ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि किन युवाओं को यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा नहीं देनी चाहिए। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘आईएएस परीक्षा को लेकर हमारे भारतीय समाज में एक सनक सी विकसित हो गई है और यह कोई स्वस्थ चीज नहीं है। अगर आप हिंदी बेल्ट वाले प्रमुख राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश या बिहार के रहने वाले पुरुष हैं तो आपको डिफॉल्ट होना चाहिए कि आपको यह परीक्षा नहीं देनी चाहिए।’



 

 

 

 

उन्होंने कहा, ‘इस हिंदी पट्टी की निर्मित ही ऐसी है जो सामंती किस्म के व्यक्ति की होती है, यहां परीक्षा से मिलने वाले पदों को राजाई, सामंती या शाही पदों की तरह देखा जाता है जो कि आईएएस पद की सही व्याख्या नहीं है। वे जिन कारणों से यह परीक्षा दे रहे हैं वे स्वस्थ कारण नहीं हैं। अगर आप इन क्षेत्रों से हैं और आपके मन में आईएएस बनने का ख्याल आया है तो पहले अपने आपको झिड़किए। खुद से पूछें कि क्या ये समाज आपको यूपीएससी की परीक्षा देने के लिए मजबूर कर रहा है।’

 

 

 

 

विजेन्द्र सिंह चौहान ने अनकट यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘इस पर सोचिए क्या आप इसलिए यूपीएससी परीक्षा दे रहे है कि पिता जी नहीं कर पाए थे इसलिए करना है, पड़ोस में लड़ाई हो गई थी उसे ठीक करना है, गांव में किसी ने जमीन कब्जा ली है तो वापस लेना है, यो गलत वजहें हैं, आपको यह परीक्षा नहीं देनी चाहिए। और इसके विपरीत अगर आप इन हिंदी पट्टी वाले क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाली लड़की हैं तो आपको यह परीक्षा दे डालनी चाहिए। कोई लड़की इस परीक्षा में सफल नहीं भी हो पाती है तब भी उसके जीवन में काफी सकारात्मक बदलाव आ जाएंगे, काफी कुछ हासिल कर लेंगी।’

 

 

 

 

उन्होंने कहा, ‘मेरा मतलब यह है कि सामंती सोच की वजह से इस लाइन में नहीं आना चाहिए। यह लोकतंत्र, समाज और आपकी मानसिक स्थिति के लिए स्वस्थ नहीं है। समाज की सनक का पीछा नहीं करना चाहिए। आपको समझना चाहिए कि समाज क्यों चाहता है कि युवा 10-11 साल तक आईएस की तैयारी करे जो नौकरी महज 30 साल चलने वाली है। उसमें भी शुरुआती 10 साल ही फील्ड जॉब के होते हैं, फिर तो सेक्रेटेरिएट में फाइलों में डूबे ही रहने होता है जो कि साधारण नौकरी की तरह है। इसलिए मेरी सलाह है कि अपने फैसले पर पुनर्विचार करें अगर आपकी स्वतंत्र इच्छा नहीं है तो। अगर यूपीएससी आपकी स्वतंत्र इच्छा है तो ही आप यहां आइए। यह बात अन्य क्षेत्रों पर लागू नहीं होती। जैसे उत्तराखंड के युवाओं, सभी लड़कियों या वंचित व हाशिये वाले वर्गों पर लागू नहीं होगा। व्यवस्था में जिन वर्गों का प्रतिनिधित्व कम है, यह उन पर भी लागू नहीं होता।’

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