लेख – आधुनिकता, नशाख़ोरी और अपराध

राजकुमार साहू
आज के आधुनिक युग में नशाखोरी, स्टेटस सिंबल बन गई गई. आधुनिकता की चकाचौंध के चक्कर में युवा पीढ़ी दिग्भ्रमित हो गई है और नशोखोरी के आगोश में आने के बाद युवा पीढ़ी अपराध की ओर अग्रसर हो गई है. समाज में अभी जिस तरह का माहौल है, उससे समझा जा सकता है कि नशाखोरी ने युवा पीढ़ी में किस तरह जड़ें गहरी की है. सबसे बड़ी बात है, नशाखोरी के बाद युवा पीढ़ी, अपराध की गिरफ्त में आ रहे हैं और ज्यादार वारदातों में नशाखोरी की बात सामने आती है. ऐसे में नशाखोरी और अपराध से युवा पीढ़ी को बचाने की दिशा में सामूहिक प्रयास की जरुरत है. इसमें ध्यान और नैतिक शिक्षा, बड़ी मददगार साबित हो सकती हैं.



नशाखोरी रोकने सरकार की कोशिश की बात करें तो इसमें औपचारिकता ही नजर आती है, क्योंकि वित्तीय स्थिति मजबूती के लिए सरकार खुद ही नशाखोरी को बढ़ावा दे रही है. सरकार को अपने खजाने से ज्यादा युवा पीढ़ी के साथ ही भावी पीढ़ी की चिंता करनी चाहिए, क्योंकि नशाखोरी पर सख्ती से लगाम नहीं लगाई गई तो यह समाज के लिए आने वाले दिनों में और भी घातक साबित हो सकती है ? बदलते वक्त के साथ सरकार ने विकास की रफ्तार तेज की है और लोगों के जीवन में भौतिक संसाधन विकसित किया गया है, लेकिन इन सब कोशिशों पर नशाखोरी भारी पड़ती नजर आती है, क्योंकि नशाखोरी की वजह से समाज में चौतफरा प्रभाव दिखता है. नशाखोरी से परिवार तबाह होता है, रिश्ते टूटते हैं, जिंदगी बर्बाद होती है, सेहत खत्म होती है. ऐसे अनगिनत दिक्कतें हैं, जो नशाखोरी की वजह से होती हैं और जीवन नर्क बन जाता है. नशाखोरी से प्रभावित इस दर्द को वह परिवार बखूबी जानता है, जो जिसने इसे भोगा है. वैसे आज ज्यादातर परिवार नशाखोरी के दंश से प्रभावित है, ऐसे में नशाखोरी के खिलाफ सामूहिक प्रयास की जरूरत है और नशाखोरी की इस जड़ को समाज से समाप्त करने की आवश्यकता है.

आधुनिकता के नाम पर युवा पीढ़ी नशाखोरी की गिरफ्त में लगातार आ रही है. युवा पीढ़ी में जिस तरह खुशियों को नशाखोरी के साथ बांटने का चलन बढ़ा है, इसने युवा पीढ़ी को और भी गहरी खाई में धकेलने का काम किया है. देखने में आता है, कोई भी अवसर हो, नशाखोरी की ओर युवा रुख करते हैं. विडंबना तो ये है कि गणेश विसर्जन और दुर्गा विसर्जन समेत दूसरे धार्मिक आयोजनों के दौरान भी युवा पीढ़ी नशाखोरी से बाज नहीं आती. साथ ही, नशाखोरी के बाद फूहड़ गानों में झूमती नजर आती है. इतना तो तय है, बदलते वक्त के साथ खुद को बदलना जरूरी है, आधुनिकता को भी अपनाने में भी कोई बुराई नहीं है, लेकिन आधुनिकता के नाम पर युवा पीढ़ी जिस तरह नशाखोरी के रास्ते पर चल पड़ी है, वह जरूर चिंता की बात है ? नशाखोरी की लत से केवल एक व्यक्ति को नुकसान नहीं होता, बल्कि इससे पूरा परिवार तबाह होता है. नशाखोरी के बाद परिवार में विवाद किसी से छिपा नहीं है, नशाखोरी की वजह से परिवार टूटने की घटनाएं सामने आती रही हैं. सेहत पर तो नशाखोरी वज्रपात करती है, क्योंकि नशाखोरी की वजह से हर साल हजारों लोगों की मौत होती है. हजारों लोग बीमारी से ग्रस्त होकर तिल-तिल मरते हैं. ऐसे में परिवार पर मुसीबत आना स्वाभाविक है.

नशोखोरी का सबसे बड़ा दुष्परिणाम, बढ़ते अपराध के रूप में देखा जा सकता है. जब कोई घटना या वारदात होती है तो यह बात सामने आती है कि पहले नशाखोरी की गई, फिर अपराध को अंजाम दिया गया. नशाखोरी की वजह से किसी घटना से कई परिवार तबाह होता है. जिसने घटना को अंजाम दिया, वह और उसका परिवार बिखरता है, वहीं उस परिवार पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट जाता है, जो घटना से प्रभावित होता है. यह बात तय है कि नशाखोरी के कारण आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं. ऐसे में आज जरूरत नशाखोरी रूपी सामाजिक कुरीति के खिलाफ लड़ाई की है, क्योंकि आज नशाखोरी ने जिस तरह अपनी जड़ें गहरी की है, यदि इन जड़ों को काटा नहीं गया तो आने वाली पीढ़ी को इस नशाखोरी रूपी आधुनिक सामाजिक बीमारी से और ज्यादा नुकसान होगा. इस तरह नशाखोरी के खिलाफ सामूहिक पहल की जरूरत है और इस आधुनिक सामाजिक बीमारी को जड़ से खत्म करने के प्रयास में सभी को सहभागिता निभानी चाहिए. इसके लिए खुद को भी नशा से दूर रहना होगा और दूसरों को भी नशा से दूर रहने प्रेरित करने की आवश्यकता है.

नशाखोरी के खिलाफ लड़ाई में ध्यान और नैतिक शिक्षा की बड़ी भूमिका हो सकती है. ऐसे में नशाखोरी से युवा पीढ़ी के साथ ही भावी पीढ़ी को बचाने के लिए सरकार को बड़ी कवायद करनी चाहिए. नशाखोरी को लेकर सामूहिक कदम उठाकर ध्यान और नैतिक शिक्षा की मदद से आधुनिक जीवन के इस कुरीति को दूर करने की जरूरत है. सबसे बड़ी बात है, नशाखोरी को जीवन से दूर भगाने के लिए हमें मानसिक रूप से तैयार होना होगा, तभी इस साइलेंट सामाजिक बीमारी से बचा जा सकता है.
( लेखक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार हैं )

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