नई दिल्ली. नया वित्त वर्ष शुरू हो चुका है. इसके साथ ही इनकम टैक्स (Income Tax) से जुड़े नए नियम भी प्रभाव में आ गए हैं. वित्त वर्ष 2023-24 के लिए सरकार ने नई इनकम टैक्स रिजीम (New Income Tax Regime) के तहत स्लैब में बदलाव किया है. नई टैक्स रिजीम को आकर्षक बनाने के लिए इसमें कुछ बेनेफिट्स भी जोड़े गए हैं. अब नई कर व्यवस्था अपनाकर आयकर भरने वालों को भी स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ दिया जाएगा. साथ ही 7 लाख रुपये तक की आय पर कोई आयकर नहीं देना होगा. अगर आप नौकरीपेशा हैं, तो आपके लिए इसी महीने से अपनी कंपनी को यह बताना जरूरी है कि आप नई टैक्स रिजीम के अपनाकर आयकर देंगे या फिर पुरानी व्यवस्था के माध्यम से यह काम करेंगे.
अपने नियोक्ता को टैक्स रिजीम की जानकारी देना हर कर्मचारी के लिए इसलिए आवश्यक है. कर्मचारी द्वारा चुनी गई टैक्स रिजीम से ही यह तय होगा कि उसकी सैलरी इनकम से कितना टैक्स (TDS) कटेगा. ध्यान रखें कि वित्त वर्ष 2023-24 से, नई टैक्स रिजीम डिफॉल्ट ऑप्शन बन गई है. इसलिए, अगर आप अपने एंप्लॉयर को यह जानकारी नहीं देते हैं, कि आपने कौन-सी रिजीम चुनी है, तो नई टैक्स रिजीम के तहत नई इनकम टैक्स स्लैब के आधार पर टीडीएस कटेगा.
किसी वेतनभोगी व्यक्ति को पुरानी और नई टैक्स रिजीम में से चुनना होता है. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के 13 अप्रैल 2020 के सर्रकुलर के मुताबिक, सैलरी वाला व्यक्ति सैलरी पर टीडीएस के लिए दोनों में से टैक्स रिजीम को चुन सकता है.
जल्द जानकारी देने में ही भलाई
सही टैक्स प्लानिंग नहीं करने से सैलरी इनकम से ज्यादा टीडीएस कटेगा और आपके हाथ में आने वाली सैलरी भी घट जाएगी. इसलिए आपको टैक्स रिजीम का निर्धारण अभी ही कर लेना चाहिए. अगर आपकी वेतन से होने वाली आय से असल टैक्स लायबिलिटी के मुकाबले ज्यादा टीडीएस कटेगा तो आपको नुकसान होगा. फिर आपको रिफंड के लिए इंतजार करना होगा. जब तक इनकम टैक्स विभाग आईटीआर फॉर्म की प्रोसेसिंग नहीं करेगा, तब तक आपको पैसे नहीं मिलेंगे.
नहीं बताई तो लागू होगी नई रिजीम
इसलिए नियोक्ता को इन्वेस्टमेंट डेक्लरेशन की जानकारी देने में देर न करें. कहीं ऐसा न हो कि आप पुरानी कर व्यवस्था में उपलब्ध प्रावधानों का उपयोग कर अपनी टैक्स देयता को कम करने की सोच रहे हों, लेकिन इन्वेस्टमेंट डिक्लरेशन न देने के कारण आपके वेतन से टीडीएस नई रिजीम के अनुसार कट जाए.