Motivational Poems in Hindi : मुश्किल समय में इन कविताओं को पढ़ने से मिलेगी प्रेरणा

जिंदगी में कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जब सब कुछ मुश्किल लगता है. वक्त आसानी से नहीं कटता है. बस निराशा ही हाथ लगती है. ऐसे में या तो इंसान तनावग्रस्त हो जाता है या फिर सब कुछ ठीक करने की चाहत में हर जरूरी कोशिश करने के लिए तैयार होता है. अगर आप भी इसी दौर से गुजर रहे हैं या आपके किसी अपने का बुरा वक्त चल रहा है तो आप हिंदी साहित्य की मदद से खुद को या उन्हें बेहतर मेहसूस करवा सकते हैं.



हरिवंश राय बच्चन समेत कई कवियों की खूबसूरत रचनाओं की मदद से आप जिंदगी में बेहतर महसूस कर सकते हैं. यहां पढ़ें चुनिंदा प्रेरणादायक कविताएं…

प्रेरणादायक कविताएं वीर

सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।

मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत नित रहते हैं,
शुलों का मूळ नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।

इसे भी पढ़े -  Sakti News : केनापाली गांव में 23 महिला समूह को किया गया सम्मानित, जिला पंचायत सदस्य, CEO सहित सरपंच रही मौजूद

है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।

गुन बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भितर,
मेंहदी में जैसी लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है।

अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ।
-हरिवंश राय बच्चन

नर हो, न निराश करो मन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को।

इसे भी पढ़े -  Sakti News : केनापाली गांव में 23 महिला समूह को किया गया सम्मानित, जिला पंचायत सदस्य, CEO सहित सरपंच रही मौजूद

संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को।

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।

प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्‍त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को।

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जन हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को।

इसे भी पढ़े -  Sakti News : केनापाली गांव में 23 महिला समूह को किया गया सम्मानित, जिला पंचायत सदस्य, CEO सहित सरपंच रही मौजूद

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।

– मैथिलीशरण गुप्त (साभार- कविता कोश)

error: Content is protected !!