सनातन धार्मिक ग्रंथों में देव, पितृ और गुरु ऋण का विस्तार से बताया गया है। अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पितरों की पूजा उपासना की जाती है। इस दौरान तर्पण, श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया जाता है। इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों का धरती पर आगमन होता है। इसके लिए अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की तिथियों को पितृ पक्ष मनाया जाता है।
पितरों को प्रसन्न करने से व्यक्ति पर उनकी कृपा बरसती है। पितरों के आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। गरुड़ पुराण में श्राद्धकर्म के बारे में विस्तार से बताया गया है। आइए, जानते हैं की श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं-
-नित्य श्राद्ध को किसी निश्चित तिथि पर किया जा सकता है। इस मौके पर आवाहन की जरूरत नहीं पड़ती है।
-नैमित्तिक श्राद्ध देवताओं को समर्पित होता है। पुत्र जन्म के क्षण यह श्राद्ध किया जाता है।
-काम्य श्राद्ध को विशेष इच्छा पूर्ति हेतु किया जाता है। इस श्राद्ध के करने से व्यक्ति की भौतिक इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
-शुद्धयर्थ श्राद्ध यह आत्म शुद्धीकरण के लिए किया जाता है।
पुष्टयर्थ श्राद्ध को सांसारिक पुष्टि के लिए किया जाता है।
-दैविक श्राद्ध को देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है।
-यात्रार्थ श्राद्ध को विशेष यात्रा के मौके पर किया जाता है। इससे यात्रा सफल होती है।
-16 संस्कारों में एक संस्कार कर्मांग श्राद्ध है।
-गोष्ठी श्राद्ध को परिवार के सभी सदस्य करते हैं। इस श्राद्ध को सामूहिक रूप से करने का विधान है।
वृद्धि श्राद्ध को संतान प्राप्ति और धन वृद्धि हेतु किया जाता है।
-पार्वण श्राद्ध को अमावस्या की तिथि को किया जाता है। यह श्राद्ध बड़े बुजुर्गों के निमित्त किया जाता है।
-सपिण्डन श्राद्ध को किसी व्यक्ति के मृत्यु के उपरांत 12 वें दिन किया जाता है।
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