Filmy Hero-Real Hero : रील हीरो मनोज वाजपेयी ने फ़िल्मी कॅरियर बनाने किया ऐसा स्ट्रगल, जिसे जानकर आप उन्हें मानने लगेंगे रियल हीरो… पढ़िए…

“9 साल की उम्र से ही मुझे एक्टिंग में इंटरेस्ट था और मैंने इसी में कुछ करने का मन बना लिया था। जब मुंबई आया तो पहले चार साल मेरे लिए सबसे कठिन थे। मैं पांच लड़कों के साथ एक चॉल में किराए पर छोटा-सा कमरा लेकर रहता था। एक बार, एक एडवरटाइजिंग कंपनी ने मुझे रिजेक्ट करते हुए मेरी फ़ोटो फाड़कर फेंक दी थी। कई बार हाथ में आए प्रोजेक्ट्स भी गंवाने पड़ते।



मुझे यह तक बताया गया कि मैं ‘हीरो’ के रोल के लिए सही नहीं हूं, कई लोगों को यकीन था कि मैं बड़े पर्दे के लिए नहीं बना। हर आउटसाइडर की तरह मैंने भी बहुत संघर्ष किया। तब पैसे भी नहीं हुआ करते थे, कभी-कभी कमरे का किराया देने के लिए भी एड़ियाँ घिसना पड़ता। कई दिन केवल वड़ा पाव खाकर या भूखे रहकर भी गुज़ारे।

अच्छी बात यह है कि मेरे पेट की भूख, मेरे दिल की सफल होने की भूख को दूर नहीं कर सकी और मैंने हिम्मत नहीं हारी। चार साल के संघर्ष के बाद महेश भट्ट की एक टीवी सीरीज़ में छोटा रोल मिला, जिसके लिए मुझे हर एपिसोड के 1500 रुपये मिलते थे। वो मेरी पहली ‘स्थिर’ कमाई थी। समय बदला और फिर मुझे अपनी पहली बॉलीवुड फ़िल्म मिली जिसमें 1 मिनट का रोल था। उसके कुछ समय बाद आखिरकार ‘सत्या’ फ़िल्म से मुझे मेरा बड़ा ब्रेक मिल ही गया। और जब आर्थिक स्थिति सुधरी तो मैंने सबसे पहले अपना घर खरीदा।

आज सबकुछ एक सपने जैसा लगता है। लेकिन, जब सपनों को सच्चाई में बदलने की बात आती है तो संघर्ष और कठिनाइयां मायने नहीं रखतीं; मायने रखता है तो उस 9 वर्षीय बिहारी लड़के का विश्वास!”
– मनोज बाजपेयी

शिखर पर पहुँचकर भी अपनी ज़मीन से जुड़े रहने वाले बहुत ही कम लोग होते हैं। उनमें से एक हैं मनोज बाजपेयी। इनकी अपार सफलता से आज हर कोई परिचित है लेकिन, उस सफलता के पीछे लगी बरसो की मेहनत और संघर्ष के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। 2019 में मनोज बाजपेयी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

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