आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति के पास तिरुमला पहाड़ी पर भगवान वेंकटेश्वर का भव्य और प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है. इस मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ विराजमान हैं.
देवी पद्मावती को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि अपने भक्तों को कष्टों और समस्याओं से बचाने के लिए भगवान वेंकटेश्वर के रूप में जगत के पालन हार श्रीहरिविष्णु ने अवतार लिया था.
मान्यता है कि आज भी कई ऐसे प्रमाण मौजूद हैं, जिनसे भक्तों को इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की मौजूदगी का आभास होता है. पौराणिक मान्यता है कि श्रीहरि विष्णु ने कुछ समय के लिए तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक कुंड के किनारे निवास किया था. इसके साथ ही आज भी यह कुंड विद्यमान है, जिसके जल से मंदिर के कार्य संपन्न किए जाते हैं.
प्रतिमा से आता है पसीना
मंदिर में भगवान बालाजी की जीवंत प्रतिमा स्थापित है, जो विशेष पत्थर से बनी हुई है और इससे पसीना आता है. उनकी प्रतिमा पर पसीने की बूंदें स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं. इसके साथ ही मूर्ति की पीठ को कितना भी साफ करें पर गीलापन रहता ही है. इस कारण ही मंदिर का तापमान कम रखा जाता है.
असली हैं प्रभु के बाल
मंदिर के जानकारों की मानें तो भगवान वेंकेटेश्वर की प्रतिमा के सिर पर जो बाल लगे हैं, वे असली हैं. ये बाल कभी भी नहीं उलझते हैं और हमेशा ही मुलायम बने रहते हैं.
ह्रदय में लक्ष्मी जी की बनती है आकृति
हर गुरुवार को बालाजी का श्रृंगार हटाकर स्नान कराया जाता है. इसके साथ ही प्रभु को चंदन का लेप लगाया जाता है. जब ये लेप हटाया जाता है तो भगवान के ह्रदय में माता लक्ष्मी की आकृति दिखाई देती है.
बालाजी मंदिर में एक दीपक हमेशा से ही जलता रहता है. इस दीपक में न तो तेल डाला जाता है और न ही घी डाला जाता है. यहां तक कि किसी को यह भी नहीं मालूम है कि यह दीपक सबसे पहले किसने और कब प्रज्ज्वलित किया था.
कभी भी नहीं बुझता है दीपक
बालाजी मंदिर में एक दीपक हमेशा से ही जलता रहता है. इस दीपक में न तो तेल डाला जाता है और न ही घी डाला जाता है. यहां तक कि किसी को यह भी नहीं मालूम है कि यह दीपक सबसे पहले किसने और कब प्रज्ज्वलित किया था.
प्रतिमा पर नहीं पड़ती है दरार
माना जाता है कि भगवान बालाजी पर पचाई कर्पूर लगाया जाता है. यह एक ऐसा कर्पूर होता है, जो जिस भी पत्थर पर लगाया जाता है, उसमें दरार पड़ जाती है. वहीं बालाजी की प्रतिमा पर इसका कोई भी असर नहीं पड़ता है.
प्रभु के नेत्रों में नहीं देख सकते हैं भक्त
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रभु वेंकेटेश्वर की आंखों में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का वास माना जाता है. इस कारण कोई भी भक्त प्रभु के नेत्रों में सीधे तौर पर नहीं देख सकता है. यहीं कारण है कि सफेद मुखौटे से उनकी आंखों को ढक दिया जाता है. भगवान की आंखों का मुखौटा सिर्फ गुरुवार के दिन ही बदला जाता है. ऐसे में मात्र क्षणभर के लिए ही भक्त प्रभु की आंखों का दर्शन कर सकते हैं.
भक्तों को नहीं दिया जाता है फूल और तुलसी
इस मंदिर में चढ़ाया गया फूल और तुलसी वापस भक्तों को नहीं दिया जाता है. इसे मंदिर के परिसर में बने एक कुएं में डाल दिया जाता है. इन्हें फेंकने के वक्त पुजारी कभी पीछे पलट कर नहीं देखते हैं.
मूर्ति की बदल जाती है दिशा
जब भी कोई भक्त मूर्ति के दर्शन करने के लिए गर्भ गृह में जाता है तो मूर्ति गर्भगृह के मध्य में स्थित दिखाई देती है. वहीं, गर्भ गृह से बाहर आकर देखने पर मूर्ति दाईं ओर दिखाई देती है.