दो लड़के हैं। अमीर खानदान से हैं। विदेश में पढ़ते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ जाता है। दोनों वापस घर आते हैं। देश के हालात पर दुखी होते हैं। और, क्या करते हैं? कभी दूसरों को पढ़ाते हैं। कभी खुद पढ़ते हैं। आपस में लड़ते हैं। खूब झगड़ते हैं। बीच सड़क बस रोककर मोहब्बत का इजहार करते हैं। दिल से जिसे चाहा, उसकी शादी किसी और से हो जाए तो बाराती बनकर पहुंचते हैं। मिलों में कपड़ा उत्पादन बढ़ाने के लिए अपने मिल मालिक पिता से भी भिड़ जाते हैं। और, पिता को किसी तेज गेंदबाज पर गुमान हो तो उसका ऑटोग्राफ लाकर उन्हें खुश करने की कोशिश भी करते हैं। जी हां, ये ऐसे दो लड़के हैं, जिनमें से एक देश के उस वक्त के प्रधानमंत्री को भाई कहकर बुलाता है। और, दूसरा देश का पहला रॉकेट उडाता है। ‘रॉकेट ब्वॉयज’ वेब सीरीज का पहला सीजन एक ऐसी रूमानी, रोमांचक और रोचक कहानी है जिसे देख आपका दिल झूम उठेगा। यूं लगेगा, आप दुनिया का नक़्शा बदलने के दौर की नहीं, इश्क़ के इल्म बनने के दौर की कहानी देख रहे हैं।
सोनी लिव की वेब सीरीज ‘रॉकेट ब्वॉयज’ की पहले पहल चर्चा जब शुरू हुई तो यूं ही लगा कि ये भी किसी रॉकेट वैज्ञानिक की राम कहानी होगी। नाम भी बहुत आकर्षक नहीं। लेकिन, इस सीरीज का पहला एपोसीड देखने के बाद ही इन दोनों लड़कों से प्यार हो गया। और, इसके बाद का हर एपीसोड इस प्यार पर परत दर परत दुलार चढ़ाता चला गया। और वह इसलिए क्योंकि ये सिर्फ रॉकेट या एटॉमिक रिएक्टर बनाने की ही कहानी नहीं है। ये भारत के भारत बनने की कहानी है। उस भारत की जिसे कभी बाहरी ताकतों से नहीं सिर्फ अपने भीतर छुपे गद्दारों से ही खतरा रहा। कहानी 1962 के भारत चीन युद्ध के बीच होमी जहांगीर भाभा के एटम बम बनाने के प्रस्ताव से शुरू होती है और फिर 22 साल पीछे जाकर वहां से कहानी का सिरा पकड़ती है जहां जिन्ना के जिक्र से लेकर रामचरित मानस की सीता तक जाती है। किसे यकीन होगा कि देश की तस्वीर बदल देने वाले चंद राष्ट्रीय धरोहर वैज्ञानिक संस्थानों की नींव चंदा जमा करके रखी गई है। सीरीज बहुत सादगी से बताती है, लड़ाई कभी खत्म नहीं होती। लड़ाई चलती रहती है। कभी सामने खड़े दुश्मन से। कभी अपने आप से।
ये दो लड़के अपने आप में पूरा हिंदुस्तान है। इनको इंसान की पहचान है। काबिलियत की ये इज्जत करते हैं। फिर हुनरमंद इंसान गुजराती हो, मद्रासी हो, पारसी, कन्नड़भाषी हो या कोई भी हो। पहला लड़का सीनयर है। होमी जहांगीर भाभा। जी हां, वही जिसके नाम पर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर है। वह वॉयलिन शानदार बजाता है। पेटिंग उससे बढ़िया बनाता है। मन लगे तो दिन रात काम करता है। और, मन उचट जाए तो महीनों अपने ही बनाए सिस्टम से दूर चला जाता है। दूसरा छोटा है लेकिन वह भी कम उस्ताद नहीं है। जिस मंडली को साइंस इंस्टीट्यूट चलाने के लिए चंदा इकट्ठा करने को बुलाता है। उसी की नायिका से प्रेम कर बैठता है। बस दिल की बात कह नहीं पाता। और, जब हिम्मत आती है तो पीएचडी के डिसरटेशन के बीच से उठकर चला जाता है। बीच सड़क बस रुकवाकर मोहब्बत का इजहार करता है और बिना माता पिता को बताए उसे दुल्हन बनाकर घर ले आता है।
दो लड़कों की इस कहानी में एक तीसरा लड़का भी है। ये लड़का बंटवारे के बाद जुटे मुसलमानों को शौक बहराइची का शेर सुनाता है। अपने इमाम पिता के काम का असली मतलब अपने भाई को समझाता है। और, कहता है पायलट बनकर जहाज नहीं उड़ाना, उसे तो रॉकेट उड़ाना है। इंटरव्यू के लिए बनाए रेज्यूमे में लिखता है कि उसे अब तक कहां कहां रिजेक्ट किया गया। और, ये भी बताता है कि नंबर भले बढ़िया न आए हों लेकिन देश का पहला ग्लाइडर उसने ही बनाया है। बैलगाड़ी और साइकिल से थुम्बा पहुंचे पुर्जों के बीच पहली बार यही लड़का ‘जुगाड़’ शब्द प्रचलन में लाता है। रॉकेट लॉन्चिंग के ऐन मौके पर हॉइड्रोलिक फेल होने पर जो होता है, वह तो आपको सीरीज देखकर ही समझना चाहिए। लेकिन, इस सीरीज को देखकर समझना ये भी चाहिए कि देश में बीते 70 साल में कुछ नहीं हुआ, ऐसा कहना इन जैसे लाखों लड़कों की मेहनत को झुठलाने की कहानी के सिवा कुछ नहीं है।
भारत जिस देश का नाम है, वह ऐसे हजारों लाखों लड़कों के जुनून का काम है। ऐसे ही दो लड़के इस सीरीज को बनाने में भी मददगार रहे हैं। इसमें से बड़ा अक्सर सियासत के निशाने पर रहता है। कभी किसी फिल्मी पार्टी में दिखता है तो कभी किसी सितारे से अपनी दोस्ती दिखाता है। पिता देश की आर्थिक राजधानी वाले शहर में मुख्यमंत्री बनकर बैठता है लेकिन उसने देश की बुनियाद में लगी जिन ईंटों की तस्वीर अपने भाई के साथ इस सीरीज में बनवाई है, वह उसके नाम के साथ लगे ठाकरे की पहचान को और सुर्ख करती है। वेब सीरीज ‘रॉकेट ब्वॉयज’ मोती लाल नेहरू के लड़के की भी कहानी है। उस लड़के की कहानी जिसे एक पत्थर के टुकड़े से मिल सकने वले एक ग्राम यूरेनियम की कीमत पता है। उसे समझ आता है कि दो ट्रक कोयला जलाने के बराबर गर्मी पैदा करके इत्ता सा यूरेनियम भी उतनी ही बिजली बना सकता है। और, इस खोज पर वह खुश होकर जश्न मनाता है और साइंटिस्ट लड़के की वायलिन पर पार्टी में पियानो पर संगत भी करता है।
हो सकता है कि देश की सियासी सोच इधर दस पंद्रह सालों में बदली हो। लेकिन भारत की बुनियाद अब भी वैसी ही है जैसी इन लड़कों ने डाली। बुनियाद के इन पत्थरों पर बनी इमारतों की शक्लें बदल जाएंगी, रंग रोगन करके लोग इन्हें अपने जैसा भी बनाने की कोशिशे करते रहेंगे, लेकिन तय ये भी है कि आने वाले दिनों में वेब सीरीज ‘रॉकेट ब्वॉयज’ देश में विज्ञान के प्रचार प्रसार का इतिहास जानने की इच्छा रखने वालों के लिए वैसी ही टेक्स्ट बुक बन जाएगी जैसी टेक्स्ट बुक दूरदर्शन का सीरियल ‘भारत एक खोज’ अब भी कंपटीशन की तैयारियां करने वालों के लिए है। हिंदी में अब तक बनी वेब सीरीज में वेब सीरीज ‘रॉकेट ब्वॉयज’ गिनती बेहतरीन सीरीज में सालों साल होती रहेगी। पहले एपीसोड से आठवें एपीसोड तक एक मिनट भी यह आपका ध्यान भटकने नहीं देगी, इसकी गारंटी मेरी है। इसे अपने पूरे परिवार के साथ इस सप्ताहांत बिंज वॉच जरूर कर डालिए। पूरी वेब सीरीज के बस आखिरी एपीसोड में एक गाली है, उसे भी इसे बनाने वाले म्यूट कर दें तो फैमिली एंटरटेनमेंट के लिए ओटीटी पर इससे बेहतर और कुछ है नहीं।
वेब सीरीज ‘रॉकेट ब्वॉयज’ की जान इसके कलाकार और इसकी तकनीकी टीम है। होमी जहांगीर भाभा बने जिम सार्भ और विक्रम साराभाई बने इश्वाक सिंह ने इस सीरीज में अदाकारी की जो लकीर खींची है, उसे छोटा कर पाने में भारतीय अभिनेताओं को काफी समय लगेगा। दोनों ने पूरी सीरीज को जय वीरू की तरह शुरू से आखिर तक बांधकर रख दिया है। दोनों ने ऐसी कमाल अदाकारी की है कि जिसे बस देखकर ही समझा जा सकता है। मृणालिनी साराभाई के किरदार में रेजिना कसांड्रा ने भी दिल जीत लेने वाला काम किया है। उनका अभिनय कई बार ‘सुरभि’ के जमाने की रेणुका शहाणे की याद दिला देता है। और, पिप्सी के किरदार में हैं सबा आजाद। जो हाल के दिनों में ऋतिक रोशन की मिस्ट्री गर्ल बनकर सुर्खियों में रहीं। और, एक काबिल कलाकार सीरीज में और लगातार दिखता है और जिसकी अदाकारी से ही सीरीज को स्याह रंग भी मिलता है वह हैं, दिब्येंदु भट्टाचार्य। नेहरू बने रजित कपूर का काम भी लाजवाब है और वैसा ही दमदार काम नमित दास और अर्जुन राधाकृष्णन का भी है।
अदाकारी के अलावा जिन दूसरे लोगों की कलाकारी से वेब सीरीज ‘रॉकेट ब्वॉयज’ रोशन हुई है, उस टीम के कैप्टन हैं अभय पन्नू। निखिल आडवाणी के सहायक रहे अभय पन्नू ने करियर के पहले मौके पर ही सिक्सर मारा है। उनमें भविष्य की संभावनाएं हैं और वह अगर ऐसी ही कहानियों को तलाशते रहे तो उनसे सिनेमा में भी कुछ बेहतरीन कर सकने की उम्मीद की जा सकती है। सीरीज को बनाने में इसके फोटोग्राफी निर्देशक (सिनेमैटोग्राफर) हर्षवीर ओबेरॉय का भी किरदार किसी मुख्य कलाकार से कम नहीं है। 1940 से लेकर 1963 तक के भारत की कहानी कहती इस सीरीज को देखते हुए हर सीन आपको उसी दौर में लेकर चला जाता है और इसमें इस सीरीज की लुक डिजाइन करने वाली शोमा गोस्वामी, कॉस्ट्यूम डिजाइनर उमा बिजू, बिजू एंटनी, प्रोडक्शन डिजाइनर मेघना गांधी, कला निर्देशक प्रदीप निगम, कास्टिंग डायरेक्टर कविश सिन्हा का भी बहुत बड़ा योगदान है।
वेब सीरीज का संपादन भी लाजवाब है। एक भी एपीसोड ढीला नहीं है और इसके लिए माहिर झावेरी को पूरे नंबर मिलने चाहिए। सीरीज का म्यूजिक थोड़ा कमजोर है हालांकि सुभाष साहू ने साउंड डिजाइन में मेहनत काफी की है। सीरीज को इतने करीने से सजाने वाली इसकी राइटिंग टीम इस सीरीज की रीढ़ है। निर्देशक अभय पन्नू का साथ इसमें कौसर मुनीर, अभिजीत परमार, गुंदीप कौर, काशवी नायर, रंजीत एम तिवारी और शिव सिंह ने दिया है। स्टोरी कॉन्सेप्ट अभय कोराने का है।