कुबेर कभी थे चोर, कैसे बदला जीवन, उनके तीन पैर, 8 दांत और एक आंख का क्या मतलब, पार्वती के शाप से क्यों गई एक आंख

आपको मालूम है कि कुबेर का असली नाम क्या था. उनका बचपन और युवा उम्र अभावों व गरीबी से भरी हुई थी. लिहाजा वो चोर बन गए. चोरियां करने लगे. लेकिन एक दिन उनका भाग्य पलटा . फिर वह धन के देवता बन गए.



 

 

उन्हें किसी भी चीज की कोई कमी नहीं रही. वह नदियों से लेकर समुद्र तक के देवता बन गए. तो उनके जीवन में ऐसा टर्न कैसे आया कि वह चोर से धन-वैभव-दौलत के स्वामी बन गए.

 

 

वह जिस घर में पैदा हुए. वह साधारण घर था. घर में हमेशा अभाव और द्ररिद्रता वाली स्थिति बनी रहती थी. जब जीवन मुश्किल हो गया तो उन्हें चोरी का सहारा लेना पड़ा. लेकिन इसी चोरी के दौरान उनके जीवन ने ऐसा पलटा खाया कि उनके लिए सबकुछ बदल गया. तब उनका असली नाम गुणनिधि था.

 

 

 

कैसे एक चोर से कुबेर बने
एक नश्वर प्राणी से एक दिव्य प्राणी बनने तक कुबेर की यात्रा सच में दिलचस्प है. एक रात वह चोरी के लिए भगवान शिव के मंदिर में घुसे. उन्होंने शिव मंदिर से चोरी की कोशिश की. मंदिर के अंदर के रत्नों ने उन्हें मोहित कर लिया. वह उन रत्नों को देखना चाहते थे. इसलिए अंधेरे में दीपक जलाया. अंधेरे में दीपक जलाने की उनकी दृढ़ता ने भगवान शिव को प्रभावित किया. उन्होंने उन्हें अपने अगले जन्म में धन के देवता बनने का आशीर्वाद दिया.

 

 

 

कुबेर थे तो राक्षस लेकिन दैवीय गुणों वाले
अगले जन्म में कुबेर का जन्म ऋषि विश्रवा और इल्लविदा के घर हुआ, जिससे वे एक उल्लेखनीय वंश का हिस्सा बने. हालांकि उनकी अपने सौतेले भाई रावण से बिल्कुल नहीं बनती थी. जहां कुबरे में दैवीय गुण थे तो रावण और उसके भाई-बहन राक्षस थे, क्योंकि वह ऋषि विश्रवा की दूसरी पत्नी और एक राक्षसी से पैदा हुए थे. उन्हें देवता भी मानते हैं और राक्षसों से ताल्लुक रखने वाला भी.

 

 

 

कुबेर किसी को भी धनी बना सकते हैं
दूसरे जन्म में कुबेर धन दौलत और वैभव के देवता बने. उनका पास अकूत खजाना था. वह किसी को भी धनी बना सकने की स्थिति रखते थे. किसी के धन को रोक भी सकते थे.

 

 

 

कुबेर को दिशाओं के आठ संरक्षकों (दिक्पालों) में एक के रूप में भी जाना जाता है. वह विशेष तौर पर उत्तर दिशा की देखरेख करते हैं. उन्हें यक्षों का राजा भी कहा गया, जो धन और प्रकृति से जुड़े अर्ध-दिव्य प्राणी हैं.

 

 

 

वह जटिल भी हैं और सरल भी
कुबेर को रत्नों से सजे एक मोटे पेट वाले व्यक्ति के रूप में दिखाया जाता है. कभी-कभी उन्हें तीन पैरों वाले या एक आंख वाले जैसी राक्षसी विशेषताओं के साथ वर्णित किया जाता है. तो इस चित्र से उनका जटिल स्वाभाव दिखता है. दयालु और डरावने दोनों. धनतेरस उन्हें खुश करने वाला त्योहार होता है. कुबेर यंत्र और मंत्रों के जरिए उन्हें खुश किया जा सकता है. कुबेर को समर्पित एक लोकप्रिय मंत्र है: ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी

 

 

कुबेर नदियों और समुद्रों के स्वामी हैं
वैसे कुबेर को महासागरों और नदियों का भी स्वामी बताया गया है. वह जल निकायों के संरक्षक हैं, जिन्हें अक्सर समृद्धि और उर्वरता से जोड़ा जाता है. हिंदू धर्म में, नदियां जीवन, जीविका और समृद्धि का प्रतीक हैं.

 

 

मत्स्य पुराण में बताया गया कि कुबेर ने कावेरी और नर्मदा नदियों के संगम पर गहन तपस्या की. इस पवित्र स्थान के बारे में माना जाता है कि ये पापों को धोता है और आशीर्वाद देता है. इस जगह पर उनकी पूजा ने यक्षों (अर्ध-दिव्य प्राणियों) और धन के स्वामी के रूप में उनकी ताकत बढ़ाई.

उनके तीन पैर क्या कहते हैं
बेशक धन के देवता कुबेर को तीन पैरों के साथ दिखाया जता है लेकिन आमतौर पर माना जाता है कि इन तीनों पैरों का प्रतीक है. ये मानव इच्छाओं के प्रतीक होते हैं. पुत्र, धन-शक्ति और प्रसिद्धि – मान्यता की इच्छाओं को जाहिर करते हैं. कुछ व्याख्याएं उनके तीन पैरों को भगवान विष्णु के तीन कदमों से जोड़ती हैं, जो ब्रह्मांडीय संतुलन और सांसारिक मामलों पर दैवीय अधिकार के साथ एक गहरे संबंध के बारे में बताती हैं.

08 दांतों की क्या कहानी है
इसके अलावा उनके चित्रों में उन्हें आठ दातों और एक आंख के साथ भी दिखाते हैं. आठ दांतों की भी अपनी एक कहानी है. कहा जाता है कि आठ दांत धन या समृद्धि (अष्ट लक्ष्मी) के आठ रूपों का प्रतीक हैं, जिनसे कुबेर जुड़े हुए हैं. उनके आठ दांत धन और समृद्धि से जुड़े देवता में तब्दील होने से पहले बुरी आत्माओं के पूर्व प्रमुख के रूप में उनकी स्थिति को भी जाहिर करते हैं.

पेट क्यों बड़ा है
कुबेर को अक्सर बड़े पेट वाला दिखाते हैं. बड़ा पेट कुबेर की अपार संपत्ति और वैभव का प्रतीक है. कई संस्कृतियों में बड़े पेट को समृद्धि से जोड़ते हैं. कुबेर का पेट भोग-विलास और जीवन के सुखों का आनंद लेने की बात दिखाता है. कुबेर को एक बड़े पेट वाले बौने जैसी आकृति के रूप में दिखाते हैं. बड़ा पेट कुबेर को अन्य देवताओं से अलग भी करता है. कुल मिलाकर उनका बड़ा पेट हिंदू पौराणिक कथाओं में धन, प्रचुरता और भौतिक समृद्धि से जुड़ी जटिलताओं का प्रतीक है.

उनकी एक आंख ही क्यों है
कुबेर को अक्सर सिर्फ़ एक आंख के साथ दिखाते हैं. इसके पीछे की कहानी पार्वती देवी की एक घटना से जुड़ी है. कुबेर एक बार ईर्ष्यालु हो गए, जब उन्होंने पार्वती को भगवान शिव की गोद में बैठे देखा. ईर्ष्या के एक पल में उन्होंने उन्हें वासनापूर्ण नजर से देखा. पार्वती गुस्सा हो गईं. तुरंत उनकी एक आंख खोने का श्राप दे दिया.
एक आंख का खोना ईर्ष्या और अनुचित इच्छाओं के परिणामों का प्रतीक है. कुबेर को एकपिंगला कहा जाता है, जिसका अर्थ है “एक आँख वाला” या “एक पीली आँख वाला”.

 

 

 

कुल मिलाकर उनका जीवन बुरे से अच्छे की ओर बदला
शुरुआती वैदिक ग्रंथों में कुबेर को बुरी आत्माओं का सरदार या चोरों और अपराधियों का सरदार बताया गया है. ये चरित्र उन्हें राक्षसी गुणों से जोड़ता है, बाद में ये बदला और देवत्व की ओर चला गया. कठोर तपस्या करने के बाद ब्रह्मा ने उन्हें देव (भगवान) की उपाधि दी.

 

 

 

रावण और कुबेर में कैसे थे संबंध
कुबेर और रावण के संबंध भाई होने के बाद भी जटिल थे. रावण उनका सौतेला भाई था. दोनों की कभी नहीं बनी. दोनों ऋषि विश्रवा के पुत्र थे. कुबेर बड़ा भाई थे, जो विश्रवा की पहली पत्नी से पैदा हुए थे. रावण का जन्म उनकी दूसरी पत्नी एक राक्षसी से हुआ.
कुबेर ने लंका पर शासन किया. उसके पास जादुई पुष्पक विमान (उड़ने वाला रथ) सहित अपार धन था. बाद में रावण ने शक्ति और प्रभुत्व की चाहत में लंका उससे छीन ली. रावण ने उसे युद्ध में हराया. दोनों में दुश्मनी हो गई.
बाद में कुबेर को कैलाश पर्वत के पास अलकापुरी में जाकर रहना पड़ा. जब रावण ने सीता का अपहरण किया तो कुबेर ने अपने भाई के खिलाफ राम का साथ दिया.

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