महान ज्ञानी था रावण, फिर कैसे बना ब्रह्मराक्षस, जानिए कहानी और शनि देव को बंदी बनाने का रहस्य

नई दिल्ली: रावण का नाम सुनते ही हमारे मन में एक ऐसी छवि उभरती है जो दुष्टता और अहंकार की प्रतीक मानी जाती है, परंतु वह केवल एक प्रतिनायक नहीं था। रावण एक अत्यंत ज्ञानी, शक्तिशाली और महान विद्वान भी था।
उसकी विद्वता, उसकी तपस्या, और उसकी शक्तियों के पीछे छिपी कई कहानियां हैं, जिनमें से एक है उसका “ब्रह्मराक्षस” बनने की और शनि देव को बंदी बनाने की घटना।



 

 

 

रावण: एक महान ज्ञानी

रावण सिर्फ एक महान योद्धा और असुर सम्राट नहीं था, बल्कि वह वेद, शास्त्र, संगीत और ज्योतिष का भी गहरा ज्ञान रखता था। वह शिव का परम भक्त था और उसने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। कहते हैं कि रावण ने सामवेद में अपनी अद्वितीय पकड़ और संगीत के प्रति अपनी निष्ठा के कारण “रुद्र वीणा” का अविष्कार किया था। इसी कारण रावण को संगीत का ज्ञाता और विद्वान भी माना जाता है।

 

 

 

ब्रह्मराक्षस बनने की कहानी

रावण को “ब्रह्मराक्षस” का नाम कैसे मिला, यह भी एक रोचक कथा है। एक बार रावण ने भगवान शिव के निवास कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया था। जब उसने ऐसा किया, तो शिवजी ने क्रोधित होकर उसे अपने अंगूठे से दबा दिया, जिससे रावण के हाथ दब गए। इस स्थिति में रावण ने शिवजी की स्तुति में “शिव तांडव स्तोत्र” की रचना की, जिसे सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उसे मुक्त कर दिया। रावण के ब्राह्मण होने के बावजूद उसके द्वारा किए गए अन्यायपूर्ण कार्यों और अधर्म की वजह से उसे ‘ब्रह्मराक्षस’ कहा जाने लगा। हालांकि वह अत्यधिक विद्वान और शिव भक्त था, उसकी कठोरता और अहंकार ने उसे गलत मार्ग पर धकेल दिया, जिससे वह समाज में नकारात्मक रूप से प्रसिद्ध हो गया।

 

 

 

शनि देव को बंदी बनाने की कथा

रावण की असीम शक्ति और सामर्थ्य का एक और उदाहरण है जब उसने शनि देव को बंदी बना लिया था। मान्यता है कि रावण को अपने साम्राज्य और सत्ता पर घमंड था। वह चाहता था कि उसकी जन्म कुंडली में शनि की महादशा न पड़े, क्योंकि शनि की दृष्टि किसी पर भी पड़ने से उसका अनिष्ट होता है। रावण को पता चला कि शनि देव उसकी कुंडली के “अशुभ” स्थान में प्रवेश करने वाले हैं। उसने शनि देव को आकाश मार्ग में ही बंदी बना लिया ताकि वे उसकी कुंडली को प्रभावित न कर सकें। इसके बाद रावण ने शनि देव को बंदी बनाकर अपने महल के एक विशेष कक्ष में कैद कर दिया। किंवदंती है कि जब हनुमान जी लंका आए, तब उन्होंने शनि देव को मुक्त किया। शनि देव ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी व्यक्ति हनुमान की पूजा करेगा, उस पर शनि की दशा का प्रभाव कम हो जाएगा।

 

 

 

भाई से छीनी लंका

शिव-पार्वती के लिए विश्वकर्मा ने लंका को बनाया था, जिसे यज्ञ के बाद शिव से ऋषि विश्रवा दक्षिणा में मांग लिया था। सौतेली मां कैकेसी के जरिए ऋषि पुत्र कुबेर ने रावण को संदेश दिया कि लंका अब उनकी हो चुकी है। दरअसल रावण सिर्फ ये चाहता था कि लंका केवल उसी की रहे। इसलिए कुबेर को रावण ने धमकी दी कि उसे बलपूर्वक छीन लेगा। शिव की तपस्या के बाद रावण पर किसी का वश नहीं चलने वाला है ये बात पिता विश्रवा जानते थे। पिता विश्रवा ने कुबेर को सलाह दी कि रावण को लंका दे दें। इस तरह से रावण का कब्जा लंका पर हो गया।

 

 

रावण ने कई किताबें लिखीं

चिकित्सा विज्ञान का भी बड़ा जानकार था। सने अर्क प्रकाश नाम से आयुर्वेद पर एक पुस्तक भी लिखी थी। रावण को चावल बनाने आते थे। ऐसा माना जाता है कि माता सीता को अशोक वाटिका में यही चावल वह देता था। आयुर्वेद के ज्ञान पर आधार पर रावण ने पत्नी मंदोदरी के कहने पर स्त्री रोग और बाल चिकित्सा पर कई किताबें लिखी थीं। इन किताबों में सौ से ज्यादा बीमारियों की चिकित्सा के बारे में लिखा गया है।

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