



शिवरीनारायण. जब तक यह धरती, सूर्य, चंद्रमा रहेंगे, तब तक भगवान की कथा रहेगी। कथा कहने और सुनने वाले बदलते रहेंगे लेकिन कथा अनवरत थी अनवरत रहेगी। यह बातें श्री शिवरीनारायण मठ महोत्सव में श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ एवं विराट संत सम्मेलन को संबोधित करते हुए व्यास पीठ की आसंदी से अनंत श्रीविभूषित श्री स्वामी मधुसूदनाचार्य वेदांताचार्य महाराज ने उद्धृत की, उन्होंने कहा कि भगवान रामभद्र जी माता शबरी की जन्मभूमि शिवरीनारायण भी आए और उनकी कर्मभूमि पंपासर पहुंचकर दर्शन भी दिए । यही उनकी उदारता है। उन्होंने श्रोताओं को आगाह करते हुए कहा कि लोग सोचते हैं कि बुढ़ापा में भजन करेंगे। बचपन चला जाता है, जवानी चली जाती है। बुढ़ापे में आंख से दिखाई नहीं देता ! कान से सुनाई नहीं देता फिर भजन कैसे होगा* ? इसलिए अभी से सतर्क हो जाओ नहीं तो पछताना पड़ेगा। श्री रामचरितमानस की यह चौपाई याद रखना – होइ न विषय विराग। भवन बसत भा चौथ पन।। हृदय बहुत दुख लाग। जनम गयउ हरि भगति बिनु।।
आप कितने भी बड़े पद पर पहुंच जाओ! हरि के भजन बिना आपके जीवन की जलन कभी भी समाप्त नहीं होगी! प्रत्येक दिवस की तरह महामंडलेश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज मंच पर विराजित थे। पंडित सुंदरलाल शर्मा पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति वीरेंद्र कुमार सारस्वत, संत गोपाल दास महाराज, संत गोवर्धन शरण महाराज तथा रांची, झारखंड से निग्रहचार्य जी महाराज अपने सहयोगियों सहित सम्मिलित हुए।
प्रत्येक श्रद्धालुओं के हाथ में तुलसी मंजरी, फूल, पूजन सामग्री
श्री शिवरीनारायण मठ महोत्सव में विहंगम दृश्य देखने को मिल रहा है, प्रत्येक श्रद्धालुओं के हाथ में तुलसी मंजरी, फूल, नारियल और पूजा सामग्री दिखाई दे रहा है। लोग भगवान को अर्पित कर अपना जीवन धन्य बना रहे हैं। इस दृश्य को देखकर आचार्य जी ने कहा, चारों तरफ श्यामा- श्यामा तुलसी मंजरी देखकर प्रतीत होता है कि यह शबरी की भूमि है। माता शबरी भी रघुनाथ जी की प्रतीक्षा में प्रत्येक दिन यही कार्य करती थी।
नगर के युवा सेवा कार्य में लगे हुए हैं
शिवरीनारायण अध्यात्मिक नगर है यहां के प्रत्येक युवा भगवान की सेवा में समर्पित हैं. दोपहर हजारों की तादाद में उपस्थित श्रद्धालुओं को वे अपने हाथों से भोजन परोस कर पुण्य अर्जित कर रहे हैं। वे सभी सुलझे हुए हैं, वर्षों से यह सेवा कार्य करते आ रहे हैं।
छात्र-छात्राएं भी हो रही शामिल
नगर में संचालित अनेक स्कूलों के छात्र-छात्राएं भी बड़ी संख्या में कथा श्रवण के लिए उपस्थित हो रहे हैं, शिक्षक उन्हें संस्कारित करने में लगे हुए हैं और अपने नगर के गौरव से उन्हें अवगत करा रहे हैं।






