हास्य अभिनेता राजू श्रीवास्तव का बुधवार को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया, जहां वह 41 दिन से भर्ती थे। राजू श्रीवास्तव ने अपने करियर की शुरुआत में अमिताभ बच्चन जैसा दिखकर प्रसिद्धि पाई, लेकिन बाद में उन्होंने एक हास्य कलाकार के रूप में खुद की अलग पहचान बनाई। हास्य अभिनय के करियर से उन्होंने राजनीति की ओर रुख किया और कुछ दिन समाजवादी पार्टी में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए थे।
आसपास की चीजें से जुड़े होते थे चुटकुले
कानपुर के रहने वाले राजू ने अपने अलग तरह के हास्य से रंगमंच, टेलीविजन पर और सोशल मीडिया मंचों पर अपने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उनके हास्य में आसपास की चीजों, पशुओं, समाज के विभिन्न किरदारों पर आधारित चुटकुले होते थे।
कभी वह मुंबई की लोकल ट्रेन में यात्रा करने का चित्रण प्रस्तुत कर हास्य पैदा करते थे तो कभी शादी समारोह की दावत का दृश्य सामने रख लोगों को हंसने पर मजबूर करते थे।
करियर की शुरुआत में उनकी पहचान अमिताभ बच्चन सरीखा दिखने से हुई थी, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने अपनी पहचान बनाई और अपना प्रशंसक वर्ग बना लिया। वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालू प्रसाद जैसे राजनेताओं तथा अनेक कलाकारों की नकल करने के लिए भी जाने जाते थे।
गजोधर भैया’ बनकर जीता दिल
राजू श्रीवास्तव ने कुछ फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार भी किए। मसलन ‘तेजाब’ (1988), ‘मैंने प्यार किया’ (1989) और ‘बाजीगर’ (1993) में उन्हें देखा गया था। उन्होंने 1990 के दशक में दूरदर्शन के मशहूर शो ‘शक्तिमान’ में भी काम किया था। हालांकि 2005 में ‘द ग्रेट इंडिया लाफ्टर चैलेंज’ नामक शो से उन्हें और ज्यादा पहचान मिली। घर-घर में वह हंसी का पर्याय बन गए, मंचों की शान बन गए। वह खुद को एक आलसी ग्रामीण किरदार ‘गजोधर भैया’ के रूप में प्रस्तुत करते थे और उनके प्रशंसक उन्हें इस नाम से भी पुकारते थे।
यूपी फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष रहे राजू
राजू को 2014 में कानपुर से लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से टिकट दिया गया। उन्होंने इसे लौटा दिया और भाजपा में शामिल हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से जोड़ा और उन्हें उत्तर प्रदेश की फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष भी बनाया गया। वह इस पद पर अपने अंतिम समय तक रहे। वह हास्य से परे आलोचनात्मक रुख भी रखते थे।
उन्होंने ओटीटी मंच के शो ‘मिर्जापुर’ की हिंसक और अश्लील विषयवस्तु को लेकर इसकी आलोचना की थी। उन्होंने 2021 में वेब सीरीज ‘तांडव’ पर कथित रूप से हिंदुओं की भावनाएं आहत करने के लिए निशाना साधा। बता दें कि राजू के पिता रमेश श्रीवास्तव भी हास्य कवि थे।
अमिताभ से प्रेरित थे राजू
साल 1982 में जब ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग के दौरान बच्चन को भीषण चोट लगी तब महज 18 वर्ष की आयु में राजू श्रीवास्तव मुंबई पहुंच गए। वह बच्चन की एक झलक पाना चाहते थे। राजू श्रीवास्तव को अमिताभ की झलक देखने को नहीं मिली तो वह ब्रीच कैंडी अस्पताल में ताक लगाए बैठी भीड़ में शामिल हो गए, जहां ‘शहंशाह’ भर्ती थे।
राजू श्रीवास्तव के भाई दीपू ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘राजू भाई रोजाना वड़ा पाव खाते थे और अस्पताल के बाहर खड़े होकर बच्चन जी के लिए दुआ करते थे। वह अमिताभ बच्चन जी को देखने आए थे क्योंकि वह उन्हें भगवान मानते थे।’
अमिताभ बच्चन ठीक होकर सेट पर लौट गए और राजू श्रीवास्तव ने यहीं रहकर मनोरंजन उद्योग में करियर बनाने का फैसला किया, जिसने उनका जीवन बदल दिया।’ दीपू ने कहा, ‘वह दादर स्टेशन के पुल और पार्कों में सोते थे और झोपड़पट्टी में रहते थे। वह शहर में होने वाले कॉमेडी शो के बारे में पता लगाने के लिए अखबारों के विज्ञापन खंगालते थे।’