बिलासपुर के मोपका स्थित तिवारी परिवार की स्वर्गीय लच्छनबाई तिवारी के पुण्य स्मरण में नकलंक धाम, भारतमातापुरम कॉलोनी, भूपतवाला, हरिद्वार में श्रीमद् भागवत महापुराण का आयोजन किया जा रहा है। सरवानी, जांजगीर-चाम्पा जिले के सरवानी वाले कथा वाचक पंडित राजकुमार शर्मा श्रीमद् भागवत महापुराण की संगीतमय प्रस्तुति और सुंदर उद्धरण के साथ भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास की बातें बता रहे हैं। 27 जनवरी 2023 से 03 फरवरी 2023 तक चल रहे श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के मुख्य यजमान मोपका निवासी घनश्याम-रजनी तिवारी हैं।स्वर्गीय लच्छनबाई तिवारी की स्मृति में चल रहे श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रथम दिन मुख्य यजमान घनश्याम-रजनी तिवारी से श्रीमद् भागवत जी का पूजन कर ठाकुर जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। हरिद्वार के नकलंक धाम से भव्य कलश यात्रा निकाली गई। पीले वस्त्र धारण किए हुए सिर पर कलश उठाए कन्याएं और महिलाएं निकलीं। कलश यात्रा में सबसे आगे मुख्य यजमान घनश्याम-रजनी तिवारी भागवत सिर पर उठाए चले। इसके साथ ही परिवार के करीब तीन सौ सदस्यों के अलावा स्थानीय श्रद्धालु भी शामिल हुए। कलश यात्रा के बाद मंत्रोच्चार के साथ पंचांग पूजन हुआ।
तत्पश्चात श्रीमद्भागवत कथा वाचक पंडित राजकुमार शर्मा ने अमृतमयी वाणी से प्रथम दिवस की कथा में प्रवेश कराते हुए प्रथम स्कंध के प्रथम श्लोक “सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पयादि हेतवे, तापत्रय विनाशाय श्री कृष्ण वयं नम:।” की व्याख्या करते हुए भक्तों को सुखदेव जी के जन्म की कथा का वृतांत सुनाया। पंडित राजकुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में श्रीमद् भागवत महात्म्य के विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस कलयुग में मनुष्य अपने भावों को सत्संग के जरिए ही स्थिर रख सकता है। सत्संग के बिना विवेक उत्पन्न नहीं हो सकता और बिना सौभाग्य के सत्संग सुलभ नहीं हो सकता। कथा वाचक पंडित राजकुमार शर्मा ने कहा कि कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित ने ऋषि श्रृंगी के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था और ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि ठीक सातवें दिन सर्प के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। उसी श्राप के निवारण के लिए वेद व्यास द्वारा रचित भागवत कथा शुकदेव द्वारा सुनाई गई। जिसमें उनका उत्थान हो गया।
राजा परीक्षित ने सात दिन भागवत सुनकर किस तरह अपना उद्धार कर लिया। उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को भागवत का महत्व समझना चाहिए। भागवत अमृत रूपी कलश है। जिसका रसपान करके आदमी अपने जीवन को कृतार्थ कर लेता है। इसलिए जहां भी भागवत होती है।
कथा वाचक पंडित राजकुमार शर्मा ने श्री मद्भागवत कथा का परिचय देते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत कथा मानव जीवन का आधार है। श्रीमद्भागवत ह्रदय के संशयों को दूर करती है। उन्होंने प्रसंगों के माध्यम से प्रथम स्कंध कथा का वर्णन किया। पंडित राजकुमार शर्मा ने महाभारत युद्ध के पश्चात की कथा, परीक्षित श्राप और शुकदेव आगमन के प्रसंग के साथ भगवान की सभी लीलाओं का संक्षिप्त वर्णन किया। उन्होंने अच्छे ओर बुरे कर्मो की परिणिति को विस्तार से समझाते हुए आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी ओर गौमाता के पुत्र गोकरण के कर्मो के बारे में विस्तार से वृतांत समझाया ओर धुंधकारी द्वारा एकाग्रता पूर्ण भागवत कथा श्रवण से प्रेतयोनी से मुक्ति बताई तो वही धुंधकारी की माता द्वारा संत प्रसाद का अनादर कर छल-कपट से पुत्र प्राप्ति ओर उसके बुरे परिणाम को समझाया। पहले दिन भगवान के विराट रूप का वर्णन किया गया। इसे सुन श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए। इसके बाद भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ। प्रथम दिन की कथा के समापन से पूर्व आरती की गई। आरती के बाद उपस्थित श्रद्धालुओं में प्रसाद का वितरण किया गया।
भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि भागवत के तीसरे स्कंद के 21 वें अध्याय में कर्दम और देवहूति के विवाह का प्रसंग का जिक्र करते हुए सांख्य योग प्रणेता भगवान कपिल मुनि के अवतार की कथा सुनाई। उन्होंने आगे बताया कि ब्रह्मा की छाया से उत्पन्न कर्दम ऋषि को सृष्टि की वृद्धि के लिए पिता से आदेश मिला। एक दिन महाराज मनु महर्षि कर्दम के आश्रम पर पधारे और महर्षि कर्दम का महाराज मनु की कन्या देवहूति के साथ विवाह सम्पन्न हो गया। इसके बाद भगवान कपिल ने देवहूति के गर्भ से अवतार लिया।
ध्रुव चरित्र सृष्टि की रचना पर प्रकाश डालते हुए कथा वाचक पंडित राजकुमार शर्मा ने कहा कि मनुष्य जीवन आदमी को बार-बार नहीं मिलता है इसलिए इस कलयुग में दया धर्म भगवान के स्मरण से ही सारी योनियों को पार करता है। मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग बताते हुए कहा कि, यह पवित्र संस्कार है, लेकिन आधुनिक समय में प्राणी संस्कारों से दूर भाग रहा है। इसके बाद ऋषभ देव के चरित्र वर्णन करते हुए पंडित राजकुमार शर्मा ने कहा कि मनुष्य को ऋषभ देव जी जैसा आदर्श पिता होना चाहिए। जिन्होंने अपने पुत्रों को समझाया कि इस मानव शरीर को पाकर दिव्य तप करना चाहिए, जिससे अंत:करण की शुद्धि हो तभी उसे अनंत सुख की प्राप्ति हो सकती है। भगवान को अर्पित भाव से किया गया कर्म ही दिव्य तप है। उन्होंने कहा कि ये अशक्ति ही सुख दुख का कारण है।
कथा वाचक पंडित राजकुमार शर्मा ने कहा कि जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है, ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी प्रक्रिया शुरू तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे। ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया, लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की। दूसरे दिन की कथा के समापन से पूर्व आरती की गई। आरती के बाद उपस्थित श्रद्धालुओं में प्रसाद का वितरण किया गया।