कुष्ठ रोग, उन बीमारियों में से एक है, जिसमें रोगी को सिर्फ रोग से नहीं इसके कारण समाज में फैले स्टिग्मा से भी मुकाबला करना होता है। हर साल, जनवरी के आखिरी रविवार को कुष्ठ रोग के शिकार लोगों का हौंसला और बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने, कुष्ठ से संबंधित कलंक और भेदभाव को समाप्त करने हेतु लोगों को जागरूक के लिए ‘विश्व कुष्ठ रोग’ दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार इस साल “यूनाइटेड फॉर डिग्निटी” थीम के साथ कुष्ठ रोग दिवस मनाया जा रहा है, जिसके माध्यम से कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की गरिमा का सम्मान किया जा सके।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कुष्ठ रोग या हेन्सन रोग एक संक्रामक स्थिति है, जिसके कारण त्वचा, नसें और आंख-नाक की परत प्रभावित हो सकती है। कुष्ठ रोग एक धीरे-धीरे बढ़ने वाले जीवाणु के कारण होता है जिसे माइकोबैक्टीरियम लेप्री कहा जाता है। इस संक्रमण के शिकार लोगों को हाथों और पैरों में सुन्नता और कमजोरी, संवेदना की कमी और त्वचा के हल्के रंग या लाल रंग के पैच दिखने की समस्या हो सकती है। आइए आगे की स्लाइडों में इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
भारत में कुष्ठ रोग के मामले
रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में बड़ी संख्या में कुष्ठ रोग के मामले हैं। 2005 में भारत को “कुष्ठ मुक्त” घोषित किए जाने के बावजूद, देश में अभी भी दुनिया के नए कुष्ठ रोगियों के आधे से अधिक (लगभग 60 प्रतिशत) रोगी हैं। इसका मुख्य कारण रोगियों में जागरूकता की कमी के साथ रोग के और निदान और उपचार के लिए पहुंच से संबंधित चुनौतियां हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कुष्ठ रोग का समय पर पता लगाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें होने वाली देरी के कारण रोगियों में गंभीर दीर्घकालिक तंत्रिका क्षति का खतरा हो सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यदि कुष्ठ रोग का समय पर पता चल जाए है, तो अधिकांश मामलों को 6 से 12 महीनों के बीच ठीक किया जा सकता है। साल 2020-2021 के लिए एनएलईपी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 94.75 फीसदी रोगियों को ठीक किया गया है।
कुष्ठ रोग और इसके कारण
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कुष्ठ रोग एक क्रोनिक संक्रामक बीमारी है जो आपके हाथ, पैर और त्वचा सहित तंत्रिका को क्षति पहुंचा सकती है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, मौजूदा समय में दुनिया भर में लगभग 208,000 लोग कुष्ठ से संक्रमित हैं, जिनमें से अधिकांश अफ्रीका और एशिया में हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति की जीवाणु के प्रति प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर है तो माइकोबैक्टीरियम लेप्री बैक्टीरिया परिधीय नसों और कभी-कभी ऊतकों में फैल सकता है। हालांकि, विशेषज्ञ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दुनियाभर में 95 प्रतिशत से अधिक लोग स्वाभाविक रूप से एम लेप्री बैक्टीरियो के प्रति प्रतिरक्षित होते हैं।
कुष्ठ रोग के लक्षण और उपचार
स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, कुष्ठ रोग में त्वचा पर कुछ लक्षण नजर आते हैं जिसके आधार पर इसकी पहचान की जा सकती है।
त्वचा के धब्बे, आमतौर यह सुन्न हो सकते हैं और त्वचा के रंग से हल्के दिखाई देते हैं।
त्वचा पर वृद्धि (गांठ)
मोटी, सख्त या सूखी त्वचा
पैरों के तलवों में दर्द रहित छाले
त्वचा के प्रभावित क्षेत्रों का सुन्न होना
मांसपेशियों में कमजोरी या लकवा (विशेषकर हाथों और पैरों में)
नसों का बढ़ना (विशेषकर कोहनी और घुटने के आसपास और गर्दन के किनारों में)
आंखों की समस्याएं, जिससे अंधापन हो सकता है (जब चेहरे की नसें प्रभावित होती हैं)।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक कुष्ठ रोग के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन को प्रयोग में लाया जाता है। उपचार आमतौर पर एक से दो साल तक चलता रह सकता है। यदि निर्धारित अनुसार उपचार पूरा किया जाए तो बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
कुष्ठ रोग से जुड़ी जरूरी बातें
कुष्ठ रोग को लेकर फैले मिथ में से इसके स्पर्श से फैलने को लेकर अफवाहें हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक यह स्पर्श से नहीं फैलता है। कुष्ठ रोगी के नाक और मुंह से निकलने वाली ड्रॉपलेट्स के संपर्क में आने से यह फैल सकता है।
कमजोर या धीरे-धीरे विकसित होने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण बच्चों को कुष्ठ रोग के लिए उच्च जोखिम वाला समूह माना जाता है।
यदि मां कुष्ठ रोग से संक्रमित है तो भी उसके बच्चे में इस संक्रमण के प्रसारित होने का खतरा नहीं होता है।
कुष्ठ रोग यौन संपर्क से भी नहीं फैलता है।
कुष्ठ रोग किसी प्रकार से आकस्मिक शारीरिक संपर्क जैसे हाथ मिलाने, गले मिलने या सार्वजनिक परिवहन में एक साथ बैठने या एक साथ भोजन करने से नहीं फैलता है।
डिस्क्लेमर – उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।