Badrinath Dham : भू बैकुंठ बदरीनाथ के कपाट खुल गई हैं। चारधाम यात्रा शुरू हो गई है। केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री धाम के कपाट भी खोल दिए गए हैं। बदरीनाथ धाम भारत के चार धामों में से एक है।
बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में बदरीनाथ धाम स्थित है। बदरीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इन पर्वतों को नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अपने अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्रीकृष्ण के रूप में पैदा हुए थे।
इस धाम के बारे में कहा जाता है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’ यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे माता के उदर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता है। इस धाम के बारे में कहा जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था लेकिन भगवान विष्णु ने इसे भगवान शिव से मांग लिया था।
कहा जाता है कि एक बार मां लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठकर मायके चली गईं तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब मां लक्ष्मी की नाराजगी खत्म हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय इस स्थान पर बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बदरीनाथ नाम दिया।
बदरीनाथ के कपाट खुलते हैं उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि 6 महीने तक बंद कपाट के अंदर देवता इस दीपक को जलाए रखते हैं।
बदरीनाथ धाम की पूजा को लेकर कहा जाता है कि यहां भगवान की पूजा में शंख नहीं बजाया जाता है। इसके अलावा शंख नहीं बजाने के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी हैं। यह कहानी भी प्रचलित है कि एक बार मां लक्ष्मी बद्रीनाथ में बने हुए तुलसी भवन में ध्यानमग्न थीं। तभी भगवान विष्णु ने शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस का वध किया था। जीत का जश्न मनाने के लिए पहले शंख बजाया जाता था, लेकिन विष्णु जी लक्ष्मी जी के ध्यान में विघ्न नहीं डालने चाहते थे, इसलिए उन्होंने शंख नहीं बजाया। कहा जाता है कि तभी से बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाने की परंपरा है। बदरीनाथ सहित चारधामों के कपाट हर साल अक्टूबर-नवंबर में सर्दियों में बंद हो जाते हैं जो अगले साल फिर अप्रैल-मई में खुलते हैं।