संघ के सरसंचालक मोहन भागवत इस समय छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हैं। यहां 10 से 12 सितंबर तक संघ के अनुषांगिक संगठनों की समन्वय बैठक होने जा रही है। इसमें जहां भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और बीएल संतोष शामिल होंगे तो वहीं संघ की विभिन्न इकाइयों के अगुवा भी शामिल रहेंगे। यह बैठक तो 10 से शुरू होगी, लेकिन भागवत आखिर 6 सितंबर को रायपुर क्यों आ गए? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका ठीक-ठीक जवाब तो कोई नहीं दे सकता, लेकिन कयास जरूर लगाए जा सकते हैं। तो चलिए शुरू करते हैं भागवत की पूरा यात्रा का पॉलिटिकल एनालिसिस।
भागवत क्या करने वाले हैं, संघ क्या सोच रहा है, भाजपा और राज्य की राजनीति में इसका क्या असर होने वाला है, ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब कठिन हैं, लेकिन पूरी गतिविधि को बारीकी से देखें तो हम जवाब के लगभग करीब पहुंच जाते हैं। इसे समझने के लिए मैं आपको बिंदुवार चीजें बताता हूं।
पहला, इस पूरी कवायद में संघ की ओर से सेवा प्रकल्पों को फ्रंट पर रखा जाएगा। मीडिया को बिना किसी औपचारिक जानकारी के ऐसे साउंड पर सेट करना कि संघ के सेवा प्रकल्प राज्य और देश के गांव-गांव में सक्रिय हैं और उनके साथ लोग वास्तविक रूप से सिंक्रोनाइज्ड हैं।
दूसरा, अपनी सांस्कृतिक इकाइयों को फिर से सक्रिय करना। ताकि भूपेश सरकार की गांव, किसान, पर्व, तीज, संस्कृति केंद्रित योजनाओं और राजनीतिक टच को डायल्यूट किया जा सके। साथ ही इसका एक्जेक्यूशन देशभर में करना खासतौर से उन राज्यों में भी जहां पर क्षेत्रीय दलों का गांव-गांव में दखल है।
तीसरा, कांग्रेस आक्रामक नहीं होना, क्योंकि यह संघ की तासीर के विरुद्ध नजर आता है। इसके स्थान पर परोक्ष रूप से कांग्रेस को घेरना। जैसे नई शिक्षा नीति, हाल ही में नैवी में प्रतीक चिन्ह में बदलाव, रोड, शहर, सड़क के नामकरण आदि का उभार करना।
चौथा, संघ से बाहर भी कोई सांस्कृतिक संस्थाएं हैं उनमें संघ से जुड़े लोगों को इंट्रैक्शन बढ़ाना है। वे सकारात्मक छवि की हैं तो उनमें अपने लोगों की भागीदारी सुनिश्चत हो सके।
पांचवा, धर्मांतरण से निपटने के लिए संघ तीन स्तरों पर काम कर रहा है। पहला हिंदू समूहों में जागरण और उनमें हिंदू होने का विश्वास जगाना। दूसरा धर्मांतरण में सक्रिय एजेंसियों की आर्थिक कमर तोड़ना। तीसरा सरकारों के स्तर पर धर्मांतरण के लिए सॉफ्ट टारगेट वाले वर्ग की सभी सहूलियतों और जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करना। छत्तीसगढ़, झारखंड संघ के फोकस में हैं।
छठवां, मीडिया में संघ को लेकर राजनीतिक चर्चा को कमतर करवाना। इसके स्थान पर रचनात्मक कार्यों की चर्चा का हिस्सा बढ़ाना।
सातवां, संघ के इस दौरान के तमाम डिस्कशंस में किसी भी सरकार के लिए आक्रामक नहीं होना शामिल है। इसलिए संभव है कि संघ गोबर खरीदी, गौसंरक्षण के लिए नरवा,घुरवा, गरुवा, बाड़ी की तारीफ करे। इससे संघ की विश्वसनीयता बढ़ती है।
आठवां, इस दौरान राजनीतिक चर्चा भी की जाएगी। इसमें प्रदेश में भाजपा की सरकार आने की स्थिति में चेहरा कौन होगा। कोई घोषणा नहीं होगी, लेकिन लगभग 4 से 5 नाम तय कर लिए जाएंगे। इन चेहरों में 2003 से 2018 तक रही तीनों भाजपा सरकारों में शामिल रहा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा।
नवां, छत्तीसगढ़ में भाजपा चुनाव लड़ेगी, लेकिन इसका केंद्रीय नियंत्रण संघ के हाथ में ही रहे, इसका ख्याल रखा जाएगा। इसलिए यह बड़ी बात है कि 40 से अधिक सीटों पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व संघ बैकग्राउंड के लोगों को टिकट दिलाया जाएगा। संघ की कोशिश है कि वह आगामी विधानसभा में अपने विधायकों की औसत आयु 40 से 45 वर्ष के बीच रखे।
दसवां, 12 सितंबर को समापन अवसर पर कॉमन संबोधन देंगे। इसमें हिंदुत्व, संस्कृति, भारत, धर्मांतरण, सहिष्णुता, विश्वास बहाली जैसे विषयों पर बात हो सकती है।
अत में यह भी एक सूचना है कि नड्डा तीनों दिन रायपुर में न रुककर 10 को ही वापस चले जाएं। क्योंकि संघ इस कार्यक्रम की क्लोजिंग सोशल इश्यूज पर चर्चा और भारतीय सामाजिक परंपरा व संस्कृति केंद्रित गतिविधियों पर करवाना चाहता है।
इसलिए राजनीतिक इकाई का तीनों दिन रहना इसमें बाधा बनेगा। एक अपुष्ट सूचना यह भी है कि इसमें अगले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर भी बात हो सकती है। चूंकि नड्डा परिणामों के बाद हिमाचल भेजे जा सकते हैं।