Primitive Tribal Lifestyle: जानिए, झारखंड-छत्तीसगढ़ सीमा की…..पहाड़ी बसे ओखरगढ़ा गांव में कैसे रहती है….आदिम जनजाति पढिए

गुमला जिले के डुमरी प्रखंड मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर करनी पंचायत की पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है ओखरगढा नामक गांव। यहां आदिम जनजाति परिवार के लगभग 45 परिवार के लोग निवास करते हैं। गांव की आबादी लगभग तीन सौ के आस पास है।



ग्रामीणों के अनुसार आजादी के इतने वर्ष बीत गए लेकिन आज तक कोई भी जनप्रतिनिधि इनका हाल लेने इनके गांव तक नहीं पहुंच पाया। यहां के कोरवा जाति के लोग कृषि कार्य, मजदूरी एवं जलावन की लकड़ी बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं।

यहां आने जाने हेतु कच्ची सड़क है वो भी अत्यंत जर्जर हो चुकी है, जगह जगह गढ़े हो गए हैं जिसके कारण बरसात में आवागमन में काफी कठिनाई होती है। वहीं यहां के ग्रामीणों ने पेयजल, सड़क एवं बिजली व्यवस्था को लेकर सरकार से इसे दुरुस्त करने की मांग की है।

हालांकि इस गांव में सरकारी लाभ के रूप में वर्तमान में लगभग 25 बिरसा आवास निर्माणाधीन हैं जबकि 8 बकरी शेड, निःशुल्क राशन, उज्जवला योजना के तहत सिलेंडर व गैस चूल्हा सहित वृद्धा पेंशन का लाभ भी ग्रामीणों को मिल रहा है फिर भी अति आवश्यक मूलभूत सुविधा सड़क, पानी का घोर आभाव है।

गांव में नहीं है एक भी चापाकल या जलमीनार
इस गांव में न तो एक भी चापाकल है न ही जलमिनार। ग्रामीण पहाड़ी से आधा किलोमीटर नीचे उतर कर कुएं से जल लाकर पीते हैं। गांव से दूर तीन चार कुएं हैं जो गर्मी के दिनों में लगभग सुख से जाते हैं वहीं से दूषित जल लाकर लोग पीने को विवश हैं।

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छह माह से बाधित है बिजली आपूर्ति

ग्रामीणों की शिकायत है की लगभग छह महीने से बिजली आपूर्ति लगभग ठप है। वोल्टेज नहीं रहने के कारण बिजली का कोई उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। जबकि एक दो बार इसकी मरम्मत कराई जा चुकी है फिर भी वोल्टेज की समस्या ठीक नहीं हो रही है।

वहीं आदिम जनजाति परिवार के लोगों का कहना है की किरासन तेल की कीमत अधिक रहने के कारण एवं बिजली नहीं जलने के कारण हमें भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। जंगली क्षेत्र होने से अंधकार में हाथी आदि जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है।

कच्ची सड़क भी है खस्ता हाल

बंदूवा से ओखरगढ़ा गांव तक पहुंचने वाली सड़क में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं। बरसात में चलना मुश्किल हो जाता है। यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है। गांव के लोग एक तरह से देश-दुनिया से अलग-थलग पड़ जाते हैं। इनका कोई खैर-खबर लेने वाला नहीं होता है।

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पढ़िए, क्या कहते हैं आदिम जनजाति के लोग
ग्रामीण बलेस्तर कोरवा कहते हैं कि हमारे गांव में बिजली की समस्या है। बिजली तो यहां पहुंच चुका है लेकिन वोल्टेज नहीं रहता है, जिस कारण गांव के बच्चे रात में पढ़ाई लिखाई नहीं कर पाते हैं। साथ ही अंधेरा होने के कारण जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है।

ग्रामीण लालदेव कोरवा कहते हैं कि ओखरगढ़ा गांव तक पहुंचने हेतु कच्ची सड़क है जिसमें पानी के बहाव के कारण गड्ढे हो गए हैं। गर्मी के दिनों में तो किसी प्रकार छोटे वाहन आ भी जाते हैं लेकिन बरसात में साइकिल से भी आना जाना मुश्किल हो जाता है।

ग्रामीण झमन कोरवा कहते हैं कि हमलोग पहाड़ों में बसकर किसी तरह अपने बाल बच्चों का लालन पालन करते हैं। हमारी विवशता को दूर करने या हाल चाल पूछने कोई भी जन प्रतिनिधि हमारे गांव तक नहीं आते हैं। जिसके कारण गांव के युवक युवति पलायन करने को मजबूर हैं। ग्रामीण सुखमनिया कोरवाइन कहते हैं कि हमलोग गांव से आधा किलोमीटर पहाड़ी के नीचे से पीने का पानी लाते हैं।

गांव में एक भी चापाकल नहीं है न ही कोई जलमिनार है हमलोग कुएं का दूषित पानी पीने की मजबूर हैं। ग्रामीण मोहनी कोरवाईन कहती हैं कि सरकार द्वारा लगभग दस लोगों को उज्जवला योजना के तहत निःशुल्क गैस सिलेंडर व चूल्हा मिला है लेकिन हमलोग गरीबी के कारण उसे दोबारा भरवाने में असमर्थ हैं ऐसे में हम खाना पकाने के लिए लकड़ी चूल्हे का ही प्रयोग करते हैं। हमारे आय का कोई साधन ही नहीं है दातुन पत्ता एवं जलावन लकड़ी बेचकर हम कहां से गैस भरवाएंगे।

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