आत्मा, आस्था और एक का मंदिर क्या इसका भारतीय सेना से गहरा संबंध हो सकता है. कम लोग जानते हैं कि ऐसा है. अगर आपने बाबा हरभजन सिंह का नाम नहीं सुना है तो आपको यह जरूर जानना चाहिए. एक भारतीय सैनिक जो मर चुका है, उसकी आत्मा पिछले पचास सालों से अपनी तैनाती की जगह पर अपनी मौजूदगी की अहसास वहां के भारतीय सैनिकों को दिलाती रहती है और तो और इस सैनिक के नाम का बाकायदा एक मंदिर तक है जिसमें बाबा हरभजन सिंह की बाकायदा भारतीय सैनिक पूजा तक करते हैं.
पंजाब रेजिमेंट में भर्ती
हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट के सैनिक थे. उनका जन्म 30 अगस्त 1946 को पंजाब के गुजरावाला (आज के पाकिस्तान) में हुआ था. उनकी शुरुआती शिक्षा गांव में हुए और पट्टी पंजाब के डीएवी हाई स्कूल से उन्होंने 1965 मैट्रिक्यूलेशन की पढ़ाई पूरी करने के अगले साल ही वे एक जवान के तौर पर 24वीं पंजाब रेजिमेंट के जवान के तौर पर भर्ती हुए थे.
सिक्किम के नाथुला में हुआ हादसा
हरभजन सिंह की जल्दी ही सिक्किम में तैनाती हो गई थी. एक दिन जब वे पूर्वी सिक्किम के नाथु ला पास के निकट खच्चर पर बैठकर तुकु ला से डोंगचुई ला की ओर नदी पार कर रहे थे तभी खच्चर सहित नदी में बह गए थे. उनका शव दो दिन की तलाश के बाद भी उनका शव नहीं मिला था. उस समय उनकी उम्र केवल 22 साल थी.
दिखने लगे चमत्कार
इसके बाद उनके जीवित साथी को एक सपना आया जिसमें खुद हरभजन सिंह ने उन्हें अपनी लाश की जगह बताई. इसके अगले दिन उनके साथियों ने उसी जगह पर उनका शव देखा जिसके बाद उनका पूरे राजकीय सम्मान के सात अंतिम संस्कार कर दिया गया. लेकिन चमत्कार का सिलसिला तो जैसे शुरू हुआ था. उसी दिन से जब भी सीमा पर भारतीय सैनिक गश्त में जरा सी भी लापरवाही करते तो उन्हें एक अदृश्य चांटा पड़ता था.
आज भी ड्यूटी पर तैनात
बाबा हरभजन सिंह को लेकर कई तरह के चमत्कारों के किस्से सुनने को मिलते हैं. वे कई बार लोगों को कभी गश्त लगाते दिखते हैं तो कभी अजनबियों से सैनिक के तौर पर बात करते हुए सुने जाते हैं. सीमा के सैनिक उन्हें बाबा की तरह सम्मान देते हैं. उनका कमरा और वर्दी रोज साफ होते हैं रात को उनके जूते पर कीचड़ लगा दिखाई देता है. यह सब भारतीय सैनिकों के लिए एक सामान्य बात है. इन बातों को वहां गए अफसर तक स्वीकारते हैं.
अन्य सैनिकों की तरह
अंतिम संस्कार के बाद भी जवान बाबा हरभजन सिंह के साथ सेना पूर्णकालिक सैनिक की तरह बर्ताव करती है. उन्होंने बाकायदा छुट्टी दी जाती है और उनके लिए ट्रेन में रिजर्वेशन तक किया जाता है. इसके अलावा उनके साथ दो सैनिक भी जाते हैं जो उनका सामान उनके घर तक छोड़ते थे और छुट्टी खत्म होने पर उसे वापस लाते हैं. उनकी तनख्वाह उनके घरवालों की दी जाती है.
चीन से भी सम्मान?
बाबा के सम्मान का आलम यह है कि चीन की ओर से भी उन्हें सम्मान मिलता है. जब भी सिक्किम की सीमा पर भारत और चीन के बीच फ्लैग वार्ता होती है तो चीन की तरफ से भी एक कुर्सी बाबा हरभजन के लिए खाली रखी जाती है. वैसे तो उन्हें प्रमोशन तक दिया गया था. लेकिन अब उन्होंने छुट्टी पर नहीं भेजा जाता है. एक तरह से वे रिटायर हो गए हैं, लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी है.
हरभजन सिंह के साथियों ने बाबा हरभजन सिंह के बंकर को ही मंदिर का रूप दे दिया था, जिसमें आज भी पूजापाठ का काम खुद सैनिक ही करते हैं. बाद में उनके लिए 13 हजार फुट की ऊंचाई पर मंदिर बनाया गया, जबकि बंकर वाला मंदिर उससे भी एक हजार फुट उंचाई पर है. यह नया मंदिर गंगटोक के जेलेप्ला और नाथुला दर्रे के बीच स्थित है.