किसान चाची : बिहार के खेतों से पद्मश्री तक का सफ़र, सामाजिक बंदिशों को तोड़ लिखी सफलता की कहानी

बिहार. महिलाओं को घर की दहलीज तक ही सीमित रखा जाता हैं, लेकिन हालातों के मारे जब कोई महिला घर से बाहर निकलती है तो इतिहास बन जाते हैं. बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के सरैया प्रखंड के आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी ने जब खेती-बाड़ी शुरू की तो कोई ख़ास अनुभव नहीं था. अनुभव से सींखती रही और खेती-बाड़ी में रम गयी. आमदनी कम हो रही तो कृषि से संबधित घरेलू उद्योग जैसे अचार, पापड़ एवं मसाले बनाने शुरू किए. प्रोडक्ट तो बन गए, लेकिन उन्हें बेचने में तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा तो एक बार फिर वो घर से बाहर निकली, लेकिन इस बार साइकिल लेकर. साइकिल चलाना न परिवार को मंज़ूर था और न ही समाज को लेकिन वो थी, अपने धुन की पक्की.
गाँव-गली में घर-घर घुमकर उन्होंने अपने अचार एवम् मसाले बेचना शुरू किया. देखते ही देखते उनका कारोबार चल निकला और वो क्षेत्र में ‘साइकिल चाची’ के नाम से प्रसिद्ध हो गयी.
कारोबार बढ़ा तों गाँव की महिलाओं को साथ में जोड़ना शुरू किया और कूछ ही समय में उनके साथ 300 से ज़्यादा महिलाएँ जुड़ गयी. उत्पादन बढ़ा तों कारोबार का दायरा भी बढ़ना शुरू हुआ और बिहार से निकलकर देश के कई कृषि मेलों में उनके उत्पाद बिकने लगे। गुणवत्ता और स्वाद ने उनके उत्पादों को मशहूर कर दिया और राजकुमारी देवी ‘किसान चाची’ के रूप में प्रसिद्ध हो गयी.
उनके उत्पादों की गुंज सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक पहुँची और उन्होंने राजकुमारी देवी को पाँच लाख नक़द आटा चक्की और ज़रूरत के सामान दिए जिससे उनके व्यापार को बढ़ाने में मदद मिली.
इसके बाद राजकुमारी देवी के जीवन में वो पल आया, जो शायद ही देश की किसी महिला किसान को नसीब हो पाया. बदलाव के दौर को देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने पद्म पुरुस्कारों की प्रक्रिया बदली तो किसान चाची को भी ‘पद्मश्री सम्मान’ से नवाज़ा गया.
राजकुमारी देवी का संघर्ष और जीवटता ही उनकी पहचान बन गयी. नारीशक्ति का एक नया रूप बनते हुए वो समाज के लिए आदर्श बन गई हैं. घर से बाहर कदम रखने पर जिसने ठुकराया था, वही समाज व परिवार आज उनके कारण अपने को गौरवान्वित महसूस करता है.



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