सफलताएं दिख जाती हैं, लेकिन उसके पीछे के संघर्ष को शायद ही कम लोग बता पाते हैं और जान पाते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है प्रशासनिक अधिकारी सविता प्रधान की. सविता का जन्म मध्य प्रदेश के मंडी के एक आदिवासी गांव में हुआ था. गरीब परिवार में जन्मीं. सविता ने दूर-दूर तक सोचा भी नहीं था, कि कभी वह MPPSC जैसी कठिन परीक्षा देंगी और उसे पास करके एकदिन अफसर बन जाएंगी. लेकिन एक दिन वह वह नगरीय संवर्ग की अधिकारी बन गईं. कई बार सफलता की कहानी कहने वाले मंचों ने उन्हें मौका दिया तो उन्होंने अपना पूरा दर्द और यहां तक पहुंचने का सफरनामा सुनाया. जिसे सुनकर हर कोई सिहर जाएगा.
सविता ने एक पॉडकास्ट प्लेटफॉर्म पर अपने वीडियो में बताया कि एक सामान्य परिवार में जन्म लेने वाली दूसरी लड़कियों की तरह वह भी सुबह उठकर महुआ बीनने और बीड़ी पत्ता तोड़ने चली जाया करती थीं. बाद में थोड़ी बड़ी हुईं, तो उनका एडमिशन गांव के ही एक स्कूल में करा दिया गया. वह भी शायद इसलिए कि स्कूल जाने के एवज में मिलने वाली वजीफे की राशि 150-200 रुपये से उनका घर परिवार चल सके. वह माता पिता की तीसरी संतान थीं. जैसे तैसे पढ़ाई कर आगे बढ़ीं और सविता ने 10वीं की परीक्षा दी. हौसला तब बढ़ा जब उस साल वह 10वीं की परीक्षा पास करने वाली गांव की पहली लड़की बनीं. उनके पिता ने आगे की पढ़ाई के लिए उनका एडमिशन घर से 7 किमी दूर एक इंटरमीडिएट कॉलेज में करा दिया. रोजाना स्कूल तक पहुंचने के लिए दो रुपये किराया लगता था. वह देना उनके लिए दूभर था, लिहाजा सविता पैदल ही स्कूल का सफर तय कर लिया करती थीं.
सविता बताती हैं कि 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ था. ऐसे में उन्होंने सपने बुनने शुरू कर दिए थे और सोचने लगी थीं कि वह एकदिन डॉक्टर बनेंगी. इसी बीच उनके घरवालों के पास एक बहुत बड़े अमीर खानदान का रिश्ता आ गया. सविता के पिता का मानना था कि ऐसे मौके बार बार नहीं आते. जब इतने बड़े घरों से रिश्ते आएं. इसके ठीक उल्ट सविता नहीं चाहती थीं कि अभी उनका विवाह हो. बाद में अपने पीएमटी की तैयारी और वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर सकें. यह बात समझाकर घरवालों ने उनको राजी कर लिया. शादी तो हो गई लेकिन उनका जीवन बदतर हो गया. सविता बताती हैं कि उस घर में उनको मारपीट से लेकर कई तरह से प्रताड़ित किया गया.
एक समय आया जब रोज रोज की प्रताड़ना से तंग आकर सविता ने सुसाइड करने का मन बना लिया. इस समय तक वह दो बच्चों की मां बन चुकी थीं. ऐसे में यह निर्णय बहुत कठिन था. आखिरकार एक दिन उन्होंने दोनों बच्चों को सुलाकर पंखे में साड़ी के फंदे में झूलने का फैसला किया और वह यह करने जा रही थीं कि उनकी सास ने खिड़की से उन्हें देख लिया. जिसके बाद उनका मन बदल गया तब सविता ने तय किया कि ऐसे लोगों के लिए क्यों मरना. इसके बाद सविता एकदिन घर छोड़कर एक कजिन सिस्टर के यहां पहुंची. यहां उन्होंने ब्यूटी पॉर्लर और बुटीक का काम शुरू किया.
सविता ने तमाम विपरित परिस्थितियों के बाद भी आगे पढ़ने की ठानी और दो बच्चों को पालते हुए छोटे छोटे काम किए ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. बाद में उन्होंने इंदौर यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स किया. जॉब सर्चिंग के दौरान उन्हें एमपी सिविल सर्विस परीक्षा (MPPSC) के बारे में बता चला. जिसके बाद उन्होंने तय किया अब उन्हें यह परीक्षा पास करनी है. आखिरकार उन्होंने यह परीक्षा पास कर ली. उन्हें मध्य प्रदेश के नीमच जिले में सीएमओ का पद मिला. इस दौरान उनका चार महीने का बच्चा था, जिसे लेकर सविता दफ्तर जाया करती थीं.