Padma Awards 2022: कौन हैं केवी राबिया, जिनको अभी तक केरल वाले जानते थे अब पूरे देश में है इनकी चर्चा

भारत सरकार द्वारा इस गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। इसमें कुछ बड़े और नामचीन सितारों के अलावा केरल की समाज सेविका केवी राबिया के नाम की भी घोषणा हुई है। आज उन्हें ये सम्मान मिल भी गया। पद्मश्री से सम्मानित केवी राबिया के जीवन का सफर आसान नहीं रहा है। जिंदगी के सफर में केवी राबिया के पैरों ने तो साथ नहीं दिया लेकिन उनके हाथ और इरादे मजबूत थे, जिन्होंने उन्हें कभी थकने नहीं दिया। दोनों पैर नहीं होने और बार-बार दुर्घटनाओं का शिकार होने के बावजूद उन्होंने समाज के लिए वो कर दिखाया, जो आज एक मिसाल है। इसी वजह से आज पद्मश्री राबिया तक खुद ही पहुंच गया। समाज के लिए कुछ करने की चाह ने राबिया को सबकी नजर में रोल मॉडल बना दिया। अब राबिया को सिर्फ केरल ही नहीं बल्कि पूरा देश जानना चाहता है। तो चलिए आज जानते हैं केरल की इस पद्मश्री समाज सेविका के बारे में सबकुछ…



केवी राबिया का जन्म और पढ़ाई

केवी राबिया को सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पद्मश्री से नवाजा गया है। दुनिया के लिए एक रोल मॉडल बन चुकीं केवी राबिया जन्म 25 फरवरी 1966 में मलप्पुरम जिले के तिरुरंगाडी के पास वेल्लिलक्कड़ गांव में हुआ था। राबिया पोलियो से ग्रसित थीं इसलिए व्हीलचेयर ही उनकी पैर बनी। व्हीलचेयर पर होने के बावजूद उन्होंने दुनिया के लिए एक मिसाल पेश की है। व्हीलचेयर पर रहते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और शिक्षिका बनीं। अध्यापिका होने के साथ वह समाज सुधार के कार्यों में भी लगी रहीं। राबिया के प्रयासों ने पूरे देश में नए बदलाव लाए। आज राबिया के नाम पर गांव में नई सड़कें, बिजली, टेलीफोन कनेक्शन और पीने का पानी सबकुछ सहज ही उपलब्ध हो गया है।

समाज के लिए केवी राबिया के योगदान

समाज सेवा की ओर एक और कार्य करते हुए राबिया ने चलनम नाम की एक संस्था शुरू की। इस संस्था के जरिए दिव्यांग बच्चों के लिए कई स्कूल खोले गए। सिर्फ यही नहीं, महिला सशक्तीकरण के लिए भी उन्होंने आवाज उठाई। राबिया ने अपने आंदोलन के जरिए दहेज, शराब, अंधविश्वास और नस्लवाद जैसे सामाजिक मुद्दों के खिलाफ लड़ रही हैं। राबिया के प्रयासों से महिलाओं के लिए छोटी दुकानें और महिला पुस्तकालय भी स्थापित कर चुकी हैं।

राबिया की मुश्किलें यहीं नहीं रुकीं

शारीरिक कष्ट की विपत्ति पोलियो के साथ नहीं रही। एक और कष्ट हुआ कि उन्हें कैंसर हो गया। राबिया को 2000 में कैंसर का पता चला था। महीनों इलाज और कीमोथेरेपी के बाद राबिया इस बीमारी से उबरीं। लेकिन कुछ साल बाद उनके साथ फिर एक दुर्घटना हो गई। बाथरूम में गिरने से उनको ऐसी चोट आई कि अब व्हीलचेयर की बजाय बेड ही उनका सहारा बन गया। इन घटनाओं ने राबिया को भले ही घाव दिए, लेकिन उनके आंतरिक शक्ति को छू भी नहीं पाईं। बिस्तर पर रहते हुए भी राबिया ने आंदोलन जारी रखा। बिस्तर पर रहने के दौरान उनको समय मिला तो कई किताबें लिख डालीं।

राबिया की आत्मकथा

राबिया की आत्मकथा “ड्रीम्स हैव विंग्स” 2009 में प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा, राबिया ने तीन और किताबें भी लिखी हैं। इन्हीं किताबों से उन्हें अपने इलाज के लिए पैसे मिले।

पद्मश्री से पहले भी मिले ये सम्मान

राबिया को 1994 में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से राष्ट्रीय युवा पुरस्कार और 2000 में केंद्रीय बाल विकास मंत्रालय से कन्नकी स्त्री शक्ति पुरस्कार मिला। इनके अलावा, राबिया को इस अवधि के दौरान केंद्रीय और राज्य पुरस्कार मिले हैं। अब देश के एक बड़े पुरस्कार पद्मश्री के साथ उनका नाम और सुनहरा हो गया है।

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