चांद पर क्यों हैं इतने गड्ढे, आखिर किसने किया निर्माण?

दशकों से चांद को लेकर उपमाएं दी जा रही हैं, गीत लिखे जा रहे हैं, शायरियां कही जा रही हैं. हर कोई चांद को अपनी मेहबूबा की खूबसूरती से जोड़कर देखता है. हालांकि, कुछ ही गीतकारों ने इस बात का जिक्र किया कि चांद में दाग हो सकता है, पर उसकी प्रेमिका में कोई दाग नहीं है!
चांद के गड्ढों को उसके ऊपर लगे दाग की तरह देखा जाता है. धरती से जब आप पूर्ण चंद्रमा को देखते होंगे, तो ये गड्ढे, बड़े धब्बों की तरह नजर आते होंगे. आपने हाल ही में चंद्रयान की लैंडिंग देखी होगी, चांद की तस्वीरें देखी होंगी, उनमें भी आपको ये गड्ढे (Why Moon Have Craters) दिखे होंगे. तो क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर चांद में इतने गड्ढे क्यों हैं, और उन्हें किसने बनाया है?



 

 

 

 

“चांद पर इतने गड्ढे क्यों हैं?” (Why moon have craters who made them) अब सवाल तो छोटा और आसान सा ही है, पर इसका जवाब काफी रोचक है. चलिए सबसे पहले बताते हैं कि लोगों ने इस सवाल का क्या उत्तर दिया.

इसे भी पढ़े -  Dabhara News : सांस्कृतिक भवन में मनाया गया अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, एसडीएम, नगर पंचायत अध्यक्ष, सीईओ, सीएमओ और बीईओ सहित अन्य लोग रहे मौजूद

 

 

चांद के गड्ढे उल्का पिंड गिरने की वजह से बनते हैं.

 

 

सोशल मीडिया पर लोगों ने क्या दिए जवाब?
एक व्यक्ति लिखते हैं- “हमारा अंतरिक्ष एक बेहद खतरनाक स्थान है. यहां अनगिनत संख्या में छोटे बड़े पत्थर घूम रहे हैं जिन्हें हम उल्का पिंड कहते हैं. ये इंसानी बाल के बराबर से लेकर हिमालय के पहाड़ों जितने बड़े हो सकते. वैसे ये मूलतः तो मंगल तथा बृहस्पति की कक्षा के बीच में विराजमान हैं लेकिन इनमें से अनगिनत पिंड अपने रास्ते से भटक कर अन्य ग्रहों तथा उपग्रहो का चक्कर काटते रहते है तथा उनसे टकराते रहते हैं. औसतन प्रतिदिन पृथ्वी पर 2.5 करोड़ छोटे बड़े पिंड प्रवेश करते हैं लेकिन इनमे से अधिकांश पृथ्वी की वायुमंडल में जल कर खाक हो जाते है और सतह तक नहीं पहुंच पाते है, लेकिन चंद्रमा पर उसे बचाने के लिए कोई वायुमंडल नहीं है अतः जितने भी पिंड चांद पर प्रवेश करते हैं वो सारे पिंड बड़ी प्रचंडता से चंद्रमा की सतह से टकराते है और फल स्वरूप वहां एक गड्ढा बन जाता है. चांद को सतह का सबसे बड़ा गड्ढे का व्यास 2500 किमी है तथा 8 किमी गहरा है.

इसे भी पढ़े -  Malkharouda News : आमनदुला गांव के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में विकासखंड स्तरीय शाला प्रवेश उत्सव आयोजित, उत्कृष्ट छात्र-छात्राओं को चांदी के सिक्के से किया गया सम्मानित, तिलक एवं मिठाई खिलाकर शाला में कराया गया प्रवेश, 25 छात्राओं को सायकल का किया गया वितरण

 

 

शख्स ने कहा- “चांद पर उल्का पिंडों के गिरने की वजह से गड्ढों का निर्माण हुआ है. पृथ्वी पर भी रोजाना हजारों-लाखों उल्का पिंड गिरते रहते हैं, परंतु पृथ्वी पर वायुमंडल की मौजूदगी के कारण सामान्यतः कोई हानि नहीं होती है. इसका कारण यह है कि पृथ्वी पर गिरते समय जब ये वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो वायु की रगड़ से इनमें आग लग जाती है और पृथ्वी की सतह पर पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं. परंतु चांद पर वायुमंडल न होने की वजह से जब कोई उल्का पिंड गिरता है तो अपने आकार से कई गुना बड़ा गड्ढा कर देता है.”

 

 

 

क्या कहती है नासा की रिपोर्ट?
इन जवाबों को पढ़कर आप समझ गए होंगे कि दोनों ने एक जैसी ही बातें कही हैं. अब सवाल उठता है कि असल में इसका जवाब क्या है? नासा की रिपोर्ट ऊपर दिए जवाबों को सही बताती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक ये गड्ढे उल्कापिंडों से बने हैं जो करोड़ों सालों से चांद पर गिर रहे हैं. चांद पर कोई वायुमंडल नहीं है, पेड़-पौधे नहीं हैं, पानी नहीं है, हवा नहीं है, इस वजह से जो गड्ढे बन गए, वो हमेशा बने रह जाते हैं.

इसे भी पढ़े -  Malkharouda News : कर्रापाली के आश्रित ग्राम दारीमुड़ा में जनजातीय गौरव वर्ष धरती आबा जनभागीदारी अभियान शिविर कार्यक्रम का आयोजित, मालखरौदा जनपद पंचायत अध्यक्ष कवि वर्मा हुए शामिल

error: Content is protected !!