अल्बर्ट आइंस्टीन जीनियस थे. उनकी गिनती दुनिया के सबसे महान भौतिकविदों में होती है. आप जानकर हैरान होंगे कि महज 12 साल की उम्र में उन्होंने बीजगणित (Algebra) और यूक्लिडियन ज्यामिति (Euclidean Geometry) खुद से सीख ली थी. उन्होंने अपने सापेक्षता के सिद्धांत (Theory of Relativity) से ब्रह्मांड के नियमों को समझाया. इस सिद्धांत E=mc2 ने विज्ञान की दुनिया को बदल कर रख दिया. आइंस्टीन जितने बड़े वैज्ञानिक थे, उतने ही बड़े दार्शनिक भी थे. लेकिन क्या आपको पता है कि आइंस्टीन का दिमाग संभालकर क्यों रखा गया है? वैज्ञानिक उसके साथ क्या करना चाहते हैं? ऑनलाइन प्लेटफार्म कोरा पर यही सवाल पूछा गया. अजबगजब नॉलेज सीरीज के तहत आइए जानते हैं पूरी कहानी.
जर्मन मूल के अमरीकी वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च, 1879 को हुआ था. 18 अप्रैल, 1955 को प्रिंसटन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में 76 वर्ष की आयु में उन्होंने आखिरी सांस ली. मौत से एक दिन पहले तक वह इतने एक्टिव थे कि इजरायल की सातवीं वर्षगांठ का सम्मान करने के लिए भाषण पर काम कर रहे थे. अचानक पेट की धमनी में समस्या आई और आनन-फानन में उनका निधन हो गया. लेकिन उन्होंने जो सिद्धांत दिए वह आज भी आम आदमी की जिंदगी को सीधे प्रभावित करते हैं. 1921 में उन्हें भौतिकी के नोबेल से नवाजा गया था.
आइंस्टीन का दिमाग औरों से बहुत अलग
आइंस्टीन का दिमाग औरों से बहुत अलग और काफी तेज था. उनका सिर जन्म से ही कुछ बड़ा था. इसलिए जब उनकी मृत्यु हुई तो प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के एक पैथोलॉजिस्ट डॉ. थॉमस स्टोल्ट्ज हार्वे ने चुरा लिया. आइंस्टीन को शायद अंदाजा था कि उनके दिमाग पर रिसर्च हो सकती है, इसलिए उन्होंने पहले ही इनकार कर दिया था, वह नहीं चाहते थे कि उनके शरीर और मस्तिष्क का अध्ययन किया जाए. ब्रायन ब्यूरेल की किताब, पोस्टकार्ड्स फ्रॉम द ब्रेन म्यूजियम के अनुसार, आइंस्टीन ने पहले ही लिखकर निर्देश दिया कि उनके शरीर के अवशेषों के साथ कोई छेड़छाड़ न की जाए. अंतिम संस्कार के बाद राख को कहीं गुप्त रूप से बिखेर दिया जाए. लेकिन हार्वे ने परिवार की अनुमति के बिना उनका दिमाग चुरा लिया. अस्पताल ने भी थॉमस से दिमाग लौटाने को कहा, लेकिन उन्होंने नहीं लौटाया और 20 साल छुपाकर रखा.
उसने दिमाग के 240 टुकड़े किए
बाद में हार्वे ने आइंस्टीन के बेटे हंस अल्बर्ट से दिमाग को अपने पास रखने की अनुमति हासिल कर ली. हालांकि, शर्त थी कि सिर्फ विज्ञान के हित में ही इसका इस्तेमाल किया जाएगा. लेकिन थॉमस में इतनी क्षमता नहीं थी की दिमाग अच्छे से पढ़ पाए. इसलिए उसने दिमाग के 240 टुकड़े किए और उसे एक केमिकल सेलोइडिन में डालकर तहखाने में छुपा दिया. हालांकि, हार्वे की पत्नी को यह पसंद नहीं था. उनके डर से हार्वे आइंस्टीन के दिमाग को मिडवेस्ट ले गए. कई जगह नौकरी की और साथियों के साथ मिलकर आइंस्टीन के दिमाग पर रिसर्च भी करते रहे. 1985 में उनका पहला रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ, जिसमें आइंस्टीन के दिमाग का अध्ययन किया गया था. दावा किया गया कि आइंस्टीन का दिमाग 2 प्रकार की कोशिकाओं न्यूरॉन्स और ग्लिया के असामान्य अनुपात से बना हुआ था. इसके बाद 5 और स्टडी हुई. मगर आज तक उनके दिमाग को पूरी तरह कोई नहीं पढ़ पाया.