Janjgir News : शील साहित्य परिषद में गीतकार पं. विद्याभूषण मिश्र की पुण्यतिथि पर स्मरणांजली कार्यक्रम का आयोजन किया गया

जांजगीर. जाज्वल्यधानी मूल रूप से साहित्यकारों की भूमि है जहां कई विद्वान साहित्यकारों का जन्म हुआ है एवं जिनके नाम से इस शहर को जाना जाता है। गीतकार पं विद्याभूषण मिश्र जी भी उन्हीं साहित्यकारों में से एक हैं। उन्होंने अपनी साहित्यिक सेवा से न केवल इस जिले को बल्कि प्रदेश व देश को भी गौरवान्वित किया है। यह बातें मिश्र जी की नवमीं पुण्यतिथि के अवसर पर कृष्णकुमार पांडेय ने कही। उन्होंने बताया मिश्र जी की कविताएं आज भी प्रासंगिक हैं। वरिष्ठ साहित्यकार ईश्वरी यादव ने बताया साहित्यकार समाज का पथ प्रदर्शक एवं मूल्यों का रक्षक होता है। पं. मिश्र ने सती सावित्री, छत्तीसगढ़ी गीतमाला, करुणांजली, मन का वृंदावन जलता है, फूल भरे अंचरा, सुधियों के स्वर, रामभक्त हनुमान आदि की रचना की। सभी रचनाएं कालजयी हैं। मिश्र जी प्रांजल खड़ी बोली के कवि थे। उनके साथ कई यादें जुड़ी हुईं हैं। मिश्र के सुपुत्र कमलेश मिश्र द्वारा अपने पिता द्वारा रचित हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी गीतों का सस्वर गायन कर स्मरणांजली दी गई। उनके द्वारा बांस गीत भी प्रस्तुत किया गया। परिषद के संस्थापक सदस्य दिनेश शर्मा ने बताया मिश्र जी की प्रसिद्ध कृति “मैं सुना मंदिर हूं, मुझमें एक दीप तो धर दो’ है जो आज भी हम सबके द्वारा गाया जाता है।



युवा साहित्यकार दिनेश रोहित चतुर्वेदी ने बताया पं मिश्र जी अपनी कालजयी कृतियों के कारण हम सबके हृदय में हमेशा जीवित रहेंगे। उनकी रचनाओं से युवा हमेशा प्रेरित होते रहेंगें। विजय राठौर, प्रमोद आदित्य, संतोष कश्यप, भैयालाल नागवंशी, दयानंद गोपाल, दिनेश रोहित चतुर्वेदी,सुरेश पैगवार, उमाकांत टैगोर द्वारा काव्यांजलि स्वरूप कविता पाठ भी किया गया। अंत में उन्हें श्रद्धाजंलि देते हुए मौन धारण किया गया।

कार्यक्रम का संचालन दयानंद गोपाल द्वारा किया गया। आभार प्रदर्शन परिषद के सचिव विजय राठौर द्वारा किया गया। इस अवसर पर शील साहित्य परिषद के पदाधिकारी एवं साहित्यकार उपस्थित थे।

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