रायपुर: मध्य भारत में आदिवासियों की बड़ी आबादी छत्तीसगढ़ में निवास करती है, उनमें मुख्य रूप से गोंड, मुरिया, हलबा, भतरा, धुरवा जैसी जनजातियां दक्षिण छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं। खास बात यह है कि सभी जनजातियों के विविधता पूर्ण सामाजिक कानून लागू है और यूसीसी के लागू होने से इन कानूनों को लेकर टकराव का संशय आदिवासी नेताओं के जेहन में हैं। वे अपनी पुरातन, सामाजिक संस्कृति, (Impact of UCC on Tribals of Chhattisgarh) अपने रीती-रिवाजों, समाज के भीतर तय कानूनों और संरक्षण की दिशा में लिए गए फैसलों में बदलाव की आशंका से आशंकित है।
पूर्वोत्तर के राज्यों में छठवीं अनुसूची लागू है जिसके तहत आदिवासी समाज को विशेष सांस्कृतिक एवं सामाजिक अधिकार दिए गए हैं, जो देश के अन्य हिस्सों से अलग हैं यूसीसी लागू होने पर इन अधिकारों में क्या फर्क पड़ेगा इसे लेकर समाज में शंका है। जैसे जमीन खरीदी को लेकर अधिकार जिसमें बाहरी लोग जमीन नहीं खरीद सकते, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के रूढ़िवादी तरीकों को मारने का अधिकार जिसमें विवाह से लेकर अन्य रीति रिवाज शामिल हैं, (Impact of UCC on Tribals of Chhattisgarh) छत्तीसगढ़ में पांचवी अनुसूची लागू है और यह आदिवासियों को विशेष सांस्कृतिक संरक्षण प्रदान करती है। बस्तर में गोंड मुरिया समाज के नियम जो यूसीसी से प्रभावित हो सकते हैं
सम्पति एव जमीन को लेकर अधिकार: गोंड और मुरिया समुदाय में जमीन को लेकर महिलाओं के अधिकार काफी सीमित है। जिस कुल में इस समाज से महिला का विवाह होता है, उसी कुल में संपत्ति पर उसके अधिकार को माना जाता है ना कि पिता की संपत्ति पर।
यूसीसी लागू होने पर समान अधिकार है लेकर समाज में भिन्न-भिन्न मत है:
तलाक: शादी विवाह और तलाक को लेकर आदिवासी समाज काफी मुक्त रीति रिवाज का पालन करता है। यहां महिला और पुरुष को अनगिनत शादी करने के अधिकार उपलब्ध हैं। यहां तक कि महिला को भी यदि अपने पति से अलग होना होता है तो उसके लिए कानूनी प्रक्रिया के पालन की आवश्यकता नहीं है। केवल सामाजिक तौर पर कुछ प्रक्रियाएं होती हैं। इसमें भी महिलाओं को निर्णय लेने की अधिकतम स्वतंत्रता दी गई है।
विवाह: विवाह को लेकर मुख्य रूप से दूसरे समाज में विवाह की अनुमति समाज नहीं देता ऐसे में सामाजिक बहिष्कार एवं अलगाव के लिए भी सामाजिक नियम हैं।
एडॉप्शन: सामाजिक तौर पर यह मान्यता है कि किसी बच्चे का एडमिशन स्कूल के अंदर ही हो सकता है यानी परिवार के रिश्तेदार एवं भाई ही अपने परिवार के बच्चे को अडॉप्ट करके उसका पालन पोषण कर सकते हैं।
इसी तरह से समाज में यह मान्यता है वर्षो से विभिन्न आधार पर चली आ रही है, मतलब विवाह को लेकर दहेज की प्रथा नहीं है इसलिए संपन्न परिवार और गरीब परिवार की भी विवाह का भी आसान होता है। संपत्ति पर अधिकार बदलने से इस बात की संभावना है कि समाज में लालच की प्रवृत्ति बढ़ेगी और विवाह समान स्वरूप में बना नहीं रहेगा। उन्नत समाज की तरह संपत्ति आधारित विवाह तय होंगे। इसे आदिवासियों को अपनी परंपराओं के बदलने का खतरा है।